Wednesday 4 November 2020

 

अंतिम समय की सेवा, स्थिति और नज़ारे 

अंतिम समय : सेवा, नज़ारे, और पुरुषार्थ की स्थिति

कम्बाइन्ड स्वरूप व अन्तःवाहक शरीर द्वारा डबल सेवा :

*मैं, आत्मा अपने स्वमान की स्मृति के साथ परमात्मा से कम्बाइन्ड होकर इस कम्बाइन्ड स्वरूप द्वारा आखिरी अंतिम समय की बेहद सेवा कर सकती हूँ* । यह इस कम्बाइन्ड स्वमान वाले चित्र में दर्शाया गया है ।

अंतिम समय जब *विश्वयुद्ध, गृहयुद्ध, भयंकर रोग, प्राकृतिक आपदाओं* के कारण संसार में विनाशकारी तांडव विकराल रूप धारण कर चुका होगा तब स्थूल सेवा की कोई गुंजाइश नहीं रहेगी उस समय हमारे संपूर्ण स्वरुप याने *अव्यक्त आकारी डबल लाइट फ़रिश्ता स्वरुप* की स्थिति द्वारा *शिव-शक्ति कम्बाइन्ड स्वरुप* में स्थित हो *डबल सेवा* करनी पड़ेगी ।

*डबल सेवा* याने *१) संकल्पों व चलन चेहरे दृष्टी द्वारा सेवा २) अन्तःवाहक स्वरुप द्वारा सेवा* जिसमें सूक्ष्म शरीर और निराकारी स्वरुप इमर्ज रूप में डबल लाइट स्वरुप में होते हैं । *परमपिता शिव परमात्मा* की *प्रत्यक्षता* भी इसके द्वारा होगी । सतयुग में आत्मा (निराकारी स्वरुप) और सूक्ष्म शरीर (फ़रिश्ता स्वरुप) इमर्ज रूप में होते हैं अर्थात शरीर होते हुए भी नाम मात्र रहता है याने देह भान नहीं रहता, बिलकुल लाइट, कोई विकर्म नहीं होता ।

अब *अंतिम समय परमधाम जाने से पहले* निराकारी स्वरुप व आकारी फ़रिश्ता स्वरुप गुणों के इमर्ज (emerge) रूप में और देहभान (body consciousness) मर्ज (merge) रूप में रहे, *ruling controlling power* इतनी रहे कि जब चाहो इस देह से *डिटैच* (detach) हो निराकारी, आकारी रूप से डबल सेवा कर सको । यह सेवा वही आत्मा कर सकेगी जिसने अपनी स्थिति को लम्बे काल से ज्ञान और योग के अभ्यास द्वारा *श्रेष्ठ और ऊँचा* बनाया है, जिसका संकल्प शक्ति पावरफुल है और जिसमें बेहद की दृष्टी तथा वैराग्य है । चूँकि हम मुक्तिधाम और जीवनमुक्ति धाम का मार्ग दिखाने के निमित्त आत्माएं हैं हमारी दृष्टि से *सुख शान्ति की प्यासी, दुःख पीड़ा से ग्रसित, भयभीत आत्माओं* को दोनों मार्ग दिखाई देगा अर्थात एक आँख में *मुक्तिधाम* और दूसरे आँख में *जीवनमुक्ति धाम* का रास्ता दिखाई देगा । विनाश समय *अनुभव की अथॉरिटी* होगी तो *मुक्ति जीवनमुक्ति* दे सकते हैं । सतयुग-त्रेता में धर्मसत्ता (religious authority) और राज्य सत्ता ( ruling authority) दोनों रहता है जो आत्मा के यथार्थ ज्ञान पर आधारित होता है, द्वापर में राज्य सत्ता (ruling authority) देह अभिमान पर आधारित होता है ,कलियुग में ज्ञान सत्ता (science authority) होने पर भी सभी राज्य सत्ता और धर्मसत्ता प्रभावहीन हो जाते हैं और संगमयुग पर प्राप्ति का आधार है योगसिद्धि अथवा अनुभव की अथॉरिटी ( authority of experience ) ।

*वर्तमान अंत समय* में बाबा को *निराकारी, आकारी स्वरुप में स्थित* ज्यादा परसेंटेज वाले बच्चों की मांग है जो सूक्ष्मवतन में निराकारी आकारी स्वरुप द्वारा सेवा दे सकते हैं । ऐसी आत्माएं किसी के भी सूक्ष्म शरीर, अवचेतन मन को सक्रिय तथा सूक्ष्म /सुप्त शक्तियों को जागृत कर सकते हैं

*उर्ध्वरेता योगी, शिवयोगी, राजऋषि, अव्यभिचारी याद, परकाया प्रवेश* ये सभी अन्तःवाहक शरीर से सम्बंधित हैं जिसका *राजयोग के अभ्यास* से कनेक्शन है ।

इसलिए आज *डबल सेवा की मांग* है । इससे आप किसी के मन को वा संस्कारों को change कर सकते हैं । यही *संपन्न, संपूर्ण* बनाने के लिए सेवा का *रीफाइन स्वरुप* (refine form) है जो *उंच स्थिति* वाले ही कर सकते हैं । इसके लिए आप को मन की *स्थिरता* और बुद्धि की *एकाग्रता* बढ़ानी पड़ेगी जो *अमृतवेला पावरफुल* बनाने से होगा क्योंकि यही आत्मा को शक्तिशाली बनाने के लिए वरदानी समय है, दूसरी बात जितना हो सके व्यर्थ संकल्प अथवा विकल्प से मुक्त रहने का अभ्यास करें और *समर्थ संकल्पों* में स्थित होने का प्रयास करें तो व्यर्थ से बच जायेंगे जिससे मानसिक उर्जा की बचत होगी, तीसरी बात, दिन में कई बार बीच बीच में शरीर से *डिटैच* हो *डबल लाइट फ़रिश्ता स्वरुप* का अनुभव करते रहें । चौथी बात, *दृष्टि शुद्ध आत्मिक* रहे इस पर भी सतत अटेंशन रहे क्योंकि देहभान ही संकल्प द्वारा सेवा और उड़ती कला में जाने में सबसे बड़ा बाधक है । आखिरी बात, *मौन अथवा साइलेंस* का अधिक से अधिक पालन करें क्योंकि इससे हम व्यर्थ बोल से मुक्त रहेंगे, संकल्प शक्ति की बचत होगी, अंतर्मुखी होने में मदद मिलेगी जिससे एकरस अवस्था में स्थित रहना आसान होगा ।

( *नोट : मनसा सेवा और सकाश में कौन सी बातें शामिल होती है ,वाइब्रेशन और सकाश में अंतर, लाइट और माइट / योग और याद में अंतर, योग की विभिन्न अवस्थाएं इन सभी बातों का विस्तार नीचे pdf में दिया गया है* । )

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*अंतिम नज़ारे व स्थिति :*

हलचल वाली *दर्दनाक सीन* का दृश्य अपने मानस पटल पर लायें । पुरानी कलियुगी दुनिया की *सफाई* शुरू हो चुकी है । धरती कांप रही है, भारत के कुछ उत्तरी हिस्सों को छोड़ सभी खंड समुद्र की विराट सुनामी लहरों में जल समाधि ले रहे हैं, सूर्य की भयानक तपत , ज्वालामुखी के रूद्र रूप एवं परमाणु बम की अग्नि में सभी कुछ स्वाहा (ख़ाक) हो रहा है, वायु की विकराल गति से समस्त प्राकृतिक स्त्रोत एवं मानव कृत कृत्रिम वैज्ञानिक आधार नष्ट हो रहे हैं जिससे बाह्य एवं भीतर अंधाकार छा गया है ।आकाश तत्व विनाशकारी गूंजो एवं विषारी प्रदूषणों का मूक द्रष्टा बन गया है ।

विश्व के लगभग सभी *७०० करोड़ आत्मायें, प्राणी जीव जंतु* अपना अपना चोला छोड़ परमधाम (मुक्ति धाम) की ओर प्रस्थान कर रही हैं । सभी आत्माएं देह से सम्बंधित *नाम, मान, शान, पद, व्यक्ति, वस्तु, वैभव, स्थूल संपत्ति,जमीन, जायदाद इत्यादि* सब कुछ यहीं पर छोड़ ... जहाँ का था उसी को सुपुर्द कर जन्मजन्मान्तर के *कर्मों के हिसाब किताब चुक्तू* कर अपने वास्तविक *आत्म ज्योति स्वरुप* में अनादि *रूहानी शिवपिता* के साथ उड़ने की तैयारी कर रही हैं।

सभी ब्राह्मण आत्माएं अपने *शांति स्वधर्म* में टिके हुए हैं । *नवयुग* और *नयी राजधानी* का साक्षात्कार कर रहे हैं । वो *हाय हाय* और हमारे भीतर *वाह वाह* के गीत निकल रहे हैं ! *वाह बाबा ! वाह कल्याणकारी ड्रामा ! वाह मेरा भाग्य !* सभी का पुरानी दुनिया से बेहद का वैराग्य हो चुका है, एक बाबा से सर्व रस, सर्व सम्बन्ध, बस यही एक समान संकल्प की धुन लगी है *“अब बाप अथवा साजन के साथ अपने घर ( परमधाम ) लौटना है फिर सतोप्रधान नयी सतयुगी दैवी दुनिया के देवताई चोला में आना है ”* ।

हम *पूर्वज, महादानी, वरदानी विश्वकल्याणकारी, आधारमूर्त,उद्धारमूर्त ,रहमदिल* की स्टेज पर स्थित हो सभी का उद्धार कर रहे हैं, *लाइट हाउस* बन सभी को मुक्ति- जीवन मुक्ति का रास्ता दिखा रहे हैं, *मास्टर सद्गुरु* बन सद्गति दे रहे हैं एवं *मास्टर भगवान* बन भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण कर रहे हैं ।

सभी आत्माएं भी संतुष्ट होकर महिमा के गीत गाते हुए गंतव्य स्थान की ओर बढ़ रहे हैं : *प्रभु तेरी लीला अपरम्पार, तेरी गति मति तू ही जाने* । ओम शांति

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