Saturday, 29 October 2011

परमात्मा का अवतार कब और किस रुप में होता है ? सहज राजयोग सिखा कर आदि सनातन दैवी धर्म की तथा श्री लक्ष्मी श्री नारायण और श्री सीता श्री राम के पावन एवं दैवी स्वराज्य की फिर से स्थापना करता हूँ । इस प्रकार सृष्टि नाटक की अनादि निश्चित योजना को जानने से आप समझेंगे कि मुझ रचयिता के आने का पार्ट कल्प में केवल एक ही बार, कलियुग के अन्त और सतयुग के आरम्भ के संगम समय पर होता है जबकि पतित सृष्टि को पावन करने अथवा पुरानी, कलियंगी सृष्टी को नई सतयुगी बनाने अर्थात उसका जीर्णोद्धार करने का कर्तव्य होता है । मैं एक ही बार आकर सतयुग और त्रैतायुग की ऐसी सुखी सृष्टि स्थापन कर जाता हूँ कि फिर मेरे कार्य की आवश्यकता ही नही रहती । मैं सभी धर्मों की, आत्मओं को उनकी आदिम अवस्था में टिकाता हूँ और उन्हे पवित्र करके, सभी का पण्डा बन कर उन्हें मुक्तिधाम या जीवनमुक्तीधाम (वैकुण्ठ) में ले जाता हूँ और यह सृष्टि नाटक फिर सतयुग से पुनरावृत्त होता है । इससे पूर्व तो सृष्टि का विनाश होना ही नही होता और सभी आत्माएँ अपनी चारों अवस्थाओं में से गुजरी ही नही होती । अत: इससे पहले मेरे अवतरा और कर्तव्य की आवश्यकता ही नही होती ।


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