Saturday 29 October 2011

परमात्मा का दिव्य नाम और दिव्य रुप क्या है ? मनुष्य क्या मानते और कहते आये हैं ? मनुष्य कहते आये हैं कि परमात्मा नाम और रुप से न्यारा है क्योंकि नाम और रुप वाली चीजें आदि तथा अन्त वाली अर्थात विनाशी होती है जबकि परमात्मा अनादि और अविनाशी है । कोई भी रुप न होने के कारण ही ज्योति स्वरुप परमात्मा को निराकार कहा गया है । ऊपर लिखे गये मत की असत्यता को समझने के लिए निम्नलिखित प्रश्नों पर विचार कीजिये - 1. यदि परमप्रिय परमपिता परमात्मा का कोई नाम नहीं तो भक्तजन और साधुजन जप किसका करते हैं ? यदि परमपिता परमात्मा का कोई रुप नहीं है तो भक्त और साधु लोग भगवान्‌ के दर्शन के लिए भक्ति, पूजा, साधना आदि क्यों करते हैं ? 2. जबकि मनुष्य को परमात्मा केसाक्षात्कार की अथवा मिलन की बडी इच्छा रहती है और जबकि दिव्य चक्षु, जिस द्वारा परमात्मा का दर्शन हो सकता है, को एक बहुत बडा वरदान माना जाता है तो यह क्यों न माना जाय कि परमात्मा का कोई दिव्य रुप अवश्य ही हैं जिस कि दिव्य चक्षु द्वारा ही देखा जा सकता है ? 3. जबकि लम्बा शब्द छोटा की भेट में गरम शब्द ठडा की भेट में और इस प्रकार अन्य विशेषण भी दूसरे शब्दों की तुलना में प्रयोग किये जाते हैं तो निराकार शब्द का प्रयोग साकार तथा सूक्ष्माकार की भेंट में क्यों न माना जाये और इस शब्द का यह अर्थ क्यों न लिया जाए कि परमात्मा का कोई स्थूल या प्रकाशमय शरीर एवं शारीरिक रुप तो नहीं है, परन्तु जैसे आत्मा ज्योति स्वरुप और अणु रुप है वैसे ही परमात्मा भी ज्योति बिन्दु हैं ? 4. जबकि बिन्दु अथवा अणु की कोई लम्बाई-चौडाई नही होती और उसका कोई कोण या मापने योग्य आकार नही होता अर्थात्‌ जबकि बिन्दु को नराकार कहा जा सकता है तो परमात्मा के बारे में निराकार शब्द का यह अर्थ क्यों न लिया जाए कि परमात्मा ज्योति बिन्दू हैं ?


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