Saturday 29 October 2011

शिव अलग है और शंकर अलग है मनुष्य क्या कहते और मानते आये हैं ? शिव और शंकर एक ही देवता के दो नाम है । वे कहते हैं कि वास्तव में ब"ह्म-विष्णु और शंकर एक परमात्मा ही के तीन कर्तव्य वाचक नाम है अर्थात वह परमात्मा ही ये तीन रुप धारण करके तीन कर्तव्य करता है और इसलिए इन तीनों नामों से प्रसिद्ध है । अत: इन तीनों देवताओं को भी भगवान ही मानना चाहिए, क्योंकि वे स्वयं भगवान ही के रुप है, भेद कुछ भी नही है । ऊपर लिखे मत की असत्यता को समझने के लिए निम्नलिखित प्रश्नों पर विचार कीजिए - 1. यदि शिव और शंकर एक ही देवता के दो नाम होते तो शिव की प्रतिमा अण्डाकार (शिवलिंग) तथा शंकर की प्रतिमा देवाकार अर्थात अलग-अलग रुप वाली क्यों होती है ? 2. जबकि शिव के अवतरण के स्मरणोत्सव को सदा शिवरात्रि ही कहा जाता है न कि शंकर रात्रि तो शिव और शंकर को अलग-अलग क्यों न माना जाय ? 3. जबकि ब"ह्मा-विष्णु-शंकर और शिव की अलग-अलग प्रतिमायें मिलती है और जबकि उनके तथा उनकी पुरियों (धामों) के अलग -अलग है और कि यह एक परमात्मा ही के तीन कर्तव्य वाचक नाम नही है, न ही ये एक परमात्मा ही के तीन भिन्न-भिन्न रुप है बल्कि अशरीरी परमात्मा शिव इनसे अलग है ?


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