Saturday 29 October 2011

परमात्मा सर्वव्यापक नहीं है, त्रिकालदर्शी व ज्ञान का सागर है 3) जबकि हम यह देखते है कि किसी नाटक का कोई निर्देशक या रचयिता उस नाटक के अभिनेताओं और दृश्य-स्थलों में सर्वव्यापक न होते हुए भी सर्व एक्टर्स के पार्ट के आदि-मध्य-अन्त को जानता है और फिर जबकि हम यह भी देखते हैं कि टेलीविजन आदि साधनों से दूर की वस्तु को भी देखा जा सकता है तो क्यों न माना जाय कि परमात्मा, जो कि सभी आत्माओं का परमपिता है और इस सृष्टि नाटक का अनादि साक्षी, द्रष्टा और ज्ञाता है और दिव्य दृष्टी रुपी साधन से सम्पन्न है, वह हर-एक आत्मा मे व्यापक न होते हुए भी उसके आवागमन अथवा पार्ट के आदि मध्य-अन्त की कहानी को जानता ही है ? 4) जबकि किसी स्थान में व्यापक होने पर केवल वहॉं वर्तमान ही को देखा जा सकता है न कि भविष्य को और जबकि भविष्य को जानने के लिए, होने वाले वृत्तान्तों का पूर्व निश्चित होना तथा आत्मा का कर्मातीत, पूर्ण पवित्र एवं स्वरुप स्थित (योग स्थित) होना जरुरी है न कि व्यापक होना तो ऐसा क्यों न माना जाय कि इस सृष्टि रुपी नाटक में हर एक वृत्तान्त के पूर्व निश्चित होने के कारण तथा परमात्मा के कर्मातीत, जन्म-मरण से न्यारा और परम पवित्र एवं स्वरुपस्थ होने के कारण ही परमात्मा तीनों कालों को जानता हे न कि सर्वव्यापक होने के कारण ? 5) जबकि हम देखते हैं कि मनुष्यात्मा एक अणु


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