Friday, 28 October 2011

लडाई अहंकार की मैं कहता हूँ कि एक बार समर्पण में जीकर तो देखो कैसा आनंद बरसता है । एक बार प्रभू के चरणों में नमन करके तो देखो, फिर देखना छह माह तक जीवन में आनंद ही आनंद बरसेगा । अहंकार के नारियल को एक बार प्रभू के, किसी सद्‌गुरु के चरणों में पटक-पटक कर फोड डालो, फिर देखना जीवन में कैसा अतिशय, कैसा चमत्कार प्रकट होता है ? तुम्हारी लडाइयॉं, सारे तनाव, संघर्ष इसी अहंकार की वजह से तो हैं । पति और पत्नी, बाप और बेटा, सासु ओर बहु, देवरानी और जेठानी, तुम्हारे और पडौसी के बीच में जो भी बिखराव और टकराव चला रहा है वह इसी अहंकार की देन है । दो समुदयों के बीच में जो संघर्ष है, दो जातियों के बीच में जो खींचतान है - उसका मूल कारण मनुष्य का अहंकार है । ध्यान रखना - बाप और बेटे कभी नहीं लडते । हमेशा इन दोनों के अहंकार लडते हैं । पति और पत्नी परस्पर में लडें, कोई कारण ही समझ में नही आता, और अगर कोई कारण है तो वह अहंकार ही हो सकता है । भला हिन्दु और मुसलमान आपस में क्यों लडने लगे ? दोनों अपने-अपने हिसाब से जीवन-यापन करते हैं, अपने-अपने धर्मानुसार पूजा, इबादत करते है, दोनों के अपने-अपने परिवार हैं, दोनों अपना कमाते हैं, अपना खाते हैं, फिर क्यों लडें ? और यदि लडते हैं तो तभी लडते हैं जब दोनों के अहंकार परस्पर टकराते हैं । अहंकार लडता है, आदमी कभी नहीं लडता । कल एक युवक मुझसे मुखातिब था । उसके मन में एक द्वंद्व था कि वह विवाह करे या न करे । वह अनिर्णय की स्थिति में था । उसका एक मन कहता था कि शादी करुँ और अपना छोटा-सा संसार बसा लूं तथा दूसरा मन कहता कि विवाह के बाद जो झंझटें, जो परेशानियॉं, जो बेचैनियॉं निर्मित होती हैं, वे बडी भयावह हुआ करती हैं, वे बडी पीडादायक हुआ करती हैं । वह युवक बडे द्वंद्व में जी रहा था । इस सम्बन्ध में वह परामर्श चाहता था । ऐसा ही एक जिज्ञासू कभी कबीर के पास पहुँचा था और उसने कबीर से परामर्श चाहा था । जिज्ञासु ने कबीर के समक्ष अपनी समस्या रखी और समाधान करने का आग्रह किया । तुम : कीचड और कमल ध्यान रखना - विवाह सर्वथा अछूत नहीं हैं । माना कि संसार कीचड है लेकिन ध्यान रखें, इसी कीचड में कमल खिलता है । दुनियां के अधिकतर महापुरुष, तीर्थकर-पुरुष विवाहित थे । भारतीय संस्कृति में गृहस्थ जीवन को भी आश्रम का दर्जा दिया गया है । भारतीय मनीषा शुरु से इस बात की पक्षधर रही है कि जो लोग अपनी ऊर्जा को पूरी तरह से ध्यान-समाधि में नहीं लगा सकते, ऊर्जा का ऊर्ध्वारोहण नहीं करत सकते वे लोग गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर गृहस्थ धर्म का निर्वाह करें । काम में भी राम की तलाश जारी रखें, कीचड में कमल की साधना करें । कमल का कीचड में रहना और मनुष्य का संसार में रहना बुरा नहीं हैं । बुराई तो यह है कि कीचड कमल पर चढ आये और संसार हृदय में समा जाये । तुम कमल हो, तुम्हारा परिवार कमल की पंखुडियॉं है तथा संसार कीचड है । कीचड में कमल की तरह जी सकें तो गृहस्थ आश्रम भी किसी तपोवन से कम महत्त्वपूर्ण नहीं ।


No comments:

Post a Comment