Saturday, 29 October 2011

परमपिता परमात्मा शिव बाबा परमपिता परमात्मा का नाम "शिव" है "शिव" का अर्थ "कल्याणकारी" है Iपरमपिता परमात्मा शिव ही ज्ञान के सागर ,शांति के सागर, आनंद के सागर और प्रेम के सागर हैI वह ही पतितो को पावन करने वाले , मनुष्यमात्र को शांतिधाम तथा सुखधाम की रह दिखाने वाले , विकारो तथा काल के बंधन से छुड़ाने वाले और सब प्राणियों पर रहम करने वाले है Iमनुष्यमात्र को मुक्ति और जीवनमुक्ति का अथवा गति और सत्गति का वरदान देने वाले भी एकमात्र वही है वह दिव्य बुद्दि के डाटा और दिव्य दृष्टी के वरदाता भी है मनुष्यात्माओ को ज्ञान रूपी सोम अथवा अमृत पिलाने वाले तथा अमर पद का वरदान देने के कारण "सोमनाथ" तथा "अमरनाथ" इत्यादि नाम भी उन्ही के है ओः जन्म मरण से सदा मुक्त , सदा अकरस ,सदा जगती ज्योति, सदा शिव है I

एक आश्चर्यजनक बात
              प्राय: सभी  मनुष्य परमात्मा को "हे पिता " " हे दु:खहर्ता और सुखकर्ता प्रभु " इत्यादी सम्बन्ध सूचक शब्दों से याद करते है I परन्तु यह कितने आश्चर्य की बात है की जिसे वे "पिता" कहकर बुलाते है उसका सत्य और स्पष्ट परिचय उन्हें  नही है और उसके साथ उनका अच्छी रीती स्नेह ओउए सम्बन्ध भी नही है परिचय और स्नेह न होने के कारण परमात्मा को याद करते समय भी उनका मन एक ठिकाने पर नही टिकता इसलिए , उन्हें परमपिता परमात्मा से शांति तथा सुख का जो जन्म सिद्ध अधिकार प्राप्त होना चाहिए वह प्राप्त नही होता वे न तो परमपिता परमात्मा के मधुर मिलन का सच्चा सुख अनुभव कर सकते है , न उससे लाइट (प्रकाश) और माईट (शक्ति) ही प्राप्त कर सकते हे और न ही उनके संस्कारो तथा जीवन में कोई विशेष परिवर्तन ही आ पाता है I इसीलिए हम यहाँ उस परम प्यारे परमपिता परमात्मा का सक्षिप्त परिचय दे रहे है जो की स्वयं उन्होंने ही लोक-कल्याणार्थ हेम समझाया है और अनुभव कराया है  I
                  परमपिता परमात्मा का दिव्य नाम और उनकी महिमा
      परमपिता परमात्मा का नाम "शिव" है "शिव" का अर्थ "कल्याणकारी" है Iपरमपिता परमात्मा शिव ही ज्ञान के सागर ,शांति के सागर, आनंद के सागर और प्रेम के सागर हैI वह ही पतितो को पावन करने वाले , मनुष्यमात्र को शांतिधाम तथा सुखधाम की रह दिखाने वाले , विकारो तथा काल के बंधन से छुड़ाने वाले और सब प्राणियों पर रहम करने वाले है  Iमनुष्यमात्र को मुक्ति और जीवनमुक्ति का अथवा गति और सत्गति का वरदान देने वाले भी एकमात्र वही है वह दिव्य बुद्दि के डाटा और दिव्य दृष्टी के वरदाता भी है मनुष्यात्माओ को ज्ञान रूपी सोम अथवा अमृत पिलाने वाले तथा अमर पद का वरदान देने के कारण "सोमनाथ" तथा "अमरनाथ" इत्यादि नाम भी उन्ही के है ओः जन्म मरण से सदा मुक्त , सदा अकरस ,सदा जगती ज्योति, सदा शिव है I
                                        परमपिता परमात्मा का दिव्य-रूप
              परमपिता परमात्मा का दिव्य-रूप एक "ज्योति बिंदु" के समान, deeye की लो जसा है वह रूप अति निर्मल ,स्वर्णमय लाल और मनमोहक है उस ज्योतिर्मय रूप को दिव्य-चक्षुओ द्वारा ही देखा जा सकता है और दिव्य बुद्दि द्वारा ही अनुभव किया जा सकता हैI परमपिता परमात्मा के उस "ज्योतिबिंदु" रूप की प्रतिमाये भारत में "शिवलिंग" नाम से पूजी जाती है और उनके अवतरण की याद में " महाशिवरात्रि" भी मनाई  जाती है I
                                                      "निराकार" का अर्थ 
             लगभग सभी धर्मो के अनुयायी परमात्मा को "निराकार" मानते है परन्तु इस शब्द से वे यह अर्थ लेते है की परमात्मा का कोई आकार (रूप)नही है अब परमपिता परमात्मा शिव कहते है कि ऐसा मानना  भूल   है वास्तव में निराकार का अर्थ यह है कि परमपिता "साकार" नही है, अर्थात न तो उनका मनुष्यों जैसा स्थूल -शारीरिक आकार है और न देवताओ जैसा सूक्ष्म सह्रिरिक आकार है बल्कि उनका रूप अशरीरी है और ज्योति-बिंदु के समान है "बिंदु" को तो निराकार ही कहेंगे Iअत: यह एक आश्चर्यजनक बात है कि परमपिता परमात्मा है तो सुक्ष्मातिसुक्ष्म , एक ज्योति-कण है परन्तु आज लोग प्राय: कहते है कि वह कण-कण में हैI

शिव सर्वआत्माओं के परमपिता हैं
परमपिता परमात्मा शिव का यही परिचय यदि सर्व मनुष्यात्माओं को दिया जाए
तो सभी सम्प्रदायों को एक सूत्र में बाँधा जा सकता है, क्योंकि परमात्मा
शिव का स्मृतिचि- शिवलिंग के रूप में सर्वत्र सर्वधर्मावलंबियों द्वारा
मान्य है। यद्यपि मुसलमान भाई मूर्ति पूजा नहीं करते हैं तथापिवे मक्का
में संग-ए-असवद नामक पत्थर को आदर से चूमते हैं। क्योंकि उनका यह दृढ़
विश्वास है कि यह भगवान का भेजा हुआ है। अतः यदि उन्हें यह मालूम पड़ जाए
कि खुदा अथवा भगवान शिव एक ही हैं तो दोनों धर्मों से भावनात्मक एकता हो
सकती है। इसी प्रकार ओल्ड टेस्टामेंट में मूसा ने जेहोवा का वर्णन किया
है। वह ज्योतिर्बिंदु परमात्मा का ही यादगार है। इस प्रकार विभिन्न
धर्मों के बीच मैत्री भावना स्थापित हो सकती है।

No comments:

Post a Comment