5000 स्कूल कॉलेजो में और 800 जेलों कारागृह में नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाया है जिससे इनका नाम इंडिया बुक रिकार्ड में दर्ज है ब्रह्माकुमारीज़ माउंट आबू में ईश्वरीय सेवा में 35 वर्षो से समर्पित है.
Saturday, 29 October 2011
सहज राजयोग का हठयोग और तत्वयोग से महान अन्तर 3. जबकि कर्म संन्यासी सुख को घृणित काकविष्ठा के समान मानते हैं और विश्व को भी मिथ्या मानते हैं और राज्य भाग्य का भी संन्यास कर देते हैं तो वे भला विश्व का चक्रवर्ती एवं दैवी स्वराज्य दिलाने वाला सहज राजयोग कैसे सिखला सकते हैं ? 4. जबकि योग का अर्थ आत्मा का परमात्मा से सूक्ष्म (बुद्धि से) सम्बन्ध जोडना है, जोकि ऍट चूका है तो उसके लिए शारीरिक क्रियाओं को करने की क्या आवश्यकता है ? 5. जबकि योग में मन-बुद्धि को टिकाने के लिए योग से होने वाली प्राप्ति का ज्ञान होना आवश्यक है और जबकि कर्म संन्यासी लोग ब्रह्म में लीन होने के अतिरिक्त स्वर्गिक सुख-प्राप्ति, जीवनमुक्ति आदि की प्राप्ति का महत्व मानते ही नही तो क्यों न माना जाय कि वे प्राणायाम आदि को दमन ही के लिए अपनाते हैं ? 6. जबकि यह संसार प्रवृत्ति मार्ग का बना है तो क्या वास्तविक योग ऐसा सहज नही होना चाहिए जिसे कि माताएँ-कन्याएँ तथा कार्य-व्यवहार में रहने वाले मनुष्य भी कर सकें ? 7. जबकि किसी को कष्ट देना हिंसा कहलाता है तो क्या हठ आदि क्रियाओं द्वारा स्वयं को व्यर्थ ही कष्ट देना भी एक प्रकार की हिंसा करना नहीं है ? 8. जबकि एक ज्योति स्वरुप परमात्मा शिव ही
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