Saturday 29 October 2011

भारत के आदि सनातन वासियों के धर्म का वास्तविक नाम हूँ और इस ज्ञान को धारण करने वाले नर नारी ब्रह्मामुख वंशी ब्राह्मण ब्राह्मणियॉं कहलाते हैं और वे ही भविष्य में अर्थात सतयुग तथा त्रेतायुग में देवी-देवता पद प्राप्त करते हैं । अत: वत्सो, इस धर्म का स्थापक में निराकार परमपिता परमात्मा शिव ही हूँ ज्योकि प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा इसकी स्थापना करता हूँ और उसका धर्म शास्त्र (गीता) संसार के सभी शास्त्रों में से शिरोमणि श्रीमद्‌‌‌भगवदगीता ही है न कि वेद या उपनिषद क्योंकि वे तो ऋषियों द्वारा अर्थात मनुष्यों द्वारा सुनाये गये । वत्सो, आज भारत के आदिम लोगो की यह दशा है कि वे अपने धर्म के वास्तविक नाम, धर्म के स्थापक, स्थापना के समय ओर शास्त्र के नाम से भी परिचित नही है और अपने स्थापक परमात्मा के महावाक्यों के ग्रन्थ गीता की बजाय अन्याय मनुष्यों के ग्रन्थों को अपने ग्रन्थ मान बैठे हैं और स्वयं हिन्दू कहलाने लगे हैं और दूसरे धर्मों को आना लेते हैं । अत: जबकि धर्म की ऐसी ग्लानि है तो इसकी पुन: स्थापना के लिये मैं फिर अवतरित हुआ हूँ ।


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