Saturday, 29 October 2011

आत्मा और परमात्मा का वास्तविक सम्बन्ध वत्सो, अहम्‌ ब्रह्म अस्मि कहना इतना ही गलत है जितना कि यह हना कि अहम्‌ आकाशास्मि अथवा अहम्‌ गृह अस्मि कहना, क्योंकि ब्रह्म तो धाम का नाम है और अहम (आत्मा) उस धाम में रहने वाले का नाम है । वत्सो, जो लोग ब्रह्म तत्व को परमात्मा मानकर उससे योग साधते रहे हैं, उनकी इच्छा पूर्ण करने के लिए मैं उनको उस तत्व का साक्षात्कार भी करता रहा हूँ परन्तु उन तत्व द्रष्टा ऋषियों को यह मालूम न होने के कारण कि ज्योतिस्वरुप परमात्मा शिव ब्रह्म तत्व से अलग है, वे भ्रम के वश ब्रह्म का ही सर्वव्यापक परमात्मा मानते आये हैं । वत्सो, आपको वास्तवमें ब्रह्म तत्व से योग नही लगाना चाहिए क्योंकि ब्रह्म तो ज्ञान, शान्ति और आनन्द का सागर है, न ही मुक्ती और जीवनमुक्ती का दाता या परमपिता एवं सद्‌गुरु है, बल्कि वह तो एक अचेतन तत्व है और मेरा तथा मुक्ती अवस्था में आप आत्माओं का भी धाम है । आपका योग तो ब्रह्म धाम के निवासी मुझ ज्योति स्वरुप, अशरीरी, सर्वशक्तीमान, ज्ञान के सागर, शान्ति के सागर, आनन्द के सागर, प्रेम के सागर, पतित-पावन परमपिता शिव ही से होना चाहिए क्योंकि मुक्ती और जीवनमुक्ती रुपी ईश्वरीय विरासत तो मुझ परमपिता से प्राप्त हो सकती है ।


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