Saturday 29 October 2011

आत्मा क्या है और मन क्या है ? अपने सारे दिन की बातचीत में मनुष्य प्रतिदिन न जाने कितनी बार मै शब्द का प्रयोग करता है I परन्तु यह एक आश्चर्य की बात है कि प्रतिदिन मै और मेरा शब्द का अनेकानेक बार प्रयोग करने पर भी मनुष्य यथार्थ रूप में यह नहीं जानता कि मैं कहने वाली सत्ता का स्वरूप क्या है अर्थात में शब्द जिस वस्तु का सूचक है वह क्या है ? आज मनुष्य ने साइंस द्वारा बड़ी-बड़ी शक्तिशाली चीजे तो बना डाली है,उसने संसार की अनेक पहेलियो का उत्तर भी जन लिया है और वह अन्य अनेक जटिल समस्याओ का हल निकलने में लगा है परन्तु में कहलाने वाला कौन है, इसके बारे में वह सत्यता को नहीं जानता अर्थात वह स्वयं को नहीं पहचानता I आज किसी मनुष्य से पूछा जाय की " आप कौन है ?" अथवा "आपका क्या परिचय है ?" तो वह झट अपने शरीर का नाम बता देगा अथवा जो वह धंधा करता है वह उसका नाम बता देगा I

आत्मा क्या है और मन क्या है ?
अपने सारे दिन की बातचीत में मनुष्य प्रतिदिन न जाने कितनी बार मै शब्द का प्रयोग करता है I परन्तु यह एक आश्चर्य की बात है कि प्रतिदिन मै और मेरा शब्द का अनेकानेक बार प्रयोग करने पर भी मनुष्य यथार्थ रूप में यह नहीं जानता कि मैं कहने वाली सत्ता का स्वरूप क्या है अर्थात में शब्द जिस वस्तु का सूचक है वह क्या है ? आज मनुष्य ने साइंस द्वारा बड़ी-बड़ी शक्तिशाली चीजे तो बना डाली है,उसने संसार की अनेक पहेलियो का उत्तर भी जन लिया है और वह अन्य अनेक जटिल समस्याओ का हल निकलने में लगा है परन्तु में कहलाने वाला कौन है, इसके बारे में वह सत्यता को नहीं जानता अर्थात वह स्वयं को नहीं पहचानता I  आज किसी मनुष्य से पूछा जाय की " आप कौन है ?" अथवा "आपका क्या परिचय है ?" तो वह झट अपने शरीर का नाम बता देगा अथवा जो वह धंधा करता है वह उसका नाम बता देगा I
वास्तव में  " में " शब्द शरीर से भिन्न चेतन सत्ता "आत्मा " का सूचक है जैसा कि चित्र में दिखाया गया है I  मनुष्य (जीवात्मा) आत्मा और शरीर को मिलकर बनता है I जैसे शरीर पञ्च तत्वों ( जल, वायु ,अग्नि , आकाश और पृथ्वी ) से बना हुआ होता है वैसे ही आत्मा मन बुद्दि और संस्कारमय होती है I आत्मा में ही विचार करने और निर्णय करने की शक्ति होती है I तथा वह जैसा कर्म करती है उसी के अनुसार उसके संस्कार बनते है I
                  आत्मा एक चेतन एवं अविनाशी ज्योति-बिंदु है जो कि मानव देह में भृकुटी में निवास करती है इजैसे रात्रि को आकाश में जगमगाता हुआ तारा एक बिंदु-सा दिखाई देता है , वैसे ही दिव्य-दृष्टी द्वारा आत्मा भी एक तारे क़ी तरह दिखाई देती है इसीलिए  एक प्रसिद्द पद में कहा गया है -"भृकुटी में चमकता है एक अजब तारा , गरीबा नूं साहिबा  लगदा ए प्यारा I आत्मा का वास भृकुटी में होने के कारण ही मनुष्य गहराई से सोचते समय यहीं हाथ लगाता आत्मा एक चेतन एवं अविनाशी ज्योति-बिंदु है जो कि मानव देह में भृकुटी में निवास करती है इजैसे रात्रि को आकाश में जगमगाता हुआ तारा एक बिंदु-सा दिखाई देता है , वैसे ही दिव्य-दृष्टी द्वारा आत्मा भी एक तारे क़ी तरह दिखाई देती है इसीलिए  एक प्रसिद्द पद में कहा गया है -"भृकुटी में चमकता है एक अजब तारा , गरीबा नूं साहिबा  लगदा ए प्यारा I आत्मा का वास भृकुटी में होने के कारण ही मनुष्य गहराई से सोचते समय यहीं हाथ लगता आत्मा एक चेतन एवं अविनाशी ज्योति-बिंदु है जो कि मानव देह में भृकुटी में निवास करती है इजैसे रात्रि को आकाश में जगमगाता हुआ तारा एक बिंदु-सा दिखाई देता है , वैसे ही दिव्य-दृष्टी द्वारा आत्मा भी एक तारे क़ी तरह दिखाई देती है इसीलिए  एक प्रसिद्द पद में कहा गया है -"भृकुटी में चमकता है एक अजब तारा , गरीबा नूं साहिबा  लगदा ए प्यारा I आत्मा का वास भृकुटी  में होने के कारण ही मनुष्य गहराई से सोचते समय यहीं हाथ लगाता है I जब वह यह कहता है कि मेरे तो भाग्य खोटे है , तब भी वह यहीं हाथ लगता है I आत्मा का यहाँ वास होने के कारण ही भक्त-लोगो में यहा ही बिंदी अथवा तिलक लगाने क़ी प्रथा है  I यहाँ आत्मा का सम्बन्ध मस्तिस्क से जुड़ा है और मस्तिष्क का सम्बन्ध शरीर में फैले ज्ञान-तंतुओ से है I आत्मा ही में पहले संकल्प उठता है और फिर मस्तिस्क तथा तंतुओ द्वारा व्यक्त होता है I आत्मा   ही शांति अथवा दुःख का अनुभव करती तथा निर्णय करती है और उसी में संस्कार रहते है I अत: मन और बुद्दि आत्मा से अलग नहीं है I परन्तु  आज आत्मा स्वयं को भूलकर देह -स्त्री , पुरुष ,बुड़ा , जवान इत्यादी मान बैठी है I यह देह-अभिमान ही दुःख का कारण है इ
            उपरोक्त रहस्य को मोटर के ड्राईवर के उदाहरण द्वारा भी स्पष्ट किया गया है इ शरीर मोटर के समान है तथ आतम इसका ड्राईवर है , अर्थात जैसे ड्राईवर मोटर का नियंत्रण करता है , उसी प्रकार आत्मा शरीर का नियत्रण करती है I आत्मा के बिना शरीर निष्प्राण है , जैसे ड्राईवर के बिना मोटर I अत: परमपिता  परमात्मा कहते है कि अपने आपको पहचानने से ही मनुष्य इस शरीर रूपी मोटर को चला सकता है और अपने लक्ष्य ( गंतव्य स्थान ) पर पहुँच सकता है अन्यथा जैसे कि ड्राईवर कर चलाने में निपुण न होने के कारण दुर्घटना (एक्सिडेंट) का शिकार बन जाता है और कार और उसके यात्रियों को भी चोट लगती है, इसी प्रकार जिस मनुष्य को अपनी पहचान नही है वह स्वयं तो दु:खी और अशांत होता ही है, साथ ही अपने संपर्क में आने वाले मित्र संबंधियों को भी दु:खी व् अशांत बना देता है I अत: सच्चे सुख व् सच्ची शांति के लिए स्वयं को जानना अति आवश्यक है I 

तीन लोक कौन से है और शिव का धाम कौनसा है ? इन पुरियो के भी पार एक और लोक है जिसे ब्रह्मलोक , परलोक , मुक्तिधाम , शांतिधाम , शिवलोक इत्यादी नामो से यद् किया जाता है इसमे सुनहरे लाल रंग का प्रकाश फैला हुआ है जिसे ही ब्रह्म-तत्व , छठा तत्व अथवा महातत्व कहा जा सकता है इसके अंशमात्र ही में ज्योतिर्बिंदु आत्माये मुक्ति की अवस्था में रहती है यहाँ हरेक धर्म की आत्माओ के संस्थान है I उन सभी के ऊपर , सदा मुक्त ,चेतन्य , ज्योतिबिंदु रूप परमात्मा "सदाशिव " का निवास स्थान है इस लोक में मनुष्यात्मा कल्प के अंत में , सृष्टि का महाविनाश होने के बाद अपने-अपने कर्मो का फल भोग कर तथा पवित्र होकर ही जाती हैI यहाँ मनुष्यात्मा देह बंधन ,कर्म-बंधन तथा जन्म मरण से रहित होती है यहाँ न संकल्प है , न वचन और न कर्म इ इस लोक में परमपिता परमात्मा शिव के सिवाय अन्य कोई "गुरु " इत्यादी नही ले जा सकता इस लोक में जाना ही अमरनाथ ,रामेश्वरम अथवा विश्वेश्वर नाथ की सच्ची यात्रा करना है, क्योंकि अमरनाथ परमपिता शिव यही रहते है I

 तीन लोक कौन से है
     और
         शिव का धाम कौनसा है ?
मनुष्यात्माये मुक्ति अथवा पूर्ण शांति की शुभ इच्छा तो करती है परन्तु उन्हें यह मालूम नही है की मुक्तिधाम अथवा शांतिधाम है कहाँ ? इसी प्रकार , परम प्रिय परमात्मा शिव से मनुष्यात्माये मिलना तो चाहती है और उसे याद भी करती है परन्तु उन्हें यह मालूम नही है कि वह पवित्र धाम कहाँ है जहा से आकर परमपिता शिव इसी सृष्टि पर अवतरित होते है ? यह कितने अश्च्चार्य की बात है की जहाँ से हम सभी मनुष्यात्माये सृष्टि रूपी रंगमंच पर आयी है, उस प्यारे देश को सभी भूल गयी है और वापिस भी नही जा सकती I
                              १. साकार मनुष्य लोक -सामने चित्र में दिखाया गया है कि एक है यह साकार मनुष्य लोक जिसमे इस समय हम है ईसमे सभी आत्माए हड्डी-मांसादी का स्थूल शरीर लेकर कर्म करती है और उसका फल सुख दुःख के रूप में भोगती है तथा जन्म-मरण के चक्कर में भी आती है I  इस लोक में संकल्प , ध्वनि और कर्म तीनो है I इसे ही " पञ्च तत्वों कि सृष्टि अथवा "कर्म- क्षेत्र "भी कहते है इ यह सृष्टि आकाश तत्व के अंश मात्र में है इ इसे सामने त्रिलोक के चित्र में दिखाया गया है क्योंकि इसके बीज रूप परमात्मा शिव , जो कि जन्म -मरण से न्यारे है , ऊपर रहते है I
                             २. सूक्ष्म देवताओ का लोक -इस मनुष्य लोक के सूर्य तथा तारागण के पार तथा आकाश  तत्व के भी पार एक सूक्ष्म  लोक है जहा प्रकाश ही प्रकाश है उस प्रकाश के अंश-मात्र में ब्रह्मा , विष्णु तथा महादेव शंकर की अलग अलग पुरिया है इन देवताओं के शरीर  हड्डी-मांसादी के नहीं बल्कि प्रकाश के है इन्हें दिव्य चक्षुओ के द्वारा ही देखा जा सकता है यहाँ दुःख अथवा अशांति नही होती यहाँ संकल्प तो होते है और क्रियाए भी होती है और बातचीत भी होती है परन्तु आवाज नही होती I
                             ३. ब्रह्मलोक और परलोक - इन पुरियो के भी पार एक और लोक है जिसे ब्रह्मलोक , परलोक , मुक्तिधाम , शांतिधाम , शिवलोक इत्यादी नामो से यद् किया जाता है इसमे सुनहरे लाल रंग का प्रकाश फैला हुआ है जिसे ही ब्रह्म-तत्व , छठा तत्व अथवा महातत्व कहा जा सकता है इसके अंशमात्र ही में ज्योतिर्बिंदु आत्माये मुक्ति की अवस्था में रहती है यहाँ हरेक धर्म की आत्माओ के संस्थान है I
                           उन सभी के ऊपर , सदा मुक्त ,चेतन्य , ज्योतिबिंदु रूप परमात्मा "सदाशिव " का निवास स्थान है इस लोक में मनुष्यात्मा कल्प के अंत में , सृष्टि का महाविनाश होने के बाद अपने-अपने कर्मो का फल भोग कर तथा पवित्र होकर ही जाती हैI  यहाँ मनुष्यात्मा देह बंधन ,कर्म-बंधन तथा जन्म मरण से रहित होती है यहाँ न संकल्प है , न वचन और न कर्म इ इस लोक में परमपिता परमात्मा शिव के सिवाय अन्य  कोई "गुरु " इत्यादी नही ले जा सकता इस लोक में जाना ही अमरनाथ ,रामेश्वरम अथवा विश्वेश्वर नाथ की सच्ची यात्रा करना है, क्योंकि अमरनाथ परमपिता शिव यही रहते है I

परमपिता परमात्मा शिव बाबा परमपिता परमात्मा का नाम "शिव" है "शिव" का अर्थ "कल्याणकारी" है Iपरमपिता परमात्मा शिव ही ज्ञान के सागर ,शांति के सागर, आनंद के सागर और प्रेम के सागर हैI वह ही पतितो को पावन करने वाले , मनुष्यमात्र को शांतिधाम तथा सुखधाम की रह दिखाने वाले , विकारो तथा काल के बंधन से छुड़ाने वाले और सब प्राणियों पर रहम करने वाले है Iमनुष्यमात्र को मुक्ति और जीवनमुक्ति का अथवा गति और सत्गति का वरदान देने वाले भी एकमात्र वही है वह दिव्य बुद्दि के डाटा और दिव्य दृष्टी के वरदाता भी है मनुष्यात्माओ को ज्ञान रूपी सोम अथवा अमृत पिलाने वाले तथा अमर पद का वरदान देने के कारण "सोमनाथ" तथा "अमरनाथ" इत्यादि नाम भी उन्ही के है ओः जन्म मरण से सदा मुक्त , सदा अकरस ,सदा जगती ज्योति, सदा शिव है I

एक आश्चर्यजनक बात
              प्राय: सभी  मनुष्य परमात्मा को "हे पिता " " हे दु:खहर्ता और सुखकर्ता प्रभु " इत्यादी सम्बन्ध सूचक शब्दों से याद करते है I परन्तु यह कितने आश्चर्य की बात है की जिसे वे "पिता" कहकर बुलाते है उसका सत्य और स्पष्ट परिचय उन्हें  नही है और उसके साथ उनका अच्छी रीती स्नेह ओउए सम्बन्ध भी नही है परिचय और स्नेह न होने के कारण परमात्मा को याद करते समय भी उनका मन एक ठिकाने पर नही टिकता इसलिए , उन्हें परमपिता परमात्मा से शांति तथा सुख का जो जन्म सिद्ध अधिकार प्राप्त होना चाहिए वह प्राप्त नही होता वे न तो परमपिता परमात्मा के मधुर मिलन का सच्चा सुख अनुभव कर सकते है , न उससे लाइट (प्रकाश) और माईट (शक्ति) ही प्राप्त कर सकते हे और न ही उनके संस्कारो तथा जीवन में कोई विशेष परिवर्तन ही आ पाता है I इसीलिए हम यहाँ उस परम प्यारे परमपिता परमात्मा का सक्षिप्त परिचय दे रहे है जो की स्वयं उन्होंने ही लोक-कल्याणार्थ हेम समझाया है और अनुभव कराया है  I
                  परमपिता परमात्मा का दिव्य नाम और उनकी महिमा
      परमपिता परमात्मा का नाम "शिव" है "शिव" का अर्थ "कल्याणकारी" है Iपरमपिता परमात्मा शिव ही ज्ञान के सागर ,शांति के सागर, आनंद के सागर और प्रेम के सागर हैI वह ही पतितो को पावन करने वाले , मनुष्यमात्र को शांतिधाम तथा सुखधाम की रह दिखाने वाले , विकारो तथा काल के बंधन से छुड़ाने वाले और सब प्राणियों पर रहम करने वाले है  Iमनुष्यमात्र को मुक्ति और जीवनमुक्ति का अथवा गति और सत्गति का वरदान देने वाले भी एकमात्र वही है वह दिव्य बुद्दि के डाटा और दिव्य दृष्टी के वरदाता भी है मनुष्यात्माओ को ज्ञान रूपी सोम अथवा अमृत पिलाने वाले तथा अमर पद का वरदान देने के कारण "सोमनाथ" तथा "अमरनाथ" इत्यादि नाम भी उन्ही के है ओः जन्म मरण से सदा मुक्त , सदा अकरस ,सदा जगती ज्योति, सदा शिव है I
                                        परमपिता परमात्मा का दिव्य-रूप
              परमपिता परमात्मा का दिव्य-रूप एक "ज्योति बिंदु" के समान, deeye की लो जसा है वह रूप अति निर्मल ,स्वर्णमय लाल और मनमोहक है उस ज्योतिर्मय रूप को दिव्य-चक्षुओ द्वारा ही देखा जा सकता है और दिव्य बुद्दि द्वारा ही अनुभव किया जा सकता हैI परमपिता परमात्मा के उस "ज्योतिबिंदु" रूप की प्रतिमाये भारत में "शिवलिंग" नाम से पूजी जाती है और उनके अवतरण की याद में " महाशिवरात्रि" भी मनाई  जाती है I
                                                      "निराकार" का अर्थ 
             लगभग सभी धर्मो के अनुयायी परमात्मा को "निराकार" मानते है परन्तु इस शब्द से वे यह अर्थ लेते है की परमात्मा का कोई आकार (रूप)नही है अब परमपिता परमात्मा शिव कहते है कि ऐसा मानना  भूल   है वास्तव में निराकार का अर्थ यह है कि परमपिता "साकार" नही है, अर्थात न तो उनका मनुष्यों जैसा स्थूल -शारीरिक आकार है और न देवताओ जैसा सूक्ष्म सह्रिरिक आकार है बल्कि उनका रूप अशरीरी है और ज्योति-बिंदु के समान है "बिंदु" को तो निराकार ही कहेंगे Iअत: यह एक आश्चर्यजनक बात है कि परमपिता परमात्मा है तो सुक्ष्मातिसुक्ष्म , एक ज्योति-कण है परन्तु आज लोग प्राय: कहते है कि वह कण-कण में हैI

शिव सर्वआत्माओं के परमपिता हैं
परमपिता परमात्मा शिव का यही परिचय यदि सर्व मनुष्यात्माओं को दिया जाए
तो सभी सम्प्रदायों को एक सूत्र में बाँधा जा सकता है, क्योंकि परमात्मा
शिव का स्मृतिचि- शिवलिंग के रूप में सर्वत्र सर्वधर्मावलंबियों द्वारा
मान्य है। यद्यपि मुसलमान भाई मूर्ति पूजा नहीं करते हैं तथापिवे मक्का
में संग-ए-असवद नामक पत्थर को आदर से चूमते हैं। क्योंकि उनका यह दृढ़
विश्वास है कि यह भगवान का भेजा हुआ है। अतः यदि उन्हें यह मालूम पड़ जाए
कि खुदा अथवा भगवान शिव एक ही हैं तो दोनों धर्मों से भावनात्मक एकता हो
सकती है। इसी प्रकार ओल्ड टेस्टामेंट में मूसा ने जेहोवा का वर्णन किया
है। वह ज्योतिर्बिंदु परमात्मा का ही यादगार है। इस प्रकार विभिन्न
धर्मों के बीच मैत्री भावना स्थापित हो सकती है।

“परमात्‍मा एक है, वह निराकार एवं अनादि है। वे विश्‍व की सर्वशक्तिमान सत्‍ता है और ज्ञान के सागर है।” इस मूलभूत सिद्धांत का पालन करते हुए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍व विद्यालय इन दिनों विश्‍व भर में धर्म को नए मानदंडों पर परिभाषित कर रहा है। जीवन की दौड़-धूप से थक चुके मनुष्‍य आज शांति की तलाश में इस संस्‍था की ओर प्रवृत्‍त हो रहे हैं। यह कोई नया धर्म नहीं बल्कि विश्‍व में व्‍याप्‍त धर्मों के सार को आत्‍मसात कर उन्‍हें मानव कल्‍याण की दिशा में उपयोग करने वाली एक संस्‍था है। जिसकी विश्‍व के 72 देशों में 4,500 से अधिक शाखाएँ हैं। इन शाखाओं में 5 लाख विद्यार्थी प्रतिदिन नैतिक और आध्‍यात्मिक शिक्षा ग्रहण करते हैं। [संपादित करें]स्थापना इस संस्‍था की स्‍थापना दादा लेखराज ने की, जिन्‍हें आज हम प्रजापिता ब्रह्मा के नाम से जानते हैं। दादा लेखराज अविभाजित भारत में हीरों के व्‍यापारी थे। वे बाल्‍यकाल से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। 60 वर्ष की आयु में उन्‍हें परमात्‍मा के सत्‍यस्‍वरूप को पहचानने की दिव्‍य अनुभूति हुई। उन्‍हें ईश्‍वर की सर्वोच्‍च सत्‍ता के प्रति खिंचाव महसूस हुआ। इसी काल में उन्‍हें ज्‍योति स्‍वरूप निराकार परमपिता शिव का साक्षात्‍कार हुआ। इसके बाद धीरे-धीरे उनका मन मानव कल्‍याण की ओर प्रवृत्‍त होने लगा। उन्‍हें सांसारिक बंधनों से मुक्‍त होने और परमात्‍मा का मानवरूपी माध्‍यम बनने का निर्देश प्राप्‍त हुआ। उसी की प्रेरणा के फलस्‍वरूप सन् 1936 में उन्‍होंने इस विराट संगठन की छोटी-सी बुनियाद रखी। सन् 1937 में आध्‍यात्मिक ज्ञान और राजयोग की शिक्षा अनेकों तक पहुँचाने के लिए इसने एक संस्‍था का रूप धारण किया। इस संस्‍था की स्‍थापना के लिए दादा लेखराज ने अपना विशाल कारोबार कलकत्‍ता में अपने साझेदार को सौंप दिया। फिर वे अपने जन्‍मस्‍थान हैदराबाद सिंध (वर्तमान पाकिस्‍तान) में लौट आए। यहाँ पर उन्‍होंने अपनी सारी चल-अचल संपत्ति इस संस्‍था के नाम कर दी। प्रारंभ में इस संस्‍था में केवल महिलाएँ ही थी। बाद में दादा लेखराज को ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ नाम दिया गया। जो लोग आध्‍या‍त्मिक शांति को पाने के लिए ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ द्वारा उच्‍चारित सिद्धांतो पर चले, वे ब्रह्मकुमार और ब्रह्मकुमारी कहलाए तथा इस शैक्षणिक संस्‍था को ‘प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍व विद्यालय’ नाम दिया गया। इस विश्‍वविद्यालय की शिक्षाओं (उपाधियों) को वैश्विक स्‍वीकृति और अंतर्राष्‍ट्रीय मान्‍यता प्राप्‍त हुई है।


“परमात्‍मा एक है, वह निराकार एवं अनादि है। वे विश्‍व की सर्वशक्तिमान सत्‍ता है और ज्ञान के सागर है।” इस मूलभूत सिद्धांत का पालन करते हुए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍व विद्यालय इन दिनों विश्‍व भर में धर्म को नए मानदंडों पर परिभाषित कर रहा है। जीवन की दौड़-धूप से थक चुके मनुष्‍य आज शांति की तलाश में इस संस्‍था की ओर प्रवृत्‍त हो रहे हैं। यह कोई नया धर्म नहीं बल्कि विश्‍व में व्‍याप्‍त धर्मों के सार को आत्‍मसात कर उन्‍हें मानव कल्‍याण की दिशा में उपयोग करने वाली एक संस्‍था है। जिसकी विश्‍व के 72 देशों में 4,500 से अधिक शाखाएँ हैं। इन शाखाओं में 5 लाख विद्यार्थी प्रतिदिन नैतिक और आध्‍यात्मिक शिक्षा ग्रहण करते हैं। [संपादित करें]स्थापना इस संस्‍था की स्‍थापना दादा लेखराज ने की, जिन्‍हें आज हम प्रजापिता ब्रह्मा के नाम से जानते हैं। दादा लेखराज अविभाजित भारत में हीरों के व्‍यापारी थे। वे बाल्‍यकाल से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। 60 वर्ष की आयु में उन्‍हें परमात्‍मा के सत्‍यस्‍वरूप को पहचानने की दिव्‍य अनुभूति हुई। उन्‍हें ईश्‍वर की सर्वोच्‍च सत्‍ता के प्रति खिंचाव महसूस हुआ। इसी काल में उन्‍हें ज्‍योति स्‍वरूप निराकार परमपिता शिव का साक्षात्‍कार हुआ। इसके बाद धीरे-धीरे उनका मन मानव कल्‍याण की ओर प्रवृत्‍त होने लगा। उन्‍हें सांसारिक बंधनों से मुक्‍त होने और परमात्‍मा का मानवरूपी माध्‍यम बनने का निर्देश प्राप्‍त हुआ। उसी की प्रेरणा के फलस्‍वरूप सन् 1936 में उन्‍होंने इस विराट संगठन की छोटी-सी बुनियाद रखी। सन् 1937 में आध्‍यात्मिक ज्ञान और राजयोग की शिक्षा अनेकों तक पहुँचाने के लिए इसने एक संस्‍था का रूप धारण किया। इस संस्‍था की स्‍थापना के लिए दादा लेखराज ने अपना विशाल कारोबार कलकत्‍ता में अपने साझेदार को सौंप दिया। फिर वे अपने जन्‍मस्‍थान हैदराबाद सिंध (वर्तमान पाकिस्‍तान) में लौट आए। यहाँ पर उन्‍होंने अपनी सारी चल-अचल संपत्ति इस संस्‍था के नाम कर दी। प्रारंभ में इस संस्‍था में केवल महिलाएँ ही थी। बाद में दादा लेखराज को ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ नाम दिया गया। जो लोग आध्‍या‍त्मिक शांति को पाने के लिए ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ द्वारा उच्‍चारित सिद्धांतो पर चले, वे ब्रह्मकुमार और ब्रह्मकुमारी कहलाए तथा इस शैक्षणिक संस्‍था को ‘प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍व विद्यालय’ नाम दिया गया। इस विश्‍वविद्यालय की शिक्षाओं (उपाधियों) को वैश्विक स्‍वीकृति और अंतर्राष्‍ट्रीय मान्‍यता प्राप्‍त हुई है।


“परमात्‍मा एक है, वह निराकार एवं अनादि है। वे विश्‍व की सर्वशक्तिमान सत्‍ता है और ज्ञान के सागर है।” इस मूलभूत सिद्धांत का पालन करते हुए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍व विद्यालय इन दिनों विश्‍व भर में धर्म को नए मानदंडों पर परिभाषित कर रहा है। जीवन की दौड़-धूप से थक चुके मनुष्‍य आज शांति की तलाश में इस संस्‍था की ओर प्रवृत्‍त हो रहे हैं। यह कोई नया धर्म नहीं बल्कि विश्‍व में व्‍याप्‍त धर्मों के सार को आत्‍मसात कर उन्‍हें मानव कल्‍याण की दिशा में उपयोग करने वाली एक संस्‍था है। जिसकी विश्‍व के 72 देशों में 4,500 से अधिक शाखाएँ हैं। इन शाखाओं में 5 लाख विद्यार्थी प्रतिदिन नैतिक और आध्‍यात्मिक शिक्षा ग्रहण करते हैं। [संपादित करें]स्थापना इस संस्‍था की स्‍थापना दादा लेखराज ने की, जिन्‍हें आज हम प्रजापिता ब्रह्मा के नाम से जानते हैं। दादा लेखराज अविभाजित भारत में हीरों के व्‍यापारी थे। वे बाल्‍यकाल से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। 60 वर्ष की आयु में उन्‍हें परमात्‍मा के सत्‍यस्‍वरूप को पहचानने की दिव्‍य अनुभूति हुई। उन्‍हें ईश्‍वर की सर्वोच्‍च सत्‍ता के प्रति खिंचाव महसूस हुआ। इसी काल में उन्‍हें ज्‍योति स्‍वरूप निराकार परमपिता शिव का साक्षात्‍कार हुआ। इसके बाद धीरे-धीरे उनका मन मानव कल्‍याण की ओर प्रवृत्‍त होने लगा। उन्‍हें सांसारिक बंधनों से मुक्‍त होने और परमात्‍मा का मानवरूपी माध्‍यम बनने का निर्देश प्राप्‍त हुआ। उसी की प्रेरणा के फलस्‍वरूप सन् 1936 में उन्‍होंने इस विराट संगठन की छोटी-सी बुनियाद रखी। सन् 1937 में आध्‍यात्मिक ज्ञान और राजयोग की शिक्षा अनेकों तक पहुँचाने के लिए इसने एक संस्‍था का रूप धारण किया। इस संस्‍था की स्‍थापना के लिए दादा लेखराज ने अपना विशाल कारोबार कलकत्‍ता में अपने साझेदार को सौंप दिया। फिर वे अपने जन्‍मस्‍थान हैदराबाद सिंध (वर्तमान पाकिस्‍तान) में लौट आए। यहाँ पर उन्‍होंने अपनी सारी चल-अचल संपत्ति इस संस्‍था के नाम कर दी। प्रारंभ में इस संस्‍था में केवल महिलाएँ ही थी। बाद में दादा लेखराज को ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ नाम दिया गया। जो लोग आध्‍या‍त्मिक शांति को पाने के लिए ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ द्वारा उच्‍चारित सिद्धांतो पर चले, वे ब्रह्मकुमार और ब्रह्मकुमारी कहलाए तथा इस शैक्षणिक संस्‍था को ‘प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍व विद्यालय’ नाम दिया गया। इस विश्‍वविद्यालय की शिक्षाओं (उपाधियों) को वैश्विक स्‍वीकृति और अंतर्राष्‍ट्रीय मान्‍यता प्राप्‍त हुई है।


“परमात्‍मा एक है, वह निराकार एवं अनादि है। वे विश्‍व की सर्वशक्तिमान सत्‍ता है और ज्ञान के सागर है।” इस मूलभूत सिद्धांत का पालन करते हुए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍व विद्यालय इन दिनों विश्‍व भर में धर्म को नए मानदंडों पर परिभाषित कर रहा है। जीवन की दौड़-धूप से थक चुके मनुष्‍य आज शांति की तलाश में इस संस्‍था की ओर प्रवृत्‍त हो रहे हैं। यह कोई नया धर्म नहीं बल्कि विश्‍व में व्‍याप्‍त धर्मों के सार को आत्‍मसात कर उन्‍हें मानव कल्‍याण की दिशा में उपयोग करने वाली एक संस्‍था है। जिसकी विश्‍व के 72 देशों में 4,500 से अधिक शाखाएँ हैं। इन शाखाओं में 5 लाख विद्यार्थी प्रतिदिन नैतिक और आध्‍यात्मिक शिक्षा ग्रहण करते हैं। [संपादित करें]स्थापना इस संस्‍था की स्‍थापना दादा लेखराज ने की, जिन्‍हें आज हम प्रजापिता ब्रह्मा के नाम से जानते हैं। दादा लेखराज अविभाजित भारत में हीरों के व्‍यापारी थे। वे बाल्‍यकाल से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। 60 वर्ष की आयु में उन्‍हें परमात्‍मा के सत्‍यस्‍वरूप को पहचानने की दिव्‍य अनुभूति हुई। उन्‍हें ईश्‍वर की सर्वोच्‍च सत्‍ता के प्रति खिंचाव महसूस हुआ। इसी काल में उन्‍हें ज्‍योति स्‍वरूप निराकार परमपिता शिव का साक्षात्‍कार हुआ। इसके बाद धीरे-धीरे उनका मन मानव कल्‍याण की ओर प्रवृत्‍त होने लगा। उन्‍हें सांसारिक बंधनों से मुक्‍त होने और परमात्‍मा का मानवरूपी माध्‍यम बनने का निर्देश प्राप्‍त हुआ। उसी की प्रेरणा के फलस्‍वरूप सन् 1936 में उन्‍होंने इस विराट संगठन की छोटी-सी बुनियाद रखी। सन् 1937 में आध्‍यात्मिक ज्ञान और राजयोग की शिक्षा अनेकों तक पहुँचाने के लिए इसने एक संस्‍था का रूप धारण किया। इस संस्‍था की स्‍थापना के लिए दादा लेखराज ने अपना विशाल कारोबार कलकत्‍ता में अपने साझेदार को सौंप दिया। फिर वे अपने जन्‍मस्‍थान हैदराबाद सिंध (वर्तमान पाकिस्‍तान) में लौट आए। यहाँ पर उन्‍होंने अपनी सारी चल-अचल संपत्ति इस संस्‍था के नाम कर दी। प्रारंभ में इस संस्‍था में केवल महिलाएँ ही थी। बाद में दादा लेखराज को ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ नाम दिया गया। जो लोग आध्‍या‍त्मिक शांति को पाने के लिए ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ द्वारा उच्‍चारित सिद्धांतो पर चले, वे ब्रह्मकुमार और ब्रह्मकुमारी कहलाए तथा इस शैक्षणिक संस्‍था को ‘प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍व विद्यालय’ नाम दिया गया। इस विश्‍वविद्यालय की शिक्षाओं (उपाधियों) को वैश्विक स्‍वीकृति और अंतर्राष्‍ट्रीय मान्‍यता प्राप्‍त हुई है।


ब्रह्माकुमारीज द्वारा मनाए जा रहे प्लेटीनम जुबली महोत्सव एक ईश्वर, एक विश्व परिवार की श्रृंखला के अंतर्गत सिरी फोर्ट आडिटोरियम में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर श्री तेजेन्द्र खन्ना ने इस सुअवसर पर कहा कि हम सभी अकेले आते हैं और अकेले जाते हैं। इस सीमित समय में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम सब उस मालिक से जुड़े हैं। हमें गर्व है कि ब्रह्माकुमारी संस्था 137 देशों में प्रेम, शांति, अमन का संदेश देते हुए यही कार्य कर रही है। मेरी शुभ कामना है कि आप अपने कार्य में सफल हों और ये संसार स्वर्ग बने। ब्रह्माकुमारीज संस्था की अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनी ने इस शुभ अवसर पर आशीर्वचन दिए कि मानव होने का अर्थ सिर्प यह शरीर नहीं है। मैं आत्मा हूं, यह शरीर मेरा है पर हमने मेरे को मैं समझ लिया इसलिए संसार में दुःख अशांति बढ़ गई है। इसलिए हम सभी आज अगर यह निश्चय करें कि मैं कौन हूं, मेरा पिता परमात्मा है फिर हम सदा खुश और बेफिक्र रह सकते हैं। क्योंकि वो परमात्मा जो सर्वशक्तिमान है वह हमारा पिता है और उसके द्वारा हमें सर्व शक्तियां मिलेगी तो हम कभी दुःखी नहीं होंगे। यह परमात्मा का वरदान है। बच्चे खुश रहो और खुशी बांटो। यह बांटने से कम नहीं होती और ही बढ़ती है। स्वयं को आत्मा भूलने से दुःख अशांति आती है। इसलिए हमें राजयोग मेडिटेशन अवश्य सीखना चाहिए। हम खुद शांत बनकर बापू का संकल्प पूरा कर दिखाएं कि हमारा स्वर्ग आना ही है। ब्रह्माकुमारीज संस्था की मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी जानकी ने कहा कि आज मैं अनुभव बांटना चाहती हूं। 75 साल जो हमने परमात्मा से पाया है। धीरज, शांति और प्रेम के गुणों से हमारे कर्म भी श्रेष्ठ होते हैं और संबंध भी अच्छे बन जाते हैं। उन्होंने तीन बार ओम शांति कहने के पीछे का राज बताया कि महसूस करें पहलाöमैं आत्मा शांत हूं, दूसरा मेरा पिता शांति का सागर है और तीसरा हमारा घर जहां से हम आत्माएं आई हैं शांति का घर है, अब वापस घर जाना है। यूरोप से पधारीं वरिष्ठ राजयोग शिक्षिक राजयोगिनी बीके जयंती ने राजयोग मेडिटेशन के द्वारा सभी को गहरी शांति एवं भक्ति का अनुभव कराया।नीदरलैंड से ब्रह्माकुमारी जैक्यूलीन बर्ग, आस्ट्रेलिया से ब्रह्माकुमारी मॉरीन चेन, यूनाइटेड किंगडम से ब्रह्माकुमार एंथनी फिलिप्स तथा अफ्रीका महाद्वीप से ब्रह्माकुमार मॉरकस ने अपने जीवन में भटकने से लेकर ब्रह्माकुमारी संस्था से जुड़ने एवं उससे प्राप्तियों के अनुभव बांटते हुए कहा कि अब हमारा कर्तव्य है कि जो हमने प्राप्त किया वह स्वयं की और परमात्मा की पहचान सबको दें तथा आपस में मिलकर रहें। कार्यक्रम में रशिया प्रसिद्ध गायक अलबर्ट द्वारा आई लव माई इंडिया गीत गाकर सभी के दिलों में देश प्रेम की भावना उत्पन्न कर दी एवं जापान, अफ्रीका, रशिया एवं चीन के भाई-बहनों ने एक ईश्वर, एक विश्व परिवार विषय के अनुरूप रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।


हमें यह नहीं भूलना चाहिएöसबका मालिक एक है ः तेजेन्द्र प्रकाशित: 16 अक्तूबर 2011 हमारे संवाददाता नई दिल्ली। ब्रह्माकुमारीज द्वारा मनाए जा रहे प्लेटीनम जुबली महोत्सव एक ईश्वर, एक विश्व परिवार की श्रृंखला के अंतर्गत सिरी फोर्ट आडिटोरियम में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर श्री तेजेन्द्र खन्ना ने इस सुअवसर पर कहा कि हम सभी अकेले आते हैं और अकेले जाते हैं। इस सीमित समय में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम सब उस मालिक से जुड़े हैं। हमें गर्व है कि ब्रह्माकुमारी संस्था 137 देशों में प्रेम, शांति, अमन का संदेश देते हुए यही कार्य कर रही है। मेरी शुभ कामना है कि आप अपने कार्य में सफल हों और ये संसार स्वर्ग बने। ब्रह्माकुमारीज संस्था की अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनी ने इस शुभ अवसर पर आशीर्वचन दिए कि मानव होने का अर्थ सिर्प यह शरीर नहीं है। मैं आत्मा हूं, यह शरीर मेरा है पर हमने मेरे को मैं समझ लिया इसलिए संसार में दुःख अशांति बढ़ गई है। इसलिए हम सभी आज अगर यह निश्चय करें कि मैं कौन हूं, मेरा पिता परमात्मा है फिर हम सदा खुश और बेफिक्र रह सकते हैं। क्योंकि वो परमात्मा जो सर्वशक्तिमान है वह हमारा पिता है और उसके द्वारा हमें सर्व शक्तियां मिलेगी तो हम कभी दुःखी नहीं होंगे। यह परमात्मा का वरदान है। बच्चे खुश रहो और खुशी बांटो। यह बांटने से कम नहीं होती और ही बढ़ती है। स्वयं को आत्मा भूलने से दुःख अशांति आती है। इसलिए हमें राजयोग मेडिटेशन अवश्य सीखना चाहिए। हम खुद शांत बनकर बापू का संकल्प पूरा कर दिखाएं कि हमारा स्वर्ग आना ही है। ब्रह्माकुमारीज संस्था की मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी जानकी ने कहा कि आज मैं अनुभव बांटना चाहती हूं। 75 साल जो हमने परमात्मा से पाया है। धीरज, शांति और प्रेम के गुणों से हमारे कर्म भी श्रेष्ठ होते हैं और संबंध भी अच्छे बन जाते हैं। उन्होंने तीन बार ओम शांति कहने के पीछे का राज बताया कि महसूस करें पहलाöमैं आत्मा शांत हूं, दूसरा मेरा पिता शांति का सागर है और तीसरा हमारा घर जहां से हम आत्माएं आई हैं शांति का घर है, अब वापस घर जाना है। यूरोप से पधारीं वरिष्ठ राजयोग शिक्षिक राजयोगिनी बीके जयंती ने राजयोग मेडिटेशन के द्वारा सभी को गहरी शांति एवं भक्ति का अनुभव कराया।नीदरलैंड से ब्रह्माकुमारी जैक्यूलीन बर्ग, आस्ट्रेलिया से ब्रह्माकुमारी मॉरीन चेन, यूनाइटेड किंगडम से ब्रह्माकुमार एंथनी फिलिप्स तथा अफ्रीका महाद्वीप से ब्रह्माकुमार मॉरकस ने अपने जीवन में भटकने से लेकर ब्रह्माकुमारी संस्था से जुड़ने एवं उससे प्राप्तियों के अनुभव बांटते हुए कहा कि अब हमारा कर्तव्य है कि जो हमने प्राप्त किया वह स्वयं की और परमात्मा की पहचान सबको दें तथा आपस में मिलकर रहें। कार्यक्रम में रशिया प्रसिद्ध गायक अलबर्ट द्वारा आई लव माई इंडिया गीत गाकर सभी के दिलों में देश प्रेम की भावना उत्पन्न कर दी एवं जापान, अफ्रीका, रशिया एवं चीन के भाई-बहनों ने एक ईश्वर, एक विश्व परिवार विषय के अनुरूप रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।


हरिद्वार। गीता के प्रकाण्ड विद्वान म०म० स्वामी अडगडानन्द जी महाराज ने ब्रह्माकुमारीज के शिव परमात्म अनुभूति मेले के अवलोकन के उपरान्त यहां माउंट आबू से पधारी ब्र०कु० शारदा, दिल्ली से ब्र०कु० आशा, राजयोगी ब्र०कु० बृजमोहन की उपस्थिती में जनसमूह को सम्बोधित करते हुए कहा कि यह मेला समाज को नई दिशा देगा, उन्होनें गीता को सत्य व आदि शास्त्र बताया जिससे ही अर्जुन का मोह से उत्पन्न अज्ञान नष्ट हुआ था। शिव परमात्मा की शरण ही सत्य है उन्होंने रहस्यों उद्घाटन किया कि विश्व में १४५०० के करीब गीताएं है जिनमें भगवान के प्रथम व्यक्ति के रूप में महावाक्य हैं। सभी का शरीर देवताओं सहित नश्वर हैं जिसे आत्मा पुराने को छोड नया धारण करती रहती हैं। स्वामी जी ने आगे कहा कि अविनाशी आत्मा में ही संस्कार होते हैं जिनमें उतार चढाव आते रहते हैं। जो पुरूष कर्मेन्द्रीजीत बनते हैं उनकी आत्मा उनका मित्र तथा न जीतने वालों की आत्मा उनका शत्रु कहलाती है। उन्होनें काम क्रोध को ज्ञान का वैरी बताते कहा कि आत्म पथ से विचलित होना ही हिंसा है। महात्मा स्थिति का नाम है, चमडी का नहीं। ब्रह्माकुमारीज के कार्य व समाज परिवर्तन में उनकी भूमिका की प्रशंसा करते उन्होनें आशा व्यक्त की कि यह अपने कर्तव्य में सफलता व वृद्धि को पाती रहेंगी।दिल्ली के प्योरिटी पत्रिका के संपादक व राजनैतिक प्रभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष ब्र०कु० बृजमोहन आनंद व प्रशासिनक प्रभाग की राष्ट्रीय अध्यक्षा ब्र०कु० आशा बहन से आध्यात्मिक विषयों पर गूढ विचार विर्मश में जाने माने महायोगी पायलट बाबा ने कहा कि आत्मा में अच्छे व बुरे संस्कारों का खजाना होता हैं किंतु आत्मा का महत्व शरीर के साथ ही है। आत्मा का स्वभाव बदलता है जब कि प्रकृति में कम बदलाव आता है। रोब, दुःख, अशांति के वातावरण को बदलकर समरसता में लाने की जरूरत हैं जिसके लिए ब्रह्माकुमारीज संस्था अहम् रोल अदा कर रही है क्योकि इसकी पहुंच संयुक्त राष्ट्र संघ में भी सकि्रय है। अहिंसा के बारे में उन्होने कहा कि मानव जाति के अस्तित्व के लिए यह आवश्यक ह इसी से संघर्ष समाप्त व करूणा जागृत होती है। इसीलिए सभी गुरूओं व महात्माओं ने भी अहिंसा को महत्व दिया है। उन्होनं साधु संतों में भी यश, प्रशांसा व धन सम्पति के प्रति बढते रूझान पर खेद व्यक्त किया। ब्र०कु० बृजमोहन भाई ने ब्रह्माकुमारीज का पक्ष स्पष्ट करते कहा कि वह अहिंसा, दया, व आत्मिक स्नेह को महत्व देती हैं तथा काम, क्रोध की हिंसा का भी खंडन करती है।अखिल भारतीय साधु समाज के महामंत्री स्वामी देवानन्द जी महाराज ने अहिंसा, सत्यता, प्रेम के संबंध में कहा कि यह मानवता को बचाने के लिए आवश्यक तत्व हैं। उन्होनें गृहस्थी लोग द्वारा पाप कर्म के फल से बचने के लिए आत्मा को निर्लेप मानने से असहमती प्रकट की तथा सत्य घटना का विवरण देते पुर्नजन्म की बात को स्वीकार किया। ब्रह्माकुमारीज संस्थान द्वारा किये जा रहे कार्यों को उन्होने उच्च कोटि का बताया तथा कहा कि जो कार्य साधु समाज को करना चाहिए वह आप कर रहे हैं हम नही कर पा रहे हैं।


गीता का भगवान कौन ? 8. जबकि श्रीकृष्ण आदि सनातन देवी देवता धर्म ही के एक पूज्य राजा थे और जबकि भगवान सभी धर्मों की आत्माओं के परम पूज्य परमात्मा है । तो श्रीकृष्ण को भगवान कैसे माना जा सकता है ? क्या अन्य सभी धर्मों के लोग श्रीकृष्ण को भगवान मानते हैं या ज्योति स्वरुप परमात्मा को भगवान मानते हैं ? 9. यदि श्रीकृष्ण को भगवान अथवा परमात्मा मानोगे तो फिर देवता और भगवान में अन्तर ही क्या रहेगा ? 10. जबकि गिता में महावाक्य है कि गीता ज्ञान से स्वर्ग का स्वराज्य प्राप्त होता है और देव पद प्राप्त होता है तो बैकुण्ठनाथ श्रीकृष्ण को गीता ज्ञान दाता मानने की बजाय गीता ज्ञान का फलभोक्ता क्यों न माना जाय ? 11. जबकि श्रीकृष्ण सोलह कला सम्पूर्ण निर्विकारी थे और सतोप्रधान थे तो वह द्वापरयुगी रजोगुणी सृष्टि में जन्म कैसे ले सकते हैं ? क्या उनके जन्म का समय 14 कला पवित्र श्री राम के जन्म से पहले नही मानना चाहिए ? क्या हम कह सकते हैं कि श्री नारायण, श्रीराम के बाद में हुए थे ? 12. जबकि श्रीकृष्ण सम्पूर्ण अहिंसक थे और जबकि कोई साधारण महात्मा भी लडाई के लिए


सहज राजयोग का हठयोग और तत्वयोग से महान अन्तर 3. जबकि कर्म संन्यासी सुख को घृणित काकविष्ठा के समान मानते हैं और विश्व को भी मिथ्या मानते हैं और राज्य भाग्य का भी संन्यास कर देते हैं तो वे भला विश्व का चक्रवर्ती एवं दैवी स्वराज्य दिलाने वाला सहज राजयोग कैसे सिखला सकते हैं ? 4. जबकि योग का अर्थ आत्मा का परमात्मा से सूक्ष्म (बुद्धि से) सम्बन्ध जोडना है, जोकि ऍट चूका है तो उसके लिए शारीरिक क्रियाओं को करने की क्या आवश्यकता है ? 5. जबकि योग में मन-बुद्धि को टिकाने के लिए योग से होने वाली प्राप्ति का ज्ञान होना आवश्यक है और जबकि कर्म संन्यासी लोग ब्रह्म में लीन होने के अतिरिक्त स्वर्गिक सुख-प्राप्ति, जीवनमुक्ति आदि की प्राप्ति का महत्व मानते ही नही तो क्यों न माना जाय कि वे प्राणायाम आदि को दमन ही के लिए अपनाते हैं ? 6. जबकि यह संसार प्रवृत्ति मार्ग का बना है तो क्या वास्तविक योग ऐसा सहज नही होना चाहिए जिसे कि माताएँ-कन्याएँ तथा कार्य-व्यवहार में रहने वाले मनुष्य भी कर सकें ? 7. जबकि किसी को कष्ट देना हिंसा कहलाता है तो क्या हठ आदि क्रियाओं द्वारा स्वयं को व्यर्थ ही कष्ट देना भी एक प्रकार की हिंसा करना नहीं है ? 8. जबकि एक ज्योति स्वरुप परमात्मा शिव ही


आत्मा और परमात्मा का वास्तविक सम्बन्ध वत्सो, अहम्‌ ब्रह्म अस्मि कहना इतना ही गलत है जितना कि यह हना कि अहम्‌ आकाशास्मि अथवा अहम्‌ गृह अस्मि कहना, क्योंकि ब्रह्म तो धाम का नाम है और अहम (आत्मा) उस धाम में रहने वाले का नाम है । वत्सो, जो लोग ब्रह्म तत्व को परमात्मा मानकर उससे योग साधते रहे हैं, उनकी इच्छा पूर्ण करने के लिए मैं उनको उस तत्व का साक्षात्कार भी करता रहा हूँ परन्तु उन तत्व द्रष्टा ऋषियों को यह मालूम न होने के कारण कि ज्योतिस्वरुप परमात्मा शिव ब्रह्म तत्व से अलग है, वे भ्रम के वश ब्रह्म का ही सर्वव्यापक परमात्मा मानते आये हैं । वत्सो, आपको वास्तवमें ब्रह्म तत्व से योग नही लगाना चाहिए क्योंकि ब्रह्म तो ज्ञान, शान्ति और आनन्द का सागर है, न ही मुक्ती और जीवनमुक्ती का दाता या परमपिता एवं सद्‌गुरु है, बल्कि वह तो एक अचेतन तत्व है और मेरा तथा मुक्ती अवस्था में आप आत्माओं का भी धाम है । आपका योग तो ब्रह्म धाम के निवासी मुझ ज्योति स्वरुप, अशरीरी, सर्वशक्तीमान, ज्ञान के सागर, शान्ति के सागर, आनन्द के सागर, प्रेम के सागर, पतित-पावन परमपिता शिव ही से होना चाहिए क्योंकि मुक्ती और जीवनमुक्ती रुपी ईश्वरीय विरासत तो मुझ परमपिता से प्राप्त हो सकती है ।


भारत के आदि सनातन वासियों के धर्म का वास्तविक नाम हूँ और इस ज्ञान को धारण करने वाले नर नारी ब्रह्मामुख वंशी ब्राह्मण ब्राह्मणियॉं कहलाते हैं और वे ही भविष्य में अर्थात सतयुग तथा त्रेतायुग में देवी-देवता पद प्राप्त करते हैं । अत: वत्सो, इस धर्म का स्थापक में निराकार परमपिता परमात्मा शिव ही हूँ ज्योकि प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा इसकी स्थापना करता हूँ और उसका धर्म शास्त्र (गीता) संसार के सभी शास्त्रों में से शिरोमणि श्रीमद्‌‌‌भगवदगीता ही है न कि वेद या उपनिषद क्योंकि वे तो ऋषियों द्वारा अर्थात मनुष्यों द्वारा सुनाये गये । वत्सो, आज भारत के आदिम लोगो की यह दशा है कि वे अपने धर्म के वास्तविक नाम, धर्म के स्थापक, स्थापना के समय ओर शास्त्र के नाम से भी परिचित नही है और अपने स्थापक परमात्मा के महावाक्यों के ग्रन्थ गीता की बजाय अन्याय मनुष्यों के ग्रन्थों को अपने ग्रन्थ मान बैठे हैं और स्वयं हिन्दू कहलाने लगे हैं और दूसरे धर्मों को आना लेते हैं । अत: जबकि धर्म की ऐसी ग्लानि है तो इसकी पुन: स्थापना के लिये मैं फिर अवतरित हुआ हूँ ।


परमात्मा का अवतार कब और किस रुप में होता है ? सहज राजयोग सिखा कर आदि सनातन दैवी धर्म की तथा श्री लक्ष्मी श्री नारायण और श्री सीता श्री राम के पावन एवं दैवी स्वराज्य की फिर से स्थापना करता हूँ । इस प्रकार सृष्टि नाटक की अनादि निश्चित योजना को जानने से आप समझेंगे कि मुझ रचयिता के आने का पार्ट कल्प में केवल एक ही बार, कलियुग के अन्त और सतयुग के आरम्भ के संगम समय पर होता है जबकि पतित सृष्टि को पावन करने अथवा पुरानी, कलियंगी सृष्टी को नई सतयुगी बनाने अर्थात उसका जीर्णोद्धार करने का कर्तव्य होता है । मैं एक ही बार आकर सतयुग और त्रैतायुग की ऐसी सुखी सृष्टि स्थापन कर जाता हूँ कि फिर मेरे कार्य की आवश्यकता ही नही रहती । मैं सभी धर्मों की, आत्मओं को उनकी आदिम अवस्था में टिकाता हूँ और उन्हे पवित्र करके, सभी का पण्डा बन कर उन्हें मुक्तिधाम या जीवनमुक्तीधाम (वैकुण्ठ) में ले जाता हूँ और यह सृष्टि नाटक फिर सतयुग से पुनरावृत्त होता है । इससे पूर्व तो सृष्टि का विनाश होना ही नही होता और सभी आत्माएँ अपनी चारों अवस्थाओं में से गुजरी ही नही होती । अत: इससे पहले मेरे अवतरा और कर्तव्य की आवश्यकता ही नही होती ।


कल्प की आयु अरबों वर्ष नहीं बल्कि 5000 वर्ष है मनुष्य मानते और कहते आये हैं कि सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग मिलाकर कुल आधा कल्प होता है । इसके बाद इतना ही समय (आधा कल्प) नई सृष्टी को बनाने में लगता है । यह कुल मिलाकर एक कल्प होता है । कल्प की आयु 4 अबर और 32 करोड वर्ष है क्योंकि कलियुग की आयु 1200 दिव्य वर्ष है, द्वापर की इससे दोगुनी, त्रेतायुग की तीन गुणा और सतयुग की चार गुणा है और हर दो युगों के बीच में संधिकाल अथवा संगम भी होता है । इस प्रकार कलियुग अभी बच्चा है । ऊपर लिखे मत की असत्यता को समझने के लिए निम्नलिखित प्रश्नों पर विचार कीजिए - 1) द्वापरयुग की आयु को कलियुग की आयु से दो गुना, त्रेता की आयु को तीन गुना और सतयुग की आयु को चार गुना मानने के कारण क्या है ? क्यों न इन युगों की आयु बराबर-बराबर मानी जाए और द्वापर में धर्म ही को दो गुनी कलाएँ, त्रैतायुग में तीन गुनी कलाएँ और सतयुग में चार


परमात्मा सर्व व्यापक नही है आत्माओं का लोक (परलोक अथवा ब्रह्मलोक) अलग है तो सदामुक्त परमात्मा को परलोक (ब्रह्मालोक) का वासी क्यों न माना जाय ? 6. जबकि भगवान के ये महावाक्य है कि यह मनुष्य सृष्टि एक उल्टे वृक्ष के समान है और मैं इसका अनादि-अविनाशी बीज हूँ जोकि ऊपर परमधाम का वासी हूँ, तब भी परमात्मा को सर्वव्यापी माना क्या ईश्वरीय मत का विरोध करना नहीं है ? 7. जैसे किसी मनुष्य को महात्मा कहने का यह अर्थ नही होता कि वह आत्मा अन्य आत्माओं से अधिक लम्बी-चौडी है बल्कि यही अर्थ होता है कि वह अन्य आत्माओं से पवित्रता, शान्ति, शक्ति आदि की दृष्टि से अधिक महान है, वैसे ही परमात्मा शब्द के बारे में ऐसे क्यों न माना जाय कि इसका अर्थ सबसे लम्बी-चौडी आत्मा या सर्वव्यापक आत्मा नहीं है बल्कि इसका यह अर्थ है कि वह ज्ञान, शान्ति, शक्ति तथा ईश्वरीय गुणों आदि की दृष्घिट से सर्व महान आत्मा है ? 8. क्या परमात्मा को चोर, डाकू, सॉंप, मगरमच्छ, उल्लू, कुत्ते, गधे आदि-आदि में व्यापक मानना गोया परमपिता की ग्लानि करना नहीं है ? अब परमपिता परमात्मा शिव क्या समझा रहे हैं ? अब परमात्मा कहते हैं - वत्सों, मैं सर्व में व्यापक नहीं हूँ बल्कि सर्व का परमपिता हूँ । मैं अव्यक्त मूर्त अर्थात्‌ प्रकाशस्वरुप हूँ । मेरा दिव्य रुप ज्योति बिन्दु है । मेरे उस रुप की बडी प्रतिमा भारत में शिवलिंग के नाम से पूजी जाती है । मेरे उसी रुप का एक प्रतीक दीप-शाखा भी है, इसलिए मन्दिरों में दीपक भी जगाये जाते हैं । मेरे अविनाशी ज्योति बिन्दु रुप का दिव्य चक्षु द्वारा साक्षात्कार भी किया जा सकता है । अत: मुझे कण-कण में, जल-थल में सब में व्यापक मानना महान भूल करना है क्योंकि वास्तव में सुर्य और तारागण के भी पार जो ज्योतिलोक, ब्रह्मलोक अथवा परलोक है, वही मेरा परमधाम है । वत्सो, लोहे मे जब अग्नि व्यापक होती है तो आप लोहे में अग्नी के गुण गर्मी का अनुभव कर सकते हैं । अत: यदि लोहो में अग्नि की तरह, मैं भी सर्व में व्यापक होता तो आपको मेरे भी आनन्द, शान्ति, प्रेम, पवित्रता, शक्ति आदि गुणों का सर्व में अनुभव हो पाता । परन्तु आप देखते है कि आज इस मनुष्य सृष्टि में तो


परमात्मा का दिव्य नाम और दिव्य रुप क्या है ? मनुष्य क्या मानते और कहते आये हैं ? मनुष्य कहते आये हैं कि परमात्मा नाम और रुप से न्यारा है क्योंकि नाम और रुप वाली चीजें आदि तथा अन्त वाली अर्थात विनाशी होती है जबकि परमात्मा अनादि और अविनाशी है । कोई भी रुप न होने के कारण ही ज्योति स्वरुप परमात्मा को निराकार कहा गया है । ऊपर लिखे गये मत की असत्यता को समझने के लिए निम्नलिखित प्रश्नों पर विचार कीजिये - 1. यदि परमप्रिय परमपिता परमात्मा का कोई नाम नहीं तो भक्तजन और साधुजन जप किसका करते हैं ? यदि परमपिता परमात्मा का कोई रुप नहीं है तो भक्त और साधु लोग भगवान्‌ के दर्शन के लिए भक्ति, पूजा, साधना आदि क्यों करते हैं ? 2. जबकि मनुष्य को परमात्मा केसाक्षात्कार की अथवा मिलन की बडी इच्छा रहती है और जबकि दिव्य चक्षु, जिस द्वारा परमात्मा का दर्शन हो सकता है, को एक बहुत बडा वरदान माना जाता है तो यह क्यों न माना जाय कि परमात्मा का कोई दिव्य रुप अवश्य ही हैं जिस कि दिव्य चक्षु द्वारा ही देखा जा सकता है ? 3. जबकि लम्बा शब्द छोटा की भेट में गरम शब्द ठडा की भेट में और इस प्रकार अन्य विशेषण भी दूसरे शब्दों की तुलना में प्रयोग किये जाते हैं तो निराकार शब्द का प्रयोग साकार तथा सूक्ष्माकार की भेंट में क्यों न माना जाये और इस शब्द का यह अर्थ क्यों न लिया जाए कि परमात्मा का कोई स्थूल या प्रकाशमय शरीर एवं शारीरिक रुप तो नहीं है, परन्तु जैसे आत्मा ज्योति स्वरुप और अणु रुप है वैसे ही परमात्मा भी ज्योति बिन्दु हैं ? 4. जबकि बिन्दु अथवा अणु की कोई लम्बाई-चौडाई नही होती और उसका कोई कोण या मापने योग्य आकार नही होता अर्थात्‌ जबकि बिन्दु को नराकार कहा जा सकता है तो परमात्मा के बारे में निराकार शब्द का यह अर्थ क्यों न लिया जाए कि परमात्मा ज्योति बिन्दू हैं ?


परमात्मा का दिव्य नाम और दिव्य रुप क्या है ? चूँकी मेरी न कोई स्थूल काया है और न ही सूक्ष्म काया है, इसलिए मुझ ज्योतिस्वरुप परमात्मा को निराकार कहा जाता है । तो यद्यपि मेरा कोई शारीरिक रुप नहीं है तो भी मेरा निजी प्रकाशमय चैतन्य रुप ज्योति बिन्दू है जिस की याद में शिवलिंग नाम की प्रतिमाएँ बनी हुई है । मेरा ज्योर्तिमय बिन्दु रुप होने के कारण ही मुझे अव्यक्त मूर्त कहा जाता है । वत्सो, मेरा मुख्य नाम शिव है क्योंकि शिव का अर्थ कल्याणकारी है और मैं ही सभी का कल्याण करने वाला परमपिता हूँ और सभी को मुक्ती तथा जीवनमुक्ती और सुख तथा शान्ति देता हूँ । अत: मुझ परमपिता का कोई नाम ही न मानना एक बहुत बडी भूल करना है क्योंकि किसी वस्तू का नाम-निशान (रुप) न माना तो गोया उसके अस्तित्व को न मानना है । वत्सो, मेराकोई सज्ञावाचक या शारीरिक नाम तो नहीं है परन्तु मुझ परमात्मा-स्वरुप का, अनादि, गुणवाचक और सर्वश्रेष्ठ नाम शिव ही है, जिस नाम से कि मेरे गुणों तथा कर्तव्यों का तथा आत्माओं के साथ मेरे सम्बन्ध का परिचय मिल जाता है । वत्सों, मुझे बिना नाम, बिना रुप, बिना धाम और सर्वव्यापक मानने के कारण ही भक्ती-पूजा, ज्ञान-ध्यान, योग आदि सब नष्ट हो गए और सभी नर-नारी मुझसे विमुख हो गये है क्योंकि जब वे मेरा नाम-रुप-धाम ही नही मानते तो वे मन को किस पर टिकायें, वे याद किसकी करें, आत्मिक सम्बन्ध किससे जोंडे अथवा पूजा किसकी करें ? अत: इस एक भूल से भी भूलें शुरु हुई है और स्मृति-भं्रश (योग-भ्रष्ट) होने के परिणाम स्वरुप ही सभी लोग धर्म-भ्रष्ट, कर्म-भ्रष्ट, पथ-भ्रष्ट और कौडी-तुल्य हो गये हैं तथा यह संसार नर्क बन गया है । वत्सों, यदि आज मनुष्य मेरे इस दिव्य एवं गुणवाचक नाम (शिव) को तथा मेरे दिव्य रुप (ज्योति बिन्दू) को जानकर मेरी स्मृति में स्थित होने का अभ्यास करे तो फिर से यहॉं भ्रष्टाचार का पूर्ण अन्त होकर सम्पूर्ण श्रेष्ठाचार की स्थापना हो सकती है और यह भारत देश स्वर्ग बन सकता है तथा यहॉं पुन: रामराज्य की स्थापना हो सकती है । वत्सो, यदि सभी नर-नारियों को यह मालूम होता कि परमपिता परमात्मा का नाम शिव और रुप ज्योतिर्लिंग है तो मुसलमान लोग भारत में शिव मन्दिरों को न लूटते और शिव प्रतिमाओं कोन तोडते बल्कि इसे परमपूज्य परमपिता की प्रतिमा मानकर, संसार के सभी लोग भारत को अपना परम तीर्थ मानते और इस प्रकार संसार का इतिहास ही बदल जाता क्योंकि सभी लोग स्वयं को शिव की संतान मानकर भाई-भाई की तरह से रहते !


आत्मा, परमात्मा का अंश नही है बल्कि वंशज है भूल गये है और इससे संसार में अमर्यादा फैल गई है और सभी में भ्रातृभाव की बजाय द्वेष तथा द्वैत आ गया है । वास्तव में तो सब आत्माएँ अलग-अलग गुण कर्म स्वभाव वाली है और आपस में भाई-भाई है और सबका पिता एक मैं परमात्मा शिव ही हूँ । मुझ पिता की स्मृति में रहने के फलस्वरुप ही यह सृष्टि ऐसी सतोप्रधान और सतयुगी, दैवी मर्यादा वाली बन सकती है कि जिसमें शेर और गाय में भी द्वेष न हो । वत्सो, ज्ञान का अर्थ आत्मा और परमात्मा को एक मानना नही है बल्कि मुझ परमात्मा का अन्य आत्माओं से जो महान अन्तर है, उसे जानना और मुझ परमात्मा के दिव्य रुप, दिव्य धाम, दिव्य कर्तव्य, दिव्य सम्बन्ध आदि को जानकर मेरी दिव्य स्मृति में रहना है आत्मा को ही परमात्मा मानना एक तो वास्तविकता के विरूद्ध है क्योंकि किसी भी आत्मा में परमात्मा जैसी सामर्थ्य अथवा योग्यता तो है ही नही और दुसरे, आत्मा को सो परमात्मा मानने से ज्ञान-ध्यान, योग आदि सभी नष्ट हो गये है क्योंकि जो स्वयं से भिन्न किसी परमसत्ता को भगवान नही मानता, वह ध्यान किसका करेगा, योग किससे लगायेगा मन को किसकी स्मृति में टिकायेगा ? वत्सो, आत्मा न तो कभी भी परमात्मा थी, न वह कभी परमात्मा बन सकती है । आत्मा के परमात्मा न बन सकने की बात तो अलग रही, आत्माओं की महानता को तो आपस में भी एक-दूसरे से अन्तर सदा बना ही रहता है । अत: मैं आत्मा ही सो परमात्मा हूँ (सोहम्‌) ऐसा न मान कर यह निश्चि करना चाहिए कि मैं पहले शुद्ध आत्मा था और अब पुन: मुझे उस स्थिति को प्राप्त करने के लिए परमात्मा से योग लगाना चाहिए ।


शिव अलग है और शंकर अलग है मनुष्य क्या कहते और मानते आये हैं ? शिव और शंकर एक ही देवता के दो नाम है । वे कहते हैं कि वास्तव में ब"ह्म-विष्णु और शंकर एक परमात्मा ही के तीन कर्तव्य वाचक नाम है अर्थात वह परमात्मा ही ये तीन रुप धारण करके तीन कर्तव्य करता है और इसलिए इन तीनों नामों से प्रसिद्ध है । अत: इन तीनों देवताओं को भी भगवान ही मानना चाहिए, क्योंकि वे स्वयं भगवान ही के रुप है, भेद कुछ भी नही है । ऊपर लिखे मत की असत्यता को समझने के लिए निम्नलिखित प्रश्नों पर विचार कीजिए - 1. यदि शिव और शंकर एक ही देवता के दो नाम होते तो शिव की प्रतिमा अण्डाकार (शिवलिंग) तथा शंकर की प्रतिमा देवाकार अर्थात अलग-अलग रुप वाली क्यों होती है ? 2. जबकि शिव के अवतरण के स्मरणोत्सव को सदा शिवरात्रि ही कहा जाता है न कि शंकर रात्रि तो शिव और शंकर को अलग-अलग क्यों न माना जाय ? 3. जबकि ब"ह्मा-विष्णु-शंकर और शिव की अलग-अलग प्रतिमायें मिलती है और जबकि उनके तथा उनकी पुरियों (धामों) के अलग -अलग है और कि यह एक परमात्मा ही के तीन कर्तव्य वाचक नाम नही है, न ही ये एक परमात्मा ही के तीन भिन्न-भिन्न रुप है बल्कि अशरीरी परमात्मा शिव इनसे अलग है ?


परमात्मा सर्वव्यापक नहीं है, त्रिकालदर्शी व ज्ञान का सागर है 3) जबकि हम यह देखते है कि किसी नाटक का कोई निर्देशक या रचयिता उस नाटक के अभिनेताओं और दृश्य-स्थलों में सर्वव्यापक न होते हुए भी सर्व एक्टर्स के पार्ट के आदि-मध्य-अन्त को जानता है और फिर जबकि हम यह भी देखते हैं कि टेलीविजन आदि साधनों से दूर की वस्तु को भी देखा जा सकता है तो क्यों न माना जाय कि परमात्मा, जो कि सभी आत्माओं का परमपिता है और इस सृष्टि नाटक का अनादि साक्षी, द्रष्टा और ज्ञाता है और दिव्य दृष्टी रुपी साधन से सम्पन्न है, वह हर-एक आत्मा मे व्यापक न होते हुए भी उसके आवागमन अथवा पार्ट के आदि मध्य-अन्त की कहानी को जानता ही है ? 4) जबकि किसी स्थान में व्यापक होने पर केवल वहॉं वर्तमान ही को देखा जा सकता है न कि भविष्य को और जबकि भविष्य को जानने के लिए, होने वाले वृत्तान्तों का पूर्व निश्चित होना तथा आत्मा का कर्मातीत, पूर्ण पवित्र एवं स्वरुप स्थित (योग स्थित) होना जरुरी है न कि व्यापक होना तो ऐसा क्यों न माना जाय कि इस सृष्टि रुपी नाटक में हर एक वृत्तान्त के पूर्व निश्चित होने के कारण तथा परमात्मा के कर्मातीत, जन्म-मरण से न्यारा और परम पवित्र एवं स्वरुपस्थ होने के कारण ही परमात्मा तीनों कालों को जानता हे न कि सर्वव्यापक होने के कारण ? 5) जबकि हम देखते हैं कि मनुष्यात्मा एक अणु


परमात्मा सर्वव्यापक नहीं है, त्रिकालदर्शी व ज्ञान का सागर है 3) जबकि हम यह देखते है कि किसी नाटक का कोई निर्देशक या रचयिता उस नाटक के अभिनेताओं और दृश्य-स्थलों में सर्वव्यापक न होते हुए भी सर्व एक्टर्स के पार्ट के आदि-मध्य-अन्त को जानता है और फिर जबकि हम यह भी देखते हैं कि टेलीविजन आदि साधनों से दूर की वस्तु को भी देखा जा सकता है तो क्यों न माना जाय कि परमात्मा, जो कि सभी आत्माओं का परमपिता है और इस सृष्टि नाटक का अनादि साक्षी, द्रष्टा और ज्ञाता है और दिव्य दृष्टी रुपी साधन से सम्पन्न है, वह हर-एक आत्मा मे व्यापक न होते हुए भी उसके आवागमन अथवा पार्ट के आदि मध्य-अन्त की कहानी को जानता ही है ? 4) जबकि किसी स्थान में व्यापक होने पर केवल वहॉं वर्तमान ही को देखा जा सकता है न कि भविष्य को और जबकि भविष्य को जानने के लिए, होने वाले वृत्तान्तों का पूर्व निश्चित होना तथा आत्मा का कर्मातीत, पूर्ण पवित्र एवं स्वरुप स्थित (योग स्थित) होना जरुरी है न कि व्यापक होना तो ऐसा क्यों न माना जाय कि इस सृष्टि रुपी नाटक में हर एक वृत्तान्त के पूर्व निश्चित होने के कारण तथा परमात्मा के कर्मातीत, जन्म-मरण से न्यारा और परम पवित्र एवं स्वरुपस्थ होने के कारण ही परमात्मा तीनों कालों को जानता हे न कि सर्वव्यापक होने के कारण ? 5) जबकि हम देखते हैं कि मनुष्यात्मा एक अणु


गीता का भगवान कौन ? मनुष्य क्या मानते और कहते आये हैं ? मनुष्य मानते और कहते आये हैं कि श्री कृष्ण भगवान थे और श्रीकृष्ण भगवान ने द्वापर युग के अन्त में गीता ज्ञान सुनाया था और महाभारत युद्ध के द्वारा आसुरी सम्प्रदायों का महाविनाश कराया था । वे कहते आये हैं कि श्रीकृष्ण परमधाम से अवतरित हुए थे और सृष्टि रुपी वृक्ष के बीज रुप थे, सर्वशक्तिमान थे तथा परमपिता थे । ऊपर लिखे मत की असत्यता को समझने के लिए निम्नलिखित प्रश्नों पर विचार किजीए - 1. जबकि भगवान शब्द ब्रह्मा, विष्णु और शंकर के भी रचयिता एक ज्योतिषस्वरुप परमात्मा ही का वाचक है जोकि कल्याणकारी होने के कारण शिव कहलाता है तो विष्णु देवता के साकार रुप श्रीकृष्ण देवता को भगवान (त्रिदेव का भी रचयिता) कैसे माना जा सकता है ? 2. जबकि भगवान शब्द एक ज्योतिबिन्दु, त्रिदेव रचयिता परमपिता परमात्मा शिव का वाचक है तो भगवद्‌ गीता (भगवान के ज्ञान-गीता) को भगवान शिव के महावाक्यों का संग्रह क्यों न माना जाय और उसे श्रीकृष्ण देवता के उपदेशों का संग्रह क्यों माना जाय ?


गीता का भगवान कौन ? मनुष्य क्या मानते और कहते आये हैं ? मनुष्य मानते और कहते आये हैं कि श्री कृष्ण भगवान थे और श्रीकृष्ण भगवान ने द्वापर युग के अन्त में गीता ज्ञान सुनाया था और महाभारत युद्ध के द्वारा आसुरी सम्प्रदायों का महाविनाश कराया था । वे कहते आये हैं कि श्रीकृष्ण परमधाम से अवतरित हुए थे और सृष्टि रुपी वृक्ष के बीज रुप थे, सर्वशक्तिमान थे तथा परमपिता थे । ऊपर लिखे मत की असत्यता को समझने के लिए निम्नलिखित प्रश्नों पर विचार किजीए - 1. जबकि भगवान शब्द ब्रह्मा, विष्णु और शंकर के भी रचयिता एक ज्योतिषस्वरुप परमात्मा ही का वाचक है जोकि कल्याणकारी होने के कारण शिव कहलाता है तो विष्णु देवता के साकार रुप श्रीकृष्ण देवता को भगवान (त्रिदेव का भी रचयिता) कैसे माना जा सकता है ? 2. जबकि भगवान शब्द एक ज्योतिबिन्दु, त्रिदेव रचयिता परमपिता परमात्मा शिव का वाचक है तो भगवद्‌ गीता (भगवान के ज्ञान-गीता) को भगवान शिव के महावाक्यों का संग्रह क्यों न माना जाय और उसे श्रीकृष्ण देवता के उपदेशों का संग्रह क्यों माना जाय ?


Friday 28 October 2011

नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाते बनाया रिकॉर्ड जालोर। ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने स्कूलो और जेलो में नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाते-पढ़ाते अपना नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज करवाया। बुधवार को ब्रह्मकुमारी राजयोग सेवाकेन्द्र में उनका सम्मान समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर जिला परिवहन अधिकारी नेमीचंद पारीक ने उनकों साफा और माला पहनाकर सम्मानित किया। भगवान भाई ने पांच हजार स्कूलों और आठ सौ जेलों में नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाते हुए कहा ये रिकॉर्ड बनाया। कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए भगवान भाई ने कहा कि स्कूलों में जाकर बच्चो को अच्छे चरित्र और सुशिक्षा की सीख देता हूं। उन्होंने शिक्षा का अर्थ बताते हुए कहा कि शिक्षा सशक्त, अनुशासन, समझ, चरित्र निर्माण, व्यक्तित्व विकास, सहनशक्ति, एकाग्रता, आशावादी और सज्जनता का मिश्रण है। साथ ही उन्होंने बताया कि जेलों और स्कूलो का ये सफर उन्होंने वर्ष 1996 में जालोर से ही शुरू किया था। वहीं ब्रह्मकुमारी रंजू बहन ने भगवान भाई के जीवन का परिचय देते हुए बताया कि महाराष्ट्र के एक गरीब परिवार में जन्म लेने के बाद कठिन परिश्रम कर उन्होंने ये कामयाबी हासिल की है।


परमपिता परमात्मा शिवबाबा हैं .... मेरा बाबा.....प्यारा बाबा.....मीठा बाबा .....दयालु बाबा ...... कृपालु बाबा ...... सत बाप...... सत टीचर ...... सत गुरु..... कोमेंट्री ........... मैं आत्मा अशरीरी हूँ ......... बाप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण हूँ ......... मैं आत्मा एकता ....... एकमत ....... एकरस .......एक की लगन में मगन रहने वाला हूँ ......... और संगठन में भी एकरस स्थिति में स्थित कराने का सहयोगी हूँ ........ शक्ति सेना हूँ ........ रूहानी सेना हूँ ...... विजयी हूँ ........ संस्कारों में बापदादा समान हूँ ........ आदि देवताई संस्कार वाला सम्पन्न और सम्पूर्ण हूँ ........ मन्सा वाचा कर्मणा में चढ़ती कला का परिवतन वाली आधार मूर्ती हूँ ........ महावीर हूँ ......... सम्पूर्ण परिवर्तन वाली लक्की स्टार हूँ ....... मैं आत्मा स्नेह संपर्क सहयोग में भी चढ़ती कला वाली सम्पन्न और सम्पूर्ण हूँ ......लाइफ में सदा प्रेक्टिकल हूँ....... धारणामूर्त हूँ ....... प्रेक्टिकल मूर्त हूँ ...... ज्ञान मूर्त हूँ ...... गुण मूर्त हूँ ....... माना परमात्म ज्ञान का प्रूफ हूँ ........ मैं सम्पूर्ण समर्पण हूँ ........मैं आत्मा समय संकल्प श्र्वास को सफल करने वाला सफलता का सितारा हूँ ....... मैं आत्मा लाइट हाउस माईट हाउस हूँ ....... सारे विष्व को लाइट और माईट से चमका रहा हूँ ..........प्रकाशित कर रहा हूँ ........ ज्ञान सूची ........ सर्व का एक ही समय एक ही साथ और एक ही संकल्प है तो ....... संगठन ही सेफ्टी का साधन बन जाता है ........ संगठन से विजयी बन सकते हैं ....... संगठन से ही श्रेष्ठ बन सकते हैं ........ एकता एकमत से ही एकरस स्थिति आती है ........ एकरस अवस्था से ही सही मायने का पुरुषार्थ होता है ........ एवररेडी बन सकते हैं ........ संगठन की शक्ति परमात्म ज्ञान की विशेषता है .......... पुराने वा अवगुणों का अग्नि संस्कार .......... १०. बेदरकारी जिम्मेदारी न संभालना गेर जिम्मेदार .......... मैं आत्मा सावधान ख़बरदार एक्यूरेट अलर्ट और जिम्मेदार हूँ.... मैं आत्मा परमधाम शान्तिधाम शिवालय में हूँ ..... शिवबाबा के साथ हूँ ..... समीप हूँ .... समान हूँ ..... सम्मुख हूँ ..... सेफ हूँ ..... बाप की छत्रछाया में हूँ .....अष्ट इष्ट महान सर्व श्रेष्ठ हूँ ...... मैं आत्मा मास्टर ज्ञानसूर्य हूँ .... मास्टर रचयिता हूँ ..... मास्टर महाकाल हूँ ..... मास्टर सर्व शक्तिवान हूँ ..... शिव शक्ति कमबाइनड हूँ ........ अकालतक्खनशीन हूँ ....अकालमूर्त हूँ ..... अचल अडोल अंगद एकरस एकटिक एकाग्र स्थिरियम अथक और बीजरूप हूँ ........ शक्तिमूर्त ..... संहारनीमूर्त ...... अलंकारीमूर्त ..... कल्याणीमूर्त हूँ ......शक्ति सेना हूँ ..... शक्तिदल हूँ ...... सर्वशक्तिमान हूँ ...... रुहे गुलाब .... जलतीज्वाला .... ज्वालामुखी .... ज्वालास्वरूप .... ज्वालाअग्नि हूँ .... बेदरकारी जिम्मेदारी न संभालना गेर जिम्मेदार ..........अवगुणों का आसुरी संस्कार का अग्नि संस्कार कर रही हूँ ........ जला रही हूँ ...... भस्म कर रही हूँ ...... मैं आत्मा महारथी महावीर बेदरकारी जिम्मेदारी न संभालना गेर जिम्मेदार .......... के मायावी संस्कार पर विजयी रूहानी सेनानी हूँ .......... मैं आत्मा सावधान ख़बरदार एक्यूरेट अलर्ट और जिम्मेदार हूँ .... ........ मैं देही -अभिमानी ..... आत्म-अभिमानी..... रूहानी अभिमानी .....परमात्म अभिमानी..... परमात्म ज्ञानी ..... परमात्म भाग्यवान..... सर्वगुण सम्पन्न ..... सोला कला सम्पूर्ण ..... सम्पूर्ण निर्विकारी ..... मर्यादा पुरुषोत्तम ...... डबल अहिंसक हूँ ..... डबल ताजधारी ..... विष्व का मालिक हूँ ..... मैं आत्मा ताजधारी ..... तख़्तधारी ..... तिलकधारी ..... दिलतक्खनशीन ..... डबललाइट ..... सूर्यवंशी शूरवीर ....... महाबली महाबलवान ..... बाहुबलि पहलवान ....... अष्ट भुजाधारी अष्ट शक्तिधारी अस्त्र शस्त्रधारी शिवमई शक्ति हूँ .....


परमपिता परमात्मा शिवबाबा हैं .... मेरा बाबा.....प्यारा बाबा.....मीठा बाबा .....दयालु बाबा ...... कृपालु बाबा ...... सत बाप...... सत टीचर ...... सत गुरु..... कोमेंट्री ........... मैं आत्मा अशरीरी हूँ ......... बाप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण हूँ ......... मैं आत्मा एकता ....... एकमत ....... एकरस .......एक की लगन में मगन रहने वाला हूँ ......... और संगठन में भी एकरस स्थिति में स्थित कराने का सहयोगी हूँ ........ शक्ति सेना हूँ ........ रूहानी सेना हूँ ...... विजयी हूँ ........ संस्कारों में बापदादा समान हूँ ........ आदि देवताई संस्कार वाला सम्पन्न और सम्पूर्ण हूँ ........ मन्सा वाचा कर्मणा में चढ़ती कला का परिवतन वाली आधार मूर्ती हूँ ........ महावीर हूँ ......... सम्पूर्ण परिवर्तन वाली लक्की स्टार हूँ ....... मैं आत्मा स्नेह संपर्क सहयोग में भी चढ़ती कला वाली सम्पन्न और सम्पूर्ण हूँ ......लाइफ में सदा प्रेक्टिकल हूँ....... धारणामूर्त हूँ ....... प्रेक्टिकल मूर्त हूँ ...... ज्ञान मूर्त हूँ ...... गुण मूर्त हूँ ....... माना परमात्म ज्ञान का प्रूफ हूँ ........ मैं सम्पूर्ण समर्पण हूँ ........मैं आत्मा समय संकल्प श्र्वास को सफल करने वाला सफलता का सितारा हूँ ....... मैं आत्मा लाइट हाउस माईट हाउस हूँ ....... सारे विष्व को लाइट और माईट से चमका रहा हूँ ..........प्रकाशित कर रहा हूँ ........ ज्ञान सूची ........ सर्व का एक ही समय एक ही साथ और एक ही संकल्प है तो ....... संगठन ही सेफ्टी का साधन बन जाता है ........ संगठन से विजयी बन सकते हैं ....... संगठन से ही श्रेष्ठ बन सकते हैं ........ एकता एकमत से ही एकरस स्थिति आती है ........ एकरस अवस्था से ही सही मायने का पुरुषार्थ होता है ........ एवररेडी बन सकते हैं ........ संगठन की शक्ति परमात्म ज्ञान की विशेषता है .......... पुराने वा अवगुणों का अग्नि संस्कार .......... १०. बेदरकारी जिम्मेदारी न संभालना गेर जिम्मेदार .......... मैं आत्मा सावधान ख़बरदार एक्यूरेट अलर्ट और जिम्मेदार हूँ.... मैं आत्मा परमधाम शान्तिधाम शिवालय में हूँ ..... शिवबाबा के साथ हूँ ..... समीप हूँ .... समान हूँ ..... सम्मुख हूँ ..... सेफ हूँ ..... बाप की छत्रछाया में हूँ .....अष्ट इष्ट महान सर्व श्रेष्ठ हूँ ...... मैं आत्मा मास्टर ज्ञानसूर्य हूँ .... मास्टर रचयिता हूँ ..... मास्टर महाकाल हूँ ..... मास्टर सर्व शक्तिवान हूँ ..... शिव शक्ति कमबाइनड हूँ ........ अकालतक्खनशीन हूँ ....अकालमूर्त हूँ ..... अचल अडोल अंगद एकरस एकटिक एकाग्र स्थिरियम अथक और बीजरूप हूँ ........ शक्तिमूर्त ..... संहारनीमूर्त ...... अलंकारीमूर्त ..... कल्याणीमूर्त हूँ ......शक्ति सेना हूँ ..... शक्तिदल हूँ ...... सर्वशक्तिमान हूँ ...... रुहे गुलाब .... जलतीज्वाला .... ज्वालामुखी .... ज्वालास्वरूप .... ज्वालाअग्नि हूँ .... बेदरकारी जिम्मेदारी न संभालना गेर जिम्मेदार ..........अवगुणों का आसुरी संस्कार का अग्नि संस्कार कर रही हूँ ........ जला रही हूँ ...... भस्म कर रही हूँ ...... मैं आत्मा महारथी महावीर बेदरकारी जिम्मेदारी न संभालना गेर जिम्मेदार .......... के मायावी संस्कार पर विजयी रूहानी सेनानी हूँ .......... मैं आत्मा सावधान ख़बरदार एक्यूरेट अलर्ट और जिम्मेदार हूँ .... ........ मैं देही -अभिमानी ..... आत्म-अभिमानी..... रूहानी अभिमानी .....परमात्म अभिमानी..... परमात्म ज्ञानी ..... परमात्म भाग्यवान..... सर्वगुण सम्पन्न ..... सोला कला सम्पूर्ण ..... सम्पूर्ण निर्विकारी ..... मर्यादा पुरुषोत्तम ...... डबल अहिंसक हूँ ..... डबल ताजधारी ..... विष्व का मालिक हूँ ..... मैं आत्मा ताजधारी ..... तख़्तधारी ..... तिलकधारी ..... दिलतक्खनशीन ..... डबललाइट ..... सूर्यवंशी शूरवीर ....... महाबली महाबलवान ..... बाहुबलि पहलवान ....... अष्ट भुजाधारी अष्ट शक्तिधारी अस्त्र शस्त्रधारी शिवमई शक्ति हूँ .....


6-10-11 ओम् शान्ति ''अव्यक्त बापदादा'' रिवाइज: 25-03-95 मधुबन ब्राह्मण जीवन का सबसे श्रेष्ठ खजाना - संकल्प का खजाना वरदान: एक बल एक भरोसे के आधार पर मंजिल को समीप अनुभव करने वाले हिम्मतवान भव ऊंची मंजिल पर पहुंचने से पहले आंधी तूफान लगते ही हैं, स्टीमर को पार जाने के लिए बीच भंवर से क्रास करना ही पड़ता है इसलिए जल्दी में घबराओ मत, थको वा रूको मत। साथी को साथ रखो तो हर मुश्किल सहज हो जायेगी, हिम्मतवान बन बाप की मदद के पात्र बनो। एक बल एक भरोसा-इस पाठ को सदा पक्का रखो तो बीच भंवर से सहज निकल आयेंगे और मंजिल समीप अनुभव होगी।


ॐ शान्ति दिव्य फ़रिश्ते !! विचार मंथनके पॉइंट्स: जुलाई ६, २०११ बाबा की महिमा परमपिता परमात्मा शिवबाबा हैं .... मेरा बाबा ..प्यारा बाबा ..मीठा बाबा ..दयालु बाबा. .. कृपालु बाबा .... सत बाप .... सत टीचर ....सत गुरु... बेहद का निराकार बाप ...... दुःख - सुख - कर्ता ..... ज्ञान का सागर ...... हेविनली गोड़ फादर ...... प्यारा बाबुल ...... पतित पावन ......... स्टार पॉइंट : (सारा दिन प्रेक्टिस किजिये ) : हम शिवबाबा बच्चें हैं ........ आपस में भाई बहिन है .......... कोमेंट्री: .............. मैं शिवबाबा का बच्चा हूँ .......... ज्ञान की रोशनी वाला त्रिनेत्री हूँ ........... प्यारे बाबुल की प्यारी बिंदी हूँ ......... कर्मातीत हूँ ........... सम्पूर्ण निर्विकारी हूँ ......... सतोप्रधान हूँ .........मैं आत्मा श्रीमत पर चलने वाला योगबल वाला अलर्ट बच्चा हूँ .......... हम एक बाप के बच्चें आपस में ब्रह्माकुमार बह्माकुमारी भाई - बहिन हैं ........ मैं आत्मा बाप से राजयोग सिख रहा हूँ ........ पूरा पुरुषार्थी हूँ ........ मैं आत्मा बेहद बाप से बेहद का वर्सा ले रहा हूँ ...... मैं आत्मा बाप पर बलिहार जाने वाला मास्टर सर्वशक्तिवान निश्चय बुद्धि विजयी रतन हूँ .......... मैं नज़र से निहाल करने वाला भगवान के नयनों का नूर हूँ .......... स्वमान और आत्मा का अभ्यास ........... १. मैं आत्मा राजयोगी हूँ .... २. मैं आत्मा ब्रह्माकुमार / ब्रह्माकुमारी हूँ ... ३. मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ... ४. मैं आत्मा विजयी रत्न हूँ... ५. मैं आत्मा भगवन के नयनों का नूर हूँ... ६. मैं आत्मा नज़र से निहाल करने वाली हूँ... ज्ञान सूची ................. बार बार माया से हार खाना माना धर्मराज की मार खाना ......... और द्वापर में अनेक मूर्तियों को हार पहनाने पड़ेंगे .......... पुराने वा अवगुणों का अग्नि संस्कार .......... ६) फेमिलीयारिटी ...................... मैं आत्मा परमधाम... शान्तिधाम... शिवालय में हूँ ..... शिवबाबा के साथ हूँ ..... समीप हूँ .... समान हूँ ..... सम्मुख हूँ ..... सेफ हूँ ..... बाप की छत्रछाया में हूँ .....अष्ट इष्ट महान सर्व श्रेष्ठ हूँ ...... मैं आत्मा मास्टर ज्ञानसूर्य हूँ .... मास्टर रचयिता हूँ ..... मास्टर महाकाल हूँ ..... मास्टर सर्व शक्तिवान हूँ ..... शिव शक्ति कमबाइनड हूँ ..... अकालतक्खनशीन हूँ ....अकालमूर्त हूँ ..... अचल अडोल अंगद, एकरस एकटिक एकाग्र, स्थिरियम अथक और बीजरूप हूँ ........ शक्तिमूर्त ..... संहारनीमूर्त ...... अलंकारीमूर्त ..... कल्याणीमूर्त हूँ ......शक्ति सेना हूँ ..... शक्तिदल हूँ ...... सर्वशक्तिमान हूँ ...... रुहे गुलाब हूँ .... जलतीज्वाला .... ज्वालामुखी .... ज्वालास्वरूप .... ज्वालाअग्नि हूँ ...... फेमिलीयारिटी के संस्कार का अग्नि संस्कार कर रही हूँ ........ जला रही हूँ ...... भस्म कर रही हूँ ...... मैं आत्मा महारथी महावीर फेमिलीयारिटी के मायावी संस्कार पर विजयी रूहानी सेनानी हूँ ...... सभी के प्रति समभाव और सम दृष्टि रखने वाली आत्मा हूँ ....... मैं आत्मा देही-अभिमानी आत्मा अभिमानी रूहानी अभिमानी, परमात्मा अभिमानी परमात्मा ज्ञानी परमात्मा भाग्यवान, सर्वगुण सम्पन्न सोला कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी मर्यादा पुरूशोत्तम, डबल अहिंसक डबल ताजधारी विष्व का मालिक हूँ...... तख़्तधारी तिलकधारी दिलतक्खनशीन डबल लाइट सूर्यवंशी शूरवीर हूँ...... महाबली, महाबलवान, बाहुबली पहलवान अष्ट भुजाधारी ....... अष्ट शक्तिधारी अस्त्र शस्त्रधारी शिवमई शक्ति .... हूँ ............ Video of Murli Essence: http://www.youtube.com/user/Brahmakumariz#p/c/E82447364423A270/0/ttUVu-SEOz8 Song: Tumhe pake hamne jahan pa liya hai:http://www.youtube.com/watch?v=hmfEXisfScw Om Shanti Divine Angels!! Points to Churn from the Murli of July 06, 2011: Praise of Baba: My Baba…Sweet Baba…Loving Baba…Kind-hearted Baba…Compassionate Baba…the Supreme Father the Supreme Soul is…the True Father...the True Teacher... the Unlimited Incorporeal Father...the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness...the Heavenly God Father...The Beloved Father...the Purifier.... Star Point: (Practice all day) We are all children of Shiv Baba...we are all brothers and sisters... Yog Commentry: I am the child of Shiv Baba...the Trinetri with the light of knowledge...the beloved point of light of the beloved Babul...I am karmateet...completely vice less...satopradhan...following shrimat...with the power of yoga I am a very alert child...we are all children of the One Father, Brahma Kumars and Brahma Kumaris, therefore, brothers and sisters...I, the soul, am learning Raj Yoga from the Father...I make full effort...I, the soul, claim the unlimited inheritance from the unlimited Father...I am a master almighty authority...a victorious jewel with a determined intellect...I totally surrender myself to the Father...I am the light of God’s eyes...I take others beyond with a glance... Self Respect and Soul Study......... 1. I am a soul...a Raj Yogi... 2. I am a soul... a Brahma Kumar, a Brahma Kumari... 3. I am a soul...a master almighty authority... 4. I am a soul...a victorious jewel... 5. I am a soul...a jewel eyes in the eyes of God... 6. I am a soul...I take others beyond with a glance.... Study Point: If you are constantly defeated, you will have to accept punishment from Dharamraj and those who are defeated (haar) will have to make garlands (haar) in the future and have to garland many images from the copper age onwards.... In the Milan of April 13, 2011, Bapdada has told us to cremate our old sanskars. (Sanskar ka sanskar karo) Not just to suppress them, but to completely burn them, so there is no trace or progeny left. Check and change now. Have volcanic yoga ( Jwala swaroop) We have time until the next Milan on October 19th. Let us work on one each day. Please share your experiences...6. being familiar, having favoritism, intimacy and impropriety... I am a soul...I reside in the Incorporeal world...the land of peace...Shivalaya...I am with the Father...I am close to the Father...I am equal to the Father...I am sitting personally in front of the Father...safe...in the canopy of protection of the Father...I am the eight armed deity...a special deity...I am great and elevated...I, the soul am the master sun of knowledge...a master creator...master lord of death...master almighty authority... Shivshakti combined...immortal image...seated on an immortal throne...immovable, unshakable Angad, stable in one stage, in a constant stage, with full concentration....steady, tireless and a seed...the embodiment of power...the image of a destroyer...an embodiment of ornaments...the image of a bestower...the Shakti Army...the Shakti troop...an almighty authority...the spiritual rose...a blaze...a volcano...an embodiment of a blaze...a fiery blaze...I am cremating the sanskar of being familiar, having favoritism, intimacy and impropriety............I am burning them...I am turning them into ashes...I, the soul am a maharathi...a mahavir...I am the victorious spiritual soldier that is conquering the vice of being familiar, having favoritism, intimacy and impropriety.......I have the same vision and same feelings for all everyone ...I , the soul, am soul conscious, conscious of the soul, spiritually conscious, conscious of the Supreme Soul, have knowledge of the Supreme Soul, am fortunate for knowing the Supreme Soul.....I am full of all virtues, 16 celestial degrees full, completely vice less, the most elevated human being following the code of conduct, doubly non-violent, with double crown...I am the master of the world, seated on a throne, anointed with a tilak, seated on Baba’s heart throne, double light, belonging to the sun dynasty, a valiant warrior, an extremely powerful and an extremely strong wrestler with very strong arms...eight powers, weapons and arms, I am the Shakti merged in Shiv...


बिना लक्ष्य के हजार कदम भी चलो तो वह भी व्यर्थ है । मैं बिना लक्ष्य की दौड को यात्रा नहीं, पागलपन कहूंगा, भटकाव कहूंगा । तुम घर की देहरी से बाहर पैर तभी रखते हो जब कोई जरुरी काम होता है, सामने कोई लक्ष्य होता है । अकारण तो तुमच कुछ भी नहीं करते । फिर तुम इस दुनिया में क्या अकारण ही आए हो ? जीवन का लक्ष्य और मंजिल की तलाश ही तुम्हारा यहां आने का कारण है । यदि यों ही अकारण जीवन भर भागते रहे तो सच मानो तुम्हारी यात्रा मरघट के आगे नहीं हो सकती । मरघट से आगे मोक्ष तक की यात्रा तो वे ही तय कर पाते हैं जो जीवन में उच्च लक्ष्य को लेकर चलते है । तो मैं दिल्ली था । वहॉं मैंने देखा कि कहने तो तो ये बाप और ये बेटा है मगर सच्चाई ठीक इससे उल्टी ही देखने को मिली है । वहां बेटा बाप है और बाप बेटा है । बेटों पर बापों का वहां कोई नियंत्रण नहीं हैं, बेटों पर वहां बापों का कोई अधिकार नहीं है । गांवो में, घर परिवार में जैसे बडे-बुजुर्गों का एकछत्र राज्य चलता है, दिल्ली में ऐसा कुछ नहीं दिखता । वहां सभी अहमिन्द्र हैं । सभी अपने मन के राजा हैं । और जिस घर में एक साथ दो-दो आदेश चलने लगें तो समझना कि उस घर में फूट होने वाली है । वह घर शीघ्र ही बिखरने वाला है, टूटने वाला हैं । महानगरों में परिवार बडी तेजी से टूट रहे हैं । संयुक्त परिवार की अवधारणा बडी तेजी से लुप्त हो रही है । कारण जो मुझे समझ में आया वह सिर्फ यही है कि नई पीढी में "आई क्यू' तो बढ रहा है मगर समझदारी कम हो रही है, बुद्धि तो बढ रही है मगर विवेक खो चला है । आज की शिक्षा प्रणाली ने बालक को सभ्य तो बना दिया लेकिन वह उसे सुसंस्कृत नहीं बना पाई । शिक्षा का फल तो विनम्रता और समर्पण है मगर आज का तथाकथित उच्च शिक्षित वर्ग अहंवादी हो चला है और यही अहम्मन्यता पारिवारिक और सामाजिक बिखराव में कारण बन रही हैं । महानगरों में हालत यह है कि वहां चार-चार जवान बेटे मिलकर भी अपने बूढे मॉं-बाप की परवरिश नहीं कर पा रहे हैं । आजकल अब बडे शहरों में वृद्धाश्रमों, अनाथ-आश्रमों का प्रचलन तेजी से बढ रहा है, जहां पर बेटे लोग अपने बूढे मॉं-बाप को डाल आते हैं और सेवा के नाम पर हर महीने एक निश्चित राशि भिजवाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं । मैं बुजुर्गों से एक विनम्र निवेदन करता हूं कि जब वे जीवन के आखिरी पडाव पर पहुँचे, जब उन्हें लगने लगे कि अब उनकी परिवार के प्रति जो जिम्मेदारियां थीं, वे पूर्ण हो गई हैं, बेटे अपने पैरों पर खडे हो गए हैं और अपना खाने-कमाने लगे हैं तो वे अपना शेष समय ईश्र्वर भजन, धर्म-ध्यान और पूजा-पाठ को समर्पित कर दें । बेटों-बहुओं की जीवन-शैली में अनावश्यक दखलंदाजी एकदम बंद कर दे । जरा-जरा-सी बात पर अनावश्यक सलाह देना बंद कर दें क्योंकि बूढ आदमी का रोम-रोम चंचल होता है मगर यह जो बूढा आमदी होता है न, इसकी जुबान चंचल होती है । वह जीभ से कुछ न कुछ बोलता रहेगा फिर भले ही कोई सुने, न सुने । इसलिए मैं कह रहा हूं बुजुर्ग आदमी को चंचल जुबान पर लगाम रखनी चाहिए । बुजुर्ग व्यक्ति को नपा-तुला बोलना चाहिए । जो नपा-तुला बोलते हैं उनके बोल अनमोल होते हैं और उन बोलों को दुनिया सदा याद रखती है ।


मैं क्रोध, मान, माया और लोभ-इस चांडाल-चौकडी से पीडित हूँ, इससे अपना दामन कैसे छुडाऊँ ? मैं क्रोध से दु:खी हूँ, क्रोध को कैसे जीतूं ? ये सब जीवंत-प्रश्न हैं, जीवन से जुडी जिज्ञासाएं है, ज्वलंत समस्याएं हैं, जिनका समाधान जीवन की अनिवार्य घटना है और जहां तक मैं समझता हूँ, ये समस्याएं किसी एक व्यक्ति विशेष की नहीं, अपितु जन-जन की, जन-जन के जीवन की समस्याएं हैं । हर आदमी क्रोध से पीडित है, परेशान है, क्लांत है, दु:खी है । क्रोध को कैसे जीतें ? इस पर अपने कुछ विचार व्यक्त करुं - इससे पहले यह समझ लेना ज्यादा बेहतर होगा कि क्रोध आखिर है क्या ? क्रोध से क्या हानियां हैं ? क्रोध आता क्यों है ? क्रोध क्या है ? क्रोध एक विष है । क्रोध एक विषधर सर्प है, जिसके डसने से आत्मा अपने वास्तविक स्वरुप को भूल जाती है । क्रोध एक विक्षिप्तता है । क्रोध एक रोग है । क्रोध एक दु:ख की अन्तहीन कथा है । क्रोध एक तात्कालिक पागलपन है । क्रोध एक क्षय रोग है । क्रोध एक असंतुलन है । क्रोध एक मनोविकार है । क्रोध भयावह है । क्रोध भयंकर है । क्रोध भयास्पद है, क्रोध कुरुप है । क्रोध भद्दा है । क्रोध अंधा है । क्रोध बहरा है । क्रोध गुंगा है । क्रोध विकलांग है । नरक का द्वार क्रोध है । दु:ख का भंडार क्रोध है । अनर्थों का घर क्रोध है । पीडा का पर्याय क्रोध है । विवेक का दुश्मन क्रोध है । क्रोध से क्या हानियां है ? क्रोध मनुष्य को अंधा बना देता है । क्रोध जब भी आता है, विवेक को नष्ट करके आता है । क्रोध होश की हत्त्या करके आता है । होश में व्यक्ति क्रोध नहीं करता । होश में क्रोध करना संभव ही नहीं है । क्रोध बेहोशी में ही संभव है । क्रोध का अर्थ ही बेहोश होना है । क्रोध पहला प्रहार विवेक पर करता है, होश पर करता है और होश गया कि क्रोध व्यक्ति को पागल बना देता है । विवेक गया कि क्रोध व्यक्ति को अंधा बना देता है । वह भूल जाता है कि वह क्या कर रहा है, क्या करने जा रहा है और इसका परिणाम क्या होगा ? यद्यपि आँखे हैं, लेकिन अब वह देख नहीं सकता । कान हैं, लेकिन अब वह सून नहीं सकता । मन है, लेकिन अब वह विचार नहीं कर सकता । क्यों ? क्योंकि क्रोध समझदारी को बाहर निकालकर बुद्धि के दरवाजे की चिटकनी लगा देता है, मनुष्य को विचार-शून्य बना देता है, विवेक शून्य कर देता है । एक व्यक्ति शाम को दुकान से घर आया । पॉंच हजार रुपये पत्नी को दिए । पत्नी भोजन बना रही थी, रुपयों को वहीं चुल्हे के पास रख दिया । सर्दी के दिन थे, पास में उसका दो वर्ष का बच्चा बैठा था । मॉं काम से बाहर गई, इतनें में बच्चा उठा और रुपयों की गड्डी उठाकर जलते चुल्हे में डाल दी । अग्नि तेज जलने लगी । बच्चा खुश हो रहा था कि आग की लपटें कितनी तेज उठ रहीं है ! इतने में मॉं आ गई । उसने जब यह सब नजारा देखा तो उसे समझने में देर न लगी । क्रोध ने उसे अंधा बना दिया । क्रोध का भूत उसके मन-मस्तिष्क पर सवार हो गया, वह अपना होश-हवाश खो बैठी । फिर क्या था, आव देखा न ताव, अपने सुकुमार बच्चे को उठाया और जलते हुए चूल्हे में झोंक दिया, बेटा जलकर राख हो गया । इकलौता बेटा था उसका, जिसे क्रोध खा गया । बुढापे का सहारा था, जिसे क्रोध ने छीन लिया । क्षणभर के क्रोध ने जीवन-भर का दु:ख पैदा कर दिया । पलभर का असंतुलन जीवन-भर के लिए अभिशाप बन गया ।


लडाई अहंकार की मैं कहता हूँ कि एक बार समर्पण में जीकर तो देखो कैसा आनंद बरसता है । एक बार प्रभू के चरणों में नमन करके तो देखो, फिर देखना छह माह तक जीवन में आनंद ही आनंद बरसेगा । अहंकार के नारियल को एक बार प्रभू के, किसी सद्‌गुरु के चरणों में पटक-पटक कर फोड डालो, फिर देखना जीवन में कैसा अतिशय, कैसा चमत्कार प्रकट होता है ? तुम्हारी लडाइयॉं, सारे तनाव, संघर्ष इसी अहंकार की वजह से तो हैं । पति और पत्नी, बाप और बेटा, सासु ओर बहु, देवरानी और जेठानी, तुम्हारे और पडौसी के बीच में जो भी बिखराव और टकराव चला रहा है वह इसी अहंकार की देन है । दो समुदयों के बीच में जो संघर्ष है, दो जातियों के बीच में जो खींचतान है - उसका मूल कारण मनुष्य का अहंकार है । ध्यान रखना - बाप और बेटे कभी नहीं लडते । हमेशा इन दोनों के अहंकार लडते हैं । पति और पत्नी परस्पर में लडें, कोई कारण ही समझ में नही आता, और अगर कोई कारण है तो वह अहंकार ही हो सकता है । भला हिन्दु और मुसलमान आपस में क्यों लडने लगे ? दोनों अपने-अपने हिसाब से जीवन-यापन करते हैं, अपने-अपने धर्मानुसार पूजा, इबादत करते है, दोनों के अपने-अपने परिवार हैं, दोनों अपना कमाते हैं, अपना खाते हैं, फिर क्यों लडें ? और यदि लडते हैं तो तभी लडते हैं जब दोनों के अहंकार परस्पर टकराते हैं । अहंकार लडता है, आदमी कभी नहीं लडता । कल एक युवक मुझसे मुखातिब था । उसके मन में एक द्वंद्व था कि वह विवाह करे या न करे । वह अनिर्णय की स्थिति में था । उसका एक मन कहता था कि शादी करुँ और अपना छोटा-सा संसार बसा लूं तथा दूसरा मन कहता कि विवाह के बाद जो झंझटें, जो परेशानियॉं, जो बेचैनियॉं निर्मित होती हैं, वे बडी भयावह हुआ करती हैं, वे बडी पीडादायक हुआ करती हैं । वह युवक बडे द्वंद्व में जी रहा था । इस सम्बन्ध में वह परामर्श चाहता था । ऐसा ही एक जिज्ञासू कभी कबीर के पास पहुँचा था और उसने कबीर से परामर्श चाहा था । जिज्ञासु ने कबीर के समक्ष अपनी समस्या रखी और समाधान करने का आग्रह किया । तुम : कीचड और कमल ध्यान रखना - विवाह सर्वथा अछूत नहीं हैं । माना कि संसार कीचड है लेकिन ध्यान रखें, इसी कीचड में कमल खिलता है । दुनियां के अधिकतर महापुरुष, तीर्थकर-पुरुष विवाहित थे । भारतीय संस्कृति में गृहस्थ जीवन को भी आश्रम का दर्जा दिया गया है । भारतीय मनीषा शुरु से इस बात की पक्षधर रही है कि जो लोग अपनी ऊर्जा को पूरी तरह से ध्यान-समाधि में नहीं लगा सकते, ऊर्जा का ऊर्ध्वारोहण नहीं करत सकते वे लोग गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर गृहस्थ धर्म का निर्वाह करें । काम में भी राम की तलाश जारी रखें, कीचड में कमल की साधना करें । कमल का कीचड में रहना और मनुष्य का संसार में रहना बुरा नहीं हैं । बुराई तो यह है कि कीचड कमल पर चढ आये और संसार हृदय में समा जाये । तुम कमल हो, तुम्हारा परिवार कमल की पंखुडियॉं है तथा संसार कीचड है । कीचड में कमल की तरह जी सकें तो गृहस्थ आश्रम भी किसी तपोवन से कम महत्त्वपूर्ण नहीं ।


अहं का विसर्जन बताएं समर्पण का अर्थ अहं का विसर्जन है। अहं के कारण ही सर्वशक्तिमान परमात्मा से हमारा संबंध नहीं जुट पाता। अहंकार के उन्मूलन के बाद परमपिता परमात्मा की सर्वशक्तियांहममें प्रवाहित होने लगती हैं। गज-ग्राह युद्ध और चीरहरण इसी के प्रतीक हैं। जब तक गज अपनी शक्ति के अहंकार से भरा रहा, ग्राह उसे जल में खींचता चला गया। अंततोगत्वा जब उसका अहं टूटा और पूरे हृदय से उसने परमात्मा से प्रार्थना की तभी उसमें ईश्वरीय शक्ति प्रवाहित होने लगी और ग्राह मारा गया। इसी तरह द्रोपदी को भी जब तक अपने पतियोंकी शक्ति पर विश्वास था, तब तक परमात्मा की सहायता नहीं मिली, जब सब तरफ से निराश होकर परमात्मा को पुकारा तब प्रभु तुरंत उपस्थित हुए। गीता में परमात्मा का आदेश है-मामेकं शरणंब्रज। लेकिन हम केवल एक परमात्मा की शक्ति का भरोसा न कर अनेक का भरोसा करते रहते हैं। फलस्वरूप दो नावों पर पांव रखने वालों जैसी हमारी गति हो जाती है। समर्पित व्यक्ति शून्य होता है। उसमें कोई आशा, आकांक्षा, कामना और वासना नहीं होती, वह परमात्मा का यंत्र व उनका वाद्य बन जाता है। मुरली की तरह वह भीतर से रिक्त होता है, परमात्मा के स्वरों के लिए वह कोई अवरोध नहीं उत्पन्न करता। वह जैसा चाहे जो चाहे वैसा हो जाए तभी मुरली का गायन है। धन्य हैं वह लोग जो परमात्मा की ज्ञान-मुरली, ज्ञान वीणा बने हैं। उन्हीं का जीवन सफल है, कृतार्थ है। जिस तरह से विसर्जन ही समर्पण है और समर्पण का आधार श्रद्धा है। आध्यात्मिक क्षेत्र में श्रद्धा बहुत बडी संपत्ति है। संशयग्रस्तमनुष्य कभी भी परमात्मा को नहीं पा सकता। वर्तमान शताब्दी संशय से भरी हुई है, अत:परमात्मा से तथा आध्यात्मिकता से बहुत दूर चली गई है। भौतिक क्षेत्र में तो संशय की मनोवृत्ति से हमें अनेक उपलब्धियां हुई, लेकिन आध्यात्मिक प्रगति के लिए संशय की मनोवृत्ति बहुत अधिक खतरनाक सिद्ध हुई। आत्मानुभूति और ईश्वरानुभूतिके लिए श्रद्धा की मनोवृत्ति आवश्यक है। आज के युग में श्रद्धा के पुनर्जागरण की आवश्यकता है। मनुष्य की जब तक तर्क बुद्धि शांत नहीं हो जाती तब तक श्रद्धा और समर्पण के लिए विसर्जन चाहिए अहंकार का।


जो सुखी है वही दूसरे को सुखी बना सकता है। १ २. संसार में आये हो - ऐसी चातुरी से काम लो कि मल - मूत्र के भाँड में न आना पड़े। २ ३. मनुष्य कर्म करने में स्वतन्त्र है परन्तु फल भोगने में परतन्त्र है। ५ ४. उदर - पोषण में ही चातुरी समाप्त मत कर दो। ७ ५. वासनाओं की पूर्ति के पीछे मत पड़ो। ९ ६. जो भाग्य में है वह आयेगा अवश्य। १० ७. मनुष्य का शरीर मिला है, इसे व्यर्थ मत जाने दो। १२ ८. कर्म से भी मोक्ष सम्भव है। १४ ९. जीना उन्हीं का सार्थक है जो जीकर कुछ आगे के लियै बनायें। १६ १०. मृत्युकाल की पीड़ा। १८ ११. अन्त न बिगड़ने पाये। १९ १२. जिसका वियोग निश्चितहै उनको सुख का साधन बनाना भारी भूल। २० १३. शत्रु - मित्र से सम्भाव रखो। २६ १४. दुष्कर्म हो जाय तो कह दो - सत्कर्म करो तो छिपाओ। २८ १५. ऐसा नहीं कि पाप करते जाओ, भगवान् को भजते जाओ। २९ १६. भगवान् की सेवा करना चाहते हो तो हनुमान जी का आदर्श पालन करो। ३० १७. शक्ति का अपव्यय और बुद्धि का दुरुपयोग न करो। ३२ १८. जैसा देव वैसी पूजा। ३३ १९. झूठे आदमी को कभी शान्ति नहीं मिल सकती, चाहे वह कुवेर के (६) समान धनवान हो जाय। ३४ २०. दूसरे में नहीं, अपने में दोष देखो। ३९ २१. संसार प्रेम का पात्र नहीं, उसमें मन को फर्साओगे तो धोखा खोओगे। ३७ २२. पुरस्त्कार के योग्य पुरस्कार और तिरस्कार के योग्य का तिरस्कार करो। ३८ २३. जो आया है सो जायगा। ४० २४. भगवान् के भजन में लाभ ही लाभ है। ४१ २५. परमात्मा विश्वम्भर है। ४३ २६. जितने दिन जीना है शन्ति से जियो। ४४ २७. शक्ति प्राप्त करो। ४५ २८. साकार - निराकार के झगड़े में न पड़ो। ४७ २९. जैस काछो वैसा नाचो। ४८ ३०. प्रेम परमात्मा में और प्रेम की छाया संसार में रखो। ५० ३१. देवत्व से मनुष्यत्व श्रेष्ठ है। ५१ ३२. उसकी चिन्ता करो जो सब चिन्ताओं से मुक्त कर सकता है। ५३ ३३. जिसे भले - बरे का न्याय करना है वह तुम्हारे सब कार्यों को देख रहा है। ५४ ३४. चार वृत्तियों में ही रहो, लोक - परलोक दोनों बनेगा। ५६ ३५. सिध्यियों के चक्कर में ठगाये मत जाओ। ५७ ३६. जीव - ब्रह्म की एकता। ६१ ३७. तृष्णा के त्याग और ईश्वराराधन से ही सुख सम्भव। ६९ ३८. योजनायें बना - बनाकर अपने जीवन को उलझन में न डालो। ६५ ३९. भगवान का अवतार किस लिए होता है। ६७ ४०. मन के थोर्ड़े सहयोग से ही व्यवहार चल सकता है। ६८ ४१. लोक - परलोक में सर्वत्र सुख शान्ति चाहते हो तो सर्वशक्तिमान परमात्मा की शरण लो। ७२ (७) ४२. मन को संसार में कोई नहीं चाहता। ७५ ४३. पतन से बचना चाहते हो तो पाप से बचो और पुण्य को बढ़ाओ। ७८ ४४. मन को संसार में लगाओ, पर इतना ही कि परमार्थ न बिगड़े ७९ ४५. भगवान का भक्त कभी दुखी नहीं रह सकता। ८० ४६. कुटुम्बयों की अश्रद्धा होने के पहिले ही भगवान् की ओर झुक जाओ। ८१ ४७. भगवान की प्रतिज्ञा अपने भक्तों के लिए - " मैं सब कुछ करने को तैयार हूँ। ८२ ४८. रात्रि में सोने से पहिले कुछ जप और ध्यान अवश्य करें। ८४ ४९. इन्द्रियों के भोग - विलास में जो निमग्न रहता है वह किसी काम का नहीं रह जाता। ८५ ५०. मन की प्रवृत्ति जिधर होती है वह स्वयं रास्ता निकाल लेता है। ८६ ५१. राग ही सर्वानर्थ का मूल। ८७ ५२. विध्नों के भय से मार्ग नहीं छोड़ना चाहिये। ८८ ५३. प्रबृत्ति को अशुभ से रोक कर शुभ में लगाना - यही मुख्य पुरुषार्थ है। ५४. परमात्त्मा से विमुख हो रहे हो - इसी से नाना प्रकार की विपत्तियाँ आ रही हैं। ९१ ५५ . प्रारब्ध से पुरुषार्थ बलवान है। ९३ ५६. त्यागी और उदार तो बहुत हैं - हो सके तो रागी और कृपण बनने का प्रयत्न करो। ९५ ५७. एक भगवान् को मजबूती से पकड़ो तो अनेक की खुशामद नहीं करनी पड़ेगी। ९६ ५८. संसार जैसा है वैसा ही पड़ा रहेगा - जब तक यहाँ हो अपना काम बना लो। ९८ (८) ५९. मनुष्य-जन्म दुर्लभ है, इसे सार्थक बनाओ। ९९ ६०. शक्ति चाहते हो तो शक्ति के केन्द्र से सम्बन्ध जोड़ो। १०१ ६१. जिनके लिए हाव - हाव करके मारे - मारे फिरते हो वे ही जबाब देते हैं। १०२ ६२. हाली में गाली व रंग - गुलाल क्यों। १०४ ६३. महाअसुर हिरण्यकश्यपु के पुत्र प्रहलाद क्यों भक्त उत्पन्न हुये। १०६ ६४. दीन बन कर दीनदयालु की दयालुता का लाभ उठाओ। १११ ६५. स्वधर्म पालन और भगवान का स्मरण सदा करते रहो। ११३ ६६. भगवचिन्तन और आहार शुद्धि। ११६ ६७. गर्भवास में फिर न आना पड़े तभो मनुष्य जन्म सार्थक। ११८ ६८. सर्बत्र भगवान का भाव ही भक्तों का लक्षण। १२२ ६९. गुरु बदलने में कोई पाप नहीं होता। १२४ ७०. जगत भर का ज्ञान प्राप्त कर लो, पर यदि अपने को न ज्ञान पाए तो अज्ञानी ही रहोगे। १२५ ७१. तुम तो सच्चिदाननद स्वरूप परमात्मा के अंश हो - अपने को भूलकार ही दुखसागर में डूब रहे हो। १२६ ७२. भगवान का नाम जपो, परन्तु विधि के साथ। १२८ ७३. ॐकार की जप - स्त्रियों के लिए उसका निषेध। १२९ ७४. क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और स्त्री जाति के लिए गुरुत्व नहीं। १३२ ७५. स्त्री - समाज का केवल पति - परायण ही रहकर कल्याण। १३४ ७६. भगवान् के आज्ञारूप वेद - शास्त्र के अनुसार चलिए। १३६ ७७. सदगुरु किसे कहते हैं। १३७ ७८. जगदगुरु किसे कहते हैं। १४२ ७९. सत्संग की बातों को मनन करना आवश्यक। १४५ ८०. घर में रहते हुये महात्मा बनो। १४७ ८१. धन - संग्रह से अधिक प्रयत्न बुद्धि शुद्ध करने के लिए करो। १४९ ८२. बिना ज्ञान के न भक्ति ही हो सकती है और न मोक्ष ही। १४९ (९) ८३. अच्छे कार्यों को जल्दी करो। १५२ ८४. भगवान से लाभ उठाना चाहते हो तो उपासना करके उन्हें एक - देश में प्रकट करो। १५३ ८५. सुख चाहते हो तो सुख - सागर की ओर चलो। १५४ ८६. भगवान का भजन अवश्य करो - मन लगे या न लगे। १५६ ८७. ज्ञान से भगवान के दर्शन का भाव ठीक है - या प्रत्यक्ष दर्शन। १५७ ८८. भक्ति और ज्ञान - निराकार और साकार - के झगडे में न पड़ो। १५८ ८९. अपने किये का फल तो भोगना ही पड़ेगा। १६६ ९०. जैसा मन हो वैसा ही कहो और वैसा ही करो। १६७ ९१. मन को संसार में अधिक न फँसाकर भगवान की तरफ लगाओ। १६९ ९२. भगवान के पास पहुँचना है तो उनके नाम का सहारा लो। १७३ ९३. दुःख की प्रातिभासिक सत्ता है, वास्तविक नहीं। १७५ ९४. संसार शोक - सागर ही है, आत्मज्ञानी ही उसे पार कर सकता है। १८१ ९५. भवसागर से पार होने का प्रयत्न करो। नौकारूढ़ होकर डूब गये तो इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा। १८३ ९६. सिवाय परमात्मा के कोई सहायक नहीं। १८७ ९७. जाति - पांति कल्याण कारक नहीं - भगवान् के भजन और स्वधर्म पालन से कल्याण होगा। १८९ ९८. दुर्जन के लिए दुर्जन बनना और निन्दक के लिये स्वयं निन्दक बन जाना उचित नहीं। १९१ ९९. त्याग और ग्रहण से मुक्त होकर स्वरूपानन्द में निमग्न हो रही। १९४ १००. अविवेक से मनुष्य बहुत कष्ट उठाते हैं। १९७ १०१. स्वार्थ प्रबल है। १९९ १०२. भौतिकवाद सुख - शान्ति देने में समर्थ नहीं। २०० १०३. उदर - पोषण के लिए अपने भाग्य पर विश्वास रखो। २०२ १०४. जितना हो सके शुभ कार्यों का सम्पादन करो। २०४ १०५. सतर्क रह कर जीवन का सदुपयोग करो। २०८ (१०) १०६. विचार पूर्वक प्रवृत्ति बनाने से ही मन स्मार्ग की ओर जाता। २११ १०७. जो अपना लक्ष्य भूल गया, वह पथ - भ्रष्ट हो ही जायगा। २१४ १०८. जों भगवान की ओर झुका है उसे किसी वस्तु की कभी नहीं। २१६ - : ० : -


मध्यप्रदेश : राजयोग से मन की स्थिरता संभव- भगवान भाई मध्यप्रदेश : राजयोग से मन की स्थिरता संभव- भगवान भाई Print PDF Download खरगोन, ४ जुलाई (हि.स.)। जीवन में सदा स्वस्थ, संपतिवान व खुश रहने के लिए आंतरिक शक्ति व स्थिरता की आवश्यकता है। राजयोग के नियमित अभ्यास से ही मन की स्थिरता प्राप्त होना संभव है। उक्त उद्गार प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय माउंटआबू से पधारे हुए ब्रह्मा कुमार भगवानभाई ने कहे। उन्होंने कहा कि जीवन की [..


ब्र.कु. भगवानभाई का नाम इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज click to delete मध्यप्रदेश : ब्र.कु. भगवानभाई का नाम इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज खरगोन, 10 जुलाई (हि.स.) । समाज के अंदर भ्रष्टाचार, कुरीतियॉं, बुराईयॉं, व्यसन तथा नशा समाप्त करना है तो उसके लिए स्कूलों में शिक्षा में परिवर्तन लाने की तथा समाज को सुधारने के लिए शिक्षा में मूल्य और आध्यात्मिकता का समावेश करने की आवश्यकता है। क्योंकि स्कूलों से ही समाज के हर क्षेत्र में व्यक्ति जाता [...]


सातारा, दि. 15 : प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालयाचे मुख्यालय असलेल्या माऊंट अबू येथील ब्रह्माकुमार भगवानभाईंनी केलेल्या उल्लेखनीय कामगिरीची दखल घेवून त्यांच्या कार्याची "इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड' मध्ये नुकतीच नोंद झाली असून दिल्ली येथे एका विशेष समारंभामध्ये इंडिया बुक ऑफ रेकार्डचे मुख्य संपादक विश्वरूपराय चौधरी यांच्या हस्ते त्यांना सन्मानित करण्यात आले. भगवानभाईंनी आतापर्यंत भारतातील विविध प्रांतातील 5000 शाळा, महाविद्यालयांमध्ये जाऊन लाखो विद्यार्थ्यांना मूल्यनिष्ठ शिक्षणाद्वारे नैतिक व अध्यात्मिक विकासासाठी उद्‌बोधन केले आहे. 800 कारागृहांमध्ये जाऊन हजारो कैद्यांना गुन्हेगारी सोडून आपल्या जीवनामध्ये सद्‌भावना, मूल्य तसेच मानवतेला स्थापित करण्यासाठी प्रेरित केले आहे. या कार्याची नोंद घेवून त्यांची या पुरस्कारासाठी निवड करण्यात आली. सत्कारानंतर प्रतिक्रिया व्यक्त करताना ब्र. कु.भगवानभाई म्हणाले, समाजामधील भ्रष्टाचार, व्यसनाधिनता, गुन्हेगारी समाप्त करावयाची असेल तर त्यासाठी शिक्षणामध्ये परिवर्तनाची आवश्यकता आहे. शाळा/ महाविद्यालयांमधूनच समाजाच्या प्रत्येक क्षेत्रामध्ये व्यक्ती प्रवेश करते. आजचा विद्यार्थीच उद्याचा समाज आहे. म्हणूनच समाजाच्या विकासासाठी शिक्षणामध्ये मूल्य व अध्यात्मिकतेचा समावेश करण्याची आवश्यकता आहे. सांगली जिल्ह्यात आटपाडी तालुक्यातील तळेवाडी या छोट्याशा खेड्यात एका निरक्षर व गरीब कुटुंबात जन्मलेल्या भगवानभाईंना लिहिण्या- वाचण्यासाठी वही, पुस्तकेसुध्दा मिळत नव्हती. वयाच्या 11 वर्षी त्यांनी शाळेत जायला सुरूवात केली. ते जुन्या रद्दीमधील वह्यांची कोरी पाने व शाईने लिहिलेली पाने पाण्याने धुवून, सुकवून त्या पानांचा उपयोग लिहिण्यासाठी करीत. अशाच रद्दीमध्ये त्यांना ब्रह्माकुमारी संस्थेच्या एका पुस्तकाची काही पाने मिळाली. या रद्दीतील पानानींच त्यांचे जीवन बदलून गेले. त्या पानावर असलेल्या पत्त्यावरून ते ब्रह्माकुमारीसंस्थेमध्ये पोहचले व तेथील ईश्वरीय ज्ञान व राजयोगाचा अभ्यास करून आपले मनोबल वाढविले व त्या फलस्वरूप माऊंट अबू येथील आपले सेवाकार्य सांभाळून आजपर्यंत त्यांनी 5000 शाळा, महाविद्यालये व 800 कारागृहात जाऊन या सेवेचे एक रेकॉर्ड प्रस्थापित केले. वर्तमानसमयी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालयाच्या शांतीवन या मुख्यालयातील विशाल किचनमध्ये सेवारत असून अनेक मासिकातून तसेच वृत्तपत्रातून आतापर्यंत 2000 हून अधिक लेख लिहिले आहेत. त्यांना मिळालेल्या या सन्मानाबद्दल सातारा सेवाकेंद्राच्या संचालिका ब्रह्माकुमारी रूक्मिणी बहेनजी व शिक्षणाधिकारी (माध्य.) मकरंद गोंधळी यांनी त्यांचे अभिनंदन केले


प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालयाचे मुख्यालय असलेल्या माऊंट अबू येथील ब्रह्माकुमार भगवानभाईंनी केलेल्या उल्लेखनीय कामगिरीची दखल घेवून त्यांच्या कार्याची "इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड' मध्ये नुकतीच नोंद झाली असून दिल्ली येथे एका विशेष समारंभामध्ये इंडिया बुक ऑफ रेकार्डचे मुख्य संपादक विश्वरूपराय चौधरी यांच्या हस्ते त्यांना सन्मानित करण्यात आले.

सातारा, दि. 15 : प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालयाचे मुख्यालय असलेल्या माऊंट अबू येथील ब्रह्माकुमार भगवानभाईंनी केलेल्या उल्लेखनीय कामगिरीची दखल घेवून त्यांच्या कार्याची "इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड' मध्ये नुकतीच नोंद झाली असून दिल्ली येथे एका विशेष समारंभामध्ये इंडिया बुक ऑफ रेकार्डचे मुख्य संपादक विश्वरूपराय चौधरी यांच्या हस्ते त्यांना सन्मानित करण्यात आले.
भगवानभाईंनी आतापर्यंत भारतातील विविध प्रांतातील 5000 शाळा, महाविद्यालयांमध्ये जाऊन लाखो विद्यार्थ्यांना मूल्यनिष्ठ शिक्षणाद्वारे नैतिक व अध्यात्मिक विकासासाठी उद्‌बोधन केले आहे. 800 कारागृहांमध्ये जाऊन हजारो कैद्यांना गुन्हेगारी सोडून आपल्या जीवनामध्ये सद्‌भावना, मूल्य तसेच मानवतेला स्थापित करण्यासाठी प्रेरित केले आहे. या कार्याची नोंद घेवून त्यांची या पुरस्कारासाठी निवड करण्यात आली.
सत्कारानंतर प्रतिक्रिया व्यक्त करताना ब्र. कु.भगवानभाई म्हणाले, समाजामधील भ्रष्टाचार, व्यसनाधिनता, गुन्हेगारी समाप्त करावयाची असेल तर त्यासाठी शिक्षणामध्ये परिवर्तनाची आवश्यकता आहे. शाळा/ महाविद्यालयांमधूनच समाजाच्या प्रत्येक क्षेत्रामध्ये व्यक्ती प्रवेश करते. आजचा विद्यार्थीच उद्याचा समाज आहे. म्हणूनच समाजाच्या विकासासाठी शिक्षणामध्ये मूल्य व अध्यात्मिकतेचा समावेश करण्याची आवश्यकता आहे.
सांगली जिल्ह्यात आटपाडी तालुक्यातील तळेवाडी या छोट्याशा खेड्यात एका निरक्षर व गरीब कुटुंबात जन्मलेल्या भगवानभाईंना लिहिण्या- वाचण्यासाठी वही, पुस्तकेसुध्दा मिळत नव्हती. वयाच्या 11 वर्षी त्यांनी शाळेत जायला सुरूवात केली. ते जुन्या रद्दीमधील वह्यांची कोरी पाने व शाईने लिहिलेली पाने पाण्याने धुवून, सुकवून त्या पानांचा उपयोग लिहिण्यासाठी करीत. अशाच रद्दीमध्ये त्यांना ब्रह्माकुमारी संस्थेच्या एका पुस्तकाची काही पाने मिळाली. या रद्दीतील पानानींच त्यांचे जीवन बदलून गेले. त्या पानावर असलेल्या पत्त्यावरून ते ब्रह्माकुमारीसंस्थेमध्ये पोहचले व तेथील ईश्वरीय ज्ञान व राजयोगाचा अभ्यास करून आपले मनोबल वाढविले व त्या फलस्वरूप माऊंट अबू येथील आपले सेवाकार्य सांभाळून आजपर्यंत त्यांनी 5000 शाळा, महाविद्यालये व 800 कारागृहात जाऊन या सेवेचे एक रेकॉर्ड प्रस्थापित केले.
वर्तमानसमयी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालयाच्या शांतीवन या मुख्यालयातील विशाल किचनमध्ये सेवारत असून अनेक मासिकातून तसेच वृत्तपत्रातून आतापर्यंत 2000 हून अधिक लेख लिहिले आहेत. त्यांना मिळालेल्या या सन्मानाबद्दल सातारा सेवाकेंद्राच्या संचालिका ब्रह्माकुमारी रूक्मिणी बहेनजी व शिक्षणाधिकारी (माध्य.) मकरंद गोंधळी यांनी त्यांचे अभिनंदन केले

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के 75 साल पूरे होने पर शनिवार से प्लैटिनम जुबली समारोह की शुरुआत हुई। यह समारोह 16 अक्टूबर तक चलेगा। इसका उद्घाटन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी और उनकी पत्नी सलमा अंसारी ने किया। इस मौके पर भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और ब्रह्माकुमारी के कई सदस्य मौजूद थे। समारोह का थीम वन गॉड वन वर्ल्ड फैमिली रखा गया है। उद्घाटन के बाद हामिद अंसारी ने कहा कि विभिन्न देशों में रहने वाले लोगों को एक साथ लाने का यह सबसे अच्छा मंच है। उन्होंने कहा कि यह गर्व की बात है कि यहां से पूरे विश्व में शांति और सद्भावना का संदेश प्रसारित हो रहा है। ब्रह्माकुमारीज संस्था की अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनी ने कहा कि हम अपने को जानें और परमात्मा के साथ अपने मन के तार जोड़कर सशक्त बनाने का प्रयास करें। प्लैटिनम जुबली समारोह में शामिल होने के लिए विदेशों से भी लोग आ रहे हैं। ब्रह्माकुमारी स्टूडेंट्स ने इस मौके पर डांस परफॉर्मेंस दिए। विदेशी गायकों ने इस समारोह में भारतीय गाना गाकर माहौल को खुशनुमा बना दिया। समारोह के पहले दिन यूथ पर एक प्रोग्राम किया गया। इसके चीफ गेस्ट स्पोर्ट्स मिनिस्टर अजय माकन थे। इसके बाद महिलाओं पर भी कार्यक्रम पेश किया गया। इसकी चीफ गेस्ट कृष्णा तीरथ थीं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की पत्नी गुरशरण कौर स्पेशल गेस्ट के तौर पर मौजूद थीं। समारोह के दूसरे दिन सीपीडब्ल्यूडी ग्राउंड (चिराग दिल्ली) में सिंगर शान कार्यक्रम पेश करेंगे। ऐसे ही लगातार 16 अक्टूबर तक सेलिब्रेशन चलता रहेगा।


प्राणी मात्र का अध्यात्मिक मार्गदर्शन करने के उद्देश्य से प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की स्थानीय शाखा प्रभु उपहार भवन की ओर से गांव बरारी में 'मन की खुशी' विषय पर सेमीनार करवाया गया। विश्वविद्यालय की स्थानीय संचालिका बीके पुष्पा ने कहा कि राजयोग के माध्यम से आत्मा का परमपिता परमात्मा से संपर्क स्थापित होता है, जिससे प्राणी के जीवन में अविनाशी सुख-शाति-पवित्रता का सूर्योदय होता है। उन्होंने कहा कि आज हमारे मन की अशांति का कारण यह है कि हमारी आत्मा अपने आप को भूल गई है और मन विकारों व अवगुणों से भर चुका है। इसलिए इन बुराइयों से छुटकारा पाने के लिए परमपिता ब्रह्मा बाबा के दिखाए मार्ग पर चलना होगा। सेमिनार में लोभ, मोह, अहकार से छुटकारा पाने तथा सदैव धर्म की जीत को दर्शाती हुई प्रस्तुतियों से समा बंध गया


Thursday 27 October 2011

ब्रह्मा बाबा ने अपना पूरा जीवन मानवता की सेवा में लगा दिया था। बाबा यह अच्छी तरह जानते थे कि यदि विश्व में शांति की स्थापना करनी है तो उसके लिए जरूरी है कि सभी मनुष्यों के अंदर शांति का बीजारोपण हो। इस सोच के साथccने उन सभी वर्जनाओं को तोड़ने का प्रयास किया,


जो व्यक्ति को जाति-धर्म और रंगों के आधार पर विभाजित करते हैं।



बाबा के बचपन का नाम दादा लेखराज था। वे बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इनका जन्म सन् 1876 में सिंध प्रांत (वर्तमान में पाकिस्तान) के एक कुलीन और साधारण परिवार में हुआ। बचपन में ही इनकी माता का देहांत हो गया। जरूरतमंत लोगों की हर स्थिति में मदद करना इनके व्यक्तित्व में शुमार था। वे ईश्वर की अराधना केवल अपने लिए ही नहीं बल्कि समस्त मानव जाति के लिए करते थे। लेखराज बचपन से इतने सौम्य और असाधारण थे कि इन्हें लोग प्यार से दादा कहते थे। दादा बड़े होकर हीरे-जवाहरातों के व्यापार में लग गए। लेकिन इनके जीवन में परिवर्तन साठ साल की उम्र में आया। बाबा को वाराणसी में अपने मित्र के घर एक रात ईश्वर से साक्षात्कार हुआ। भगवान शिव ने इन्हें नई दुनिया बनाने के महान कार्य का दायित्व सौपा। इस दिव्य दृश्य ने उनके जीवन को बदल कर रख दिया तथा वैराग्य को अपना लिया। बाबा ने अपनी चल-अचल संपत्ति बेचकर एक ट्रस्ट की स्थापना की, जिसमें माताओं-बहनों को आगे रख समाज के बदलाव की प्रक्रिया का आगाज किया। भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद यह संस्था राजस्थान के माउण्ट आबू आई तथा पूरे देश-विदेश में मानवीय सेवाओं का दौर प्रारंभ हुआ। इस यात्रा में सभी धर्म-संप्रदाय के लोगों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। बाबा ने अपनी संपूर्णता को प्राप्त करते हुए 18 जनवरी, 1969 को अपने नश्वर शरीर का त्याग किया। बाबा स्थूल रुप से तो हमारे बीच नहीं है परंतु उनकी सूक्ष्म उपस्थिति आज भी हमें काल की तरफ बढ़ रही दुनिया में नई दुनिया की स्थापना का मार्ग प्रशस्त कर रही है।

ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा

  रजापिता ब्रह्मा बाबा ने अपना पूरा जीवन मानवता की सेवा में लगा दिया था। बाबा यह अच्छी तरह जानते थे कि यदि विश्व में शांति की स्थापना करनी है तो उसके लिए जरूरी है कि सभी मनुष्यों के अंदर शांति का बीजारोपण हो। इस सोच के साथccने उन सभी वर्जनाओं को तोड़ने का प्रयास किया, जो व्यक्ति को जाति-धर्म और रंगों के आधार पर विभाजित करते हैं। 

बाबा के बचपन का नाम दादा लेखराज था। वे बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इनका जन्म सन् 1876 में सिंध प्रांत (वर्तमान में पाकिस्तान) के एक कुलीन और साधारण परिवार में हुआ। बचपन में ही इनकी माता का देहांत हो गया। जरूरतमंत लोगों की हर स्थिति में मदद करना इनके व्यक्तित्व में शुमार था। वे ईश्वर की अराधना केवल अपने लिए ही नहीं बल्कि समस्त मानव जाति के लिए करते थे। लेखराज बचपन से इतने सौम्य और असाधारण थे कि इन्हें लोग प्यार से दादा कहते थे। दादा बड़े होकर हीरे-जवाहरातों के व्यापार में लग गए। लेकिन इनके जीवन में परिवर्तन साठ साल की उम्र में आया। बाबा को वाराणसी में अपने मित्र के घर एक रात ईश्वर से साक्षात्कार हुआ। भगवान शिव ने इन्हें नई दुनिया बनाने के महान कार्य का दायित्व सौपा। इस दिव्य दृश्य ने उनके जीवन को बदल कर रख दिया तथा वैराग्य को अपना लिया। बाबा ने अपनी चल-अचल संपत्ति बेचकर एक ट्रस्ट की स्थापना की, जिसमें माताओं-बहनों को आगे रख समाज के बदलाव की प्रक्रिया का आगाज किया। भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद यह संस्था राजस्थान के माउण्ट आबू आई तथा पूरे देश-विदेश में मानवीय सेवाओं का दौर प्रारंभ हुआ। इस यात्रा में सभी धर्म-संप्रदाय के लोगों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। बाबा ने अपनी संपूर्णता को प्राप्त करते हुए 18 जनवरी, 1969 को अपने नश्वर शरीर का त्याग किया। बाबा स्थूल रुप से तो हमारे बीच नहीं है परंतु उनकी सूक्ष्म उपस्थिति आज भी हमें काल की तरफ बढ़ रही दुनिया में नई दुनिया की स्थापना का मार्ग प्रशस्त कर रही है।

सातारा, दि. 15 : प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालयाचे मुख्यालय असलेल्या माऊंट अबू येथील ब्रह्माकुमार भगवानभाईंनी केलेल्या उल्लेखनीय कामगिरीची दखल घेवून त्यांच्या कार्याची "इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड' मध्ये नुकतीच नोंद झाली असून दिल्ली येथे एका विशेष समारंभामध्ये इंडिया बुक ऑफ रेकार्डचे मुख्य संपादक विश्वरूपराय चौधरी यांच्या हस्ते त्यांना सन्मानित करण्यात आले. भगवानभाईंनी आतापर्यंत भारतातील विविध प्रांतातील 5000 शाळा, महाविद्यालयांमध्ये जाऊन लाखो विद्यार्थ्यांना मूल्यनिष्ठ शिक्षणाद्वारे नैतिक व अध्यात्मिक विकासासाठी उद्‌बोधन केले आहे. 800 कारागृहांमध्ये जाऊन हजारो कैद्यांना गुन्हेगारी सोडून आपल्या जीवनामध्ये सद्‌भावना, मूल्य तसेच मानवतेला स्थापित करण्यासाठी प्रेरित केले आहे. या कार्याची नोंद घेवून त्यांची या पुरस्कारासाठी निवड करण्यात आली. सत्कारानंतर प्रतिक्रिया व्यक्त करताना ब्र. कु.भगवानभाई म्हणाले, समाजामधील भ्रष्टाचार, व्यसनाधिनता, गुन्हेगारी समाप्त करावयाची असेल तर त्यासाठी शिक्षणामध्ये परिवर्तनाची आवश्यकता आहे. शाळा/ महाविद्यालयांमधूनच समाजाच्या प्रत्येक क्षेत्रामध्ये व्यक्ती प्रवेश करते. आजचा विद्यार्थीच उद्याचा समाज आहे. म्हणूनच समाजाच्या विकासासाठी शिक्षणामध्ये मूल्य व अध्यात्मिकतेचा समावेश करण्याची आवश्यकता आहे. सांगली जिल्ह्यात आटपाडी तालुक्यातील तळेवाडी या छोट्याशा खेड्यात एका निरक्षर व गरीब कुटुंबात जन्मलेल्या भगवानभाईंना लिहिण्या- वाचण्यासाठी वही, पुस्तकेसुध्दा मिळत नव्हती. वयाच्या 11 वर्षी त्यांनी शाळेत जायला सुरूवात केली. ते जुन्या रद्दीमधील वह्यांची कोरी पाने व शाईने लिहिलेली पाने पाण्याने धुवून, सुकवून त्या पानांचा उपयोग लिहिण्यासाठी करीत. अशाच रद्दीमध्ये त्यांना ब्रह्माकुमारी संस्थेच्या एका पुस्तकाची काही पाने मिळाली. या रद्दीतील पानानींच त्यांचे जीवन बदलून गेले. त्या पानावर असलेल्या पत्त्यावरून ते ब्रह्माकुमारीसंस्थेमध्ये पोहचले व तेथील ईश्वरीय ज्ञान व राजयोगाचा अभ्यास करून आपले मनोबल वाढविले व त्या फलस्वरूप माऊंट अबू येथील आपले सेवाकार्य सांभाळून आजपर्यंत त्यांनी 5000 शाळा, महाविद्यालये व 800 कारागृहात जाऊन या सेवेचे एक रेकॉर्ड प्रस्थापित केले. वर्तमानसमयी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालयाच्या शांतीवन या मुख्यालयातील विशाल किचनमध्ये सेवारत असून अनेक मासिकातून तसेच वृत्तपत्रातून आतापर्यंत 2000 हून अधिक लेख लिहिले आहेत. त्यांना मिळालेल्या या सन्मानाबद्दल सातारा सेवाकेंद्राच्या संचालिका ब्रह्माकुमारी रूक्मिणी बहेनजी व शिक्षणाधिकारी (माध्य.) मकरंद गोंधळी यांनी त्यांचे अभिनंदन केले. फोटो गॅलरी


सातारा, दि. 15 : प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालयाचे मुख्यालय असलेल्या माऊंट अबू येथील ब्रह्माकुमार भगवानभाईंनी केलेल्या उल्लेखनीय कामगिरीची दखल घेवून त्यांच्या कार्याची "इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड' मध्ये नुकतीच नोंद झाली असून दिल्ली येथे एका विशेष समारंभामध्ये इंडिया बुक ऑफ रेकार्डचे मुख्य संपादक विश्वरूपराय चौधरी यांच्या हस्ते त्यांना सन्मानित करण्यात आले. भगवानभाईंनी आतापर्यंत भारतातील विविध प्रांतातील 5000 शाळा, महाविद्यालयांमध्ये जाऊन लाखो विद्यार्थ्यांना मूल्यनिष्ठ शिक्षणाद्वारे नैतिक व अध्यात्मिक विकासासाठी उद्‌बोधन केले आहे. 800 कारागृहांमध्ये जाऊन हजारो कैद्यांना गुन्हेगारी सोडून आपल्या जीवनामध्ये सद्‌भावना, मूल्य तसेच मानवतेला स्थापित करण्यासाठी प्रेरित केले आहे. या कार्याची नोंद घेवून त्यांची या पुरस्कारासाठी निवड करण्यात आली. सत्कारानंतर प्रतिक्रिया व्यक्त करताना ब्र. कु.भगवानभाई म्हणाले, समाजामधील भ्रष्टाचार, व्यसनाधिनता, गुन्हेगारी समाप्त करावयाची असेल तर त्यासाठी शिक्षणामध्ये परिवर्तनाची आवश्यकता आहे. शाळा/ महाविद्यालयांमधूनच समाजाच्या प्रत्येक क्षेत्रामध्ये व्यक्ती प्रवेश करते. आजचा विद्यार्थीच उद्याचा समाज आहे. म्हणूनच समाजाच्या विकासासाठी शिक्षणामध्ये मूल्य व अध्यात्मिकतेचा समावेश करण्याची आवश्यकता आहे. सांगली जिल्ह्यात आटपाडी तालुक्यातील तळेवाडी या छोट्याशा खेड्यात एका निरक्षर व गरीब कुटुंबात जन्मलेल्या भगवानभाईंना लिहिण्या- वाचण्यासाठी वही, पुस्तकेसुध्दा मिळत नव्हती. वयाच्या 11 वर्षी त्यांनी शाळेत जायला सुरूवात केली. ते जुन्या रद्दीमधील वह्यांची कोरी पाने व शाईने लिहिलेली पाने पाण्याने धुवून, सुकवून त्या पानांचा उपयोग लिहिण्यासाठी करीत. अशाच रद्दीमध्ये त्यांना ब्रह्माकुमारी संस्थेच्या एका पुस्तकाची काही पाने मिळाली. या रद्दीतील पानानींच त्यांचे जीवन बदलून गेले. त्या पानावर असलेल्या पत्त्यावरून ते ब्रह्माकुमारीसंस्थेमध्ये पोहचले व तेथील ईश्वरीय ज्ञान व राजयोगाचा अभ्यास करून आपले मनोबल वाढविले व त्या फलस्वरूप माऊंट अबू येथील आपले सेवाकार्य सांभाळून आजपर्यंत त्यांनी 5000 शाळा, महाविद्यालये व 800 कारागृहात जाऊन या सेवेचे एक रेकॉर्ड प्रस्थापित केले. वर्तमानसमयी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालयाच्या शांतीवन या मुख्यालयातील विशाल किचनमध्ये सेवारत असून अनेक मासिकातून तसेच वृत्तपत्रातून आतापर्यंत 2000 हून अधिक लेख लिहिले आहेत. त्यांना मिळालेल्या या सन्मानाबद्दल सातारा सेवाकेंद्राच्या संचालिका ब्रह्माकुमारी रूक्मिणी बहेनजी व शिक्षणाधिकारी (माध्य.) मकरंद गोंधळी यांनी त्यांचे अभिनंदन केले. फोटो गॅलरी


महाराष्ट्राच्या शिरपेचातील मानाचा तूरा : नवरत्नांची खाण असणाया महाराष्ट्राच्या मातीत जन्मलेल्या रत्नांची महिमा सांगणारे स्वतंत्र व्यासपिठ : रद्दीच्या कागदावरील शिवसंदेश वाचून एक सफल राजयोगी बनलेले : ब्राहृाकुमार भगवान भाई इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड मधे सुवर्णाक्षरानी नाव नोंदवलायं भगवान भाई यांनी. 12. दिल्ली येथे इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड चे मुख्य संपादक वि·ारुप राय चौधरी हे ब्रा.कु.भगवान भाई (शान्तीवन आबू रोड) यांना प्रमाणपत्र देतांना सोबत इंडिया बुक ऑफ रेकार्डची टीम.प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालयाचे मुख्यालय असलेल्या माऊंट अबू येथील ब्रह्माकुमार भगवानभाईंनी केलेल्या उल्लेखनीय कामगिरीची दखल घेवून त्यांच्या कार्याची "इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड' मध्ये नुकतीच नोंद झाली असून दिल्ली येथे एका विशेष समारंभामध्ये इंडिया बुक ऑफ रेकार्डचे मुख्य संपादक विश्वरूपराय चौधरी यांच्या हस्ते त्यांना सन्मानित करण्यात आले. भगवानभाईंनी आतापर्यंत भारतातील विविध प्रांतातील 5000 शाळा, महाविद्यालयांमध्ये जाऊन लाखो विद्यार्थ्यांना मूल्यनिष्ठ शिक्षणाद्वारे नैतिक व अध्यात्मिक विकासासाठी उद्‌बोधन केले आहे. 800 कारागृहांमध्ये जाऊन हजारो कैद्यांना गुन्हेगारी सोडून आपल्या जीवनामध्ये सद्‌भावना, मूल्य तसेच मानवतेला स्थापित करण्यासाठी प्रेरित केले आहे. या कार्याची नोंद घेवून त्यांची या पुरस्कारासाठी निवड करण्यात आली. सत्कारानंतर प्रतिक्रिया व्यक्त करताना ब्र. कु.भगवानभाई म्हणाले, समाजामधील भ्रष्टाचार, व्यसनाधिनता, गुन्हेगारी समाप्त करावयाची असेल तर त्यासाठी शिक्षणामध्ये परिवर्तनाची आवश्यकता आहे. शाळा/ महाविद्यालयांमधूनच समाजाच्या प्रत्येक क्षेत्रामध्ये व्यक्ती प्रवेश करते. आजचा विद्यार्थीच उद्याचा समाज आहे. म्हणूनच समाजाच्या विकासासाठी शिक्षणामध्ये मूल्य व अध्यात्मिकतेचा समावेश करण्याची आवश्यकता आहे. सांगली जिल्ह्यात आटपाडी तालुक्यातील तळेवाडी या छोट्याशा खेड्यात एका निरक्षर व गरीब कुटुंबात जन्मलेल्या भगवानभाईंना लिहिण्या- वाचण्यासाठी वही, पुस्तकेसुध्दा मिळत नव्हती. वयाच्या 11 वर्षी त्यांनी शाळेत जायला सुरूवात केली. ते जुन्या रद्दीमधील वह्यांची कोरी पाने व शाईने लिहिलेली पाने पाण्याने धुवून, सुकवून त्या पानांचा उपयोग लिहिण्यासाठी करीत. अशाच रद्दीमध्ये त्यांना ब्रह्माकुमारी संस्थेच्या एका पुस्तकाची काही पाने मिळाली. या रद्दीतील पानानींच त्यांचे जीवन बदलून गेले. त्या पानावर असलेल्या पत्त्यावरून ते ब्रह्माकुमारीसंस्थेमध्ये पोहचले व तेथील ईश्वरीय ज्ञान व राजयोगाचा अभ्यास करून आपले मनोबल वाढविले व त्या फलस्वरूप माऊंट अबू येथील आपले सेवाकार्य सांभाळून आजपर्यंत त्यांनी 5000 शाळा, महाविद्यालये व 800 कारागृहात जाऊन या सेवेचे एक रेकॉर्ड प्रस्थापित केले. वर्तमानसमयी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालयाच्या शांतीवन या मुख्यालयातील विशाल किचनमध्ये सेवारत असून अनेक मासिकातून तसेच वृत्तपत्रातून आतापर्यंत 2000 हून अधिक लेख लिहिले आहेत. त्यांना मिळालेल्या या सन्मानाबद्दल सातारा सेवाकेंद्राच्या संचालिका ब्रह्माकुमारी रूक्मिणी बहेनजी व शिक्षणाधिकारी (माध्य.) मकरंद गोंधळी यांनी त्यांचे अभिनंदन केले.


हाराष्ट्र मानपत्र : महाराष्ट्राच्या शिरपेचातील मानाचा तूरा : नवरत्नांची खाण असणाया महाराष्ट्राच्या मातीत जन्मलेल्या रत्नांची महिमा सांगणारे स्वतंत्र व्यासपिठ : रद्दीच्या कागदावरील शिवसंदेश वाचून एक सफल राजयोगी बनलेले : ब्राहृाकुमार भगवान भाई इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड मधे सुवर्णाक्षरानी नाव नोंदवलायं भगवान भाई यांनी. 12. दिल्ली येथे इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड चे मुख्य संपादक वि·ारुप राय चौधरी हे ब्रा.कु.भगवान भाई (शान्तीवन आबू रोड) यांना प्रमाणपत्र देतांना सोबत इंडिया बुक ऑफ रेकार्डची टीम.प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालयाचे मुख्यालय असलेल्या माऊंट अबू येथील ब्रह्माकुमार भगवानभाईंनी केलेल्या उल्लेखनीय कामगिरीची दखल घेवून त्यांच्या कार्याची "इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड' मध्ये नुकतीच नोंद झाली असून दिल्ली येथे एका विशेष समारंभामध्ये इंडिया बुक ऑफ रेकार्डचे मुख्य संपादक विश्वरूपराय चौधरी यांच्या हस्ते त्यांना सन्मानित करण्यात आले. भगवानभाईंनी आतापर्यंत भारतातील विविध प्रांतातील 5000 शाळा, महाविद्यालयांमध्ये जाऊन लाखो विद्यार्थ्यांना मूल्यनिष्ठ शिक्षणाद्वारे नैतिक व अध्यात्मिक विकासासाठी उद्‌बोधन केले आहे. 800 कारागृहांमध्ये जाऊन हजारो कैद्यांना गुन्हेगारी सोडून आपल्या जीवनामध्ये सद्‌भावना, मूल्य तसेच मानवतेला स्थापित करण्यासाठी प्रेरित केले आहे. या कार्याची नोंद घेवून त्यांची या पुरस्कारासाठी निवड करण्यात आली. सत्कारानंतर प्रतिक्रिया व्यक्त करताना ब्र. कु.भगवानभाई म्हणाले, समाजामधील भ्रष्टाचार, व्यसनाधिनता, गुन्हेगारी समाप्त करावयाची असेल तर त्यासाठी शिक्षणामध्ये परिवर्तनाची आवश्यकता आहे. शाळा/ महाविद्यालयांमधूनच समाजाच्या प्रत्येक क्षेत्रामध्ये व्यक्ती प्रवेश करते. आजचा विद्यार्थीच उद्याचा समाज आहे. म्हणूनच समाजाच्या विकासासाठी शिक्षणामध्ये मूल्य व अध्यात्मिकतेचा समावेश करण्याची आवश्यकता आहे. सांगली जिल्ह्यात आटपाडी तालुक्यातील तळेवाडी या छोट्याशा खेड्यात एका निरक्षर व गरीब कुटुंबात जन्मलेल्या भगवानभाईंना लिहिण्या- वाचण्यासाठी वही, पुस्तकेसुध्दा मिळत नव्हती. वयाच्या 11 वर्षी त्यांनी शाळेत जायला सुरूवात केली. ते जुन्या रद्दीमधील वह्यांची कोरी पाने व शाईने लिहिलेली पाने पाण्याने धुवून, सुकवून त्या पानांचा उपयोग लिहिण्यासाठी करीत. अशाच रद्दीमध्ये त्यांना ब्रह्माकुमारी संस्थेच्या एका पुस्तकाची काही पाने मिळाली. या रद्दीतील पानानींच त्यांचे जीवन बदलून गेले. त्या पानावर असलेल्या पत्त्यावरून ते ब्रह्माकुमारीसंस्थेमध्ये पोहचले व तेथील ईश्वरीय ज्ञान व राजयोगाचा अभ्यास करून आपले मनोबल वाढविले व त्या फलस्वरूप माऊंट अबू येथील आपले सेवाकार्य सांभाळून आजपर्यंत त्यांनी 5000 शाळा, महाविद्यालये व 800 कारागृहात जाऊन या सेवेचे एक रेकॉर्ड प्रस्थापित केले. वर्तमानसमयी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालयाच्या शांतीवन या मुख्यालयातील विशाल किचनमध्ये सेवारत असून अनेक मासिकातून तसेच वृत्तपत्रातून आतापर्यंत 2000 हून अधिक लेख लिहिले आहेत. त्यांना मिळालेल्या या सन्मानाबद्दल सातारा सेवाकेंद्राच्या संचालिका ब्रह्माकुमारी रूक्मिणी बहेनजी व शिक्षणाधिकारी (माध्य.) मकरंद गोंधळी यांनी त्यांचे अभिनंदन केले.


दि. 15 : प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालयाचे मुख्यालय असलेल्या माऊंट अबू येथील ब्रह्माकुमार भगवानभाईंनी केलेल्या उल्लेखनीय कामगिरीची दखल घेवून त्यांच्या कार्याची "इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड' मध्ये नुकतीच नोंद झाली असून दिल्ली येथे एका विशेष समारंभामध्ये इंडिया बुक ऑफ रेकार्डचे मुख्य संपादक विश्वरूपराय चौधरी यांच्या हस्ते त्यांना सन्मानित करण्यात आले. भगवानभाईंनी आतापर्यंत भारतातील विविध प्रांतातील 5000 शाळा, महाविद्यालयांमध्ये जाऊन लाखो विद्यार्थ्यांना मूल्यनिष्ठ शिक्षणाद्वारे नैतिक व अध्यात्मिक विकासासाठी उद्‌बोधन केले आहे. 800 कारागृहांमध्ये जाऊन हजारो कैद्यांना गुन्हेगारी सोडून आपल्या जीवनामध्ये सद्‌भावना, मूल्य तसेच मानवतेला स्थापित करण्यासाठी प्रेरित केले आहे. या कार्याची नोंद घेवून त्यांची या पुरस्कारासाठी निवड करण्यात आली. सत्कारानंतर प्रतिक्रिया व्यक्त करताना ब्र. कु.भगवानभाई म्हणाले, समाजामधील भ्रष्टाचार, व्यसनाधिनता, गुन्हेगारी समाप्त करावयाची असेल तर त्यासाठी शिक्षणामध्ये परिवर्तनाची आवश्यकता आहे. शाळा/ महाविद्यालयांमधूनच समाजाच्या प्रत्येक क्षेत्रामध्ये व्यक्ती प्रवेश करते. आजचा विद्यार्थीच उद्याचा समाज आहे. म्हणूनच समाजाच्या विकासासाठी शिक्षणामध्ये मूल्य व अध्यात्मिकतेचा समावेश करण्याची आवश्यकता आहे. सांगली जिल्ह्यात आटपाडी तालुक्यातील तळेवाडी या छोट्याशा खेड्यात एका निरक्षर व गरीब कुटुंबात जन्मलेल्या भगवानभाईंना लिहिण्या- वाचण्यासाठी वही, पुस्तकेसुध्दा मिळत नव्हती. वयाच्या 11 वर्षी त्यांनी शाळेत जायला सुरूवात केली. ते जुन्या रद्दीमधील वह्यांची कोरी पाने व शाईने लिहिलेली पाने पाण्याने धुवून, सुकवून त्या पानांचा उपयोग लिहिण्यासाठी करीत. अशाच रद्दीमध्ये त्यांना ब्रह्माकुमारी संस्थेच्या एका पुस्तकाची काही पाने मिळाली. या रद्दीतील पानानींच त्यांचे जीवन बदलून गेले. त्या पानावर असलेल्या पत्त्यावरून ते ब्रह्माकुमारीसंस्थेमध्ये पोहचले व तेथील ईश्वरीय ज्ञान व राजयोगाचा अभ्यास करून आपले मनोबल वाढविले व त्या फलस्वरूप माऊंट अबू येथील आपले सेवाकार्य सांभाळून आजपर्यंत त्यांनी 5000 शाळा, महाविद्यालये व 800 कारागृहात जाऊन या सेवेचे एक रेकॉर्ड प्रस्थापित केले. वर्तमानसमयी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालयाच्या शांतीवन या मुख्यालयातील विशाल किचनमध्ये सेवारत असून अनेक मासिकातून तसेच वृत्तपत्रातून आतापर्यंत 2000 हून अधिक लेख लिहिले आहेत. त्यांना मिळालेल्या या सन्मानाबद्दल सातारा सेवाकेंद्राच्या संचालिका ब्रह्माकुमारी रूक्मिणी बहेनजी व शिक्षणाधिकारी (माध्य.) मकरंद गोंधळी यांनी त्यांचे अभिनंदन केले.


आटपडीजवळ एक करगणी गाव आहे. तिथे एक प्राचिन शंकराचे देवळ आहे. हल्ली लोक त्याला रामाचे देवळ म्हणतात. ह्या देवळाची स्थापणा राम व लक्ष्मण यांनी केली असे म्हणतात. लक्ष्मणाला शंकराने एक खडग व आत्मलिंग दिले ते याच ठिकाणी. लक्ष्मणाने आत्मलिंआची स्थापना केली. दुसरे आत्मलिंग मंदिर गोकर्ण महाबळेश्वर (कर्णाटक) इथे आहे. करगणीचे पुर्वी नाव खडगणी होते, नंतर ते करगणी झाले. इथे मिळालेला खडग लक्ष्मणाने इंद्रजीताला मारण्यासाठी वापरले होते. करगणी जवळ एक शुकाचारी (अपभ्रंश शुक्राचारी, शुक्राचार्य ) नावाचा डोंगर आहे. इथे शुकमुनी यानी समाधि घेतली. ( शुकमुनी चे वडील महाभारतकार व्यास हे होत). शुकमुनीच्या समाधीचाअ उल्लेख पुराणात पण आहे. ब्रम्हचारी शुक दर्शनाला आलेल्या स्त्रियाना पाहून घोड्यावर बसुन गुहेमधिल दगडात लुप्त झाला अशी कथा आहे. आटपाडी तालुक्यातिल सर्वांत प्रसिद्ध मंदिर म्हणजे खरसुंडीचे सिद्धनाथ मंदिर. खरसुंडीचे आनखी एक वैशिष्ठ , इथली जनावरांची यात्रा. जानावरंचा हा देशातील सर्वांत मोठा बाजार आहे. [संपादन] प्रवास आणि मुक्काम आटपाडी हे गाव रस्त्याने सांगली, सोलापूर, कराड या नगराबरोबर तसेच इतर प्रमुख गावांशी जोडलेले आहे. आटपाडीपासून मुंबई, पुणे, हैदराबाद या महानगरापर्यंत थेट बस सेवा उपलब्ध आहे. मुख्यता प्रवास महाराष्ट्र राज्य परिवहन मंडळाच्या बसने व खाजगी आराम बसने उपलब्ध आहे.


प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालयाचे मुख्यालय असलेल्या माऊंट अबू येथील ब्रह्माकुमार भगवानभाईंनी केलेल्या उल्लेखनीय कामगिरीची दखल घेवून त्यांच्या कार्याची "इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड' मध्ये नुकतीच नोंद झाली असून दिल्ली येथे एका विशेष समारंभामध्ये इंडिया बुक ऑफ रेकार्डचे मुख्य संपादक विश्वरूपराय चौधरी यांच्या हस्ते त्यांना सन्मानित करण्यात आले. भगवानभाईंनी आतापर्यंत भारतातील विविध प्रांतातील 5000 शाळा, महाविद्यालयांमध्ये जाऊन लाखो विद्यार्थ्यांना मूल्यनिष्ठ शिक्षणाद्वारे नैतिक व अध्यात्मिक विकासासाठी उद्‌बोधन केले आहे. 800 कारागृहांमध्ये जाऊन हजारो कैद्यांना गुन्हेगारी सोडून आपल्या जीवनामध्ये सद्‌भावना, मूल्य तसेच मानवतेला स्थापित करण्यासाठी प्रेरित केले आहे. या कार्याची नोंद घेवून त्यांची या पुरस्कारासाठी निवड करण्यात आली. सत्कारानंतर प्रतिक्रिया व्यक्त करताना ब्र. कु.भगवानभाई म्हणाले, समाजामधील भ्रष्टाचार, व्यसनाधिनता, गुन्हेगारी समाप्त करावयाची असेल तर त्यासाठी शिक्षणामध्ये परिवर्तनाची आवश्यकता आहे. शाळा/ महाविद्यालयांमधूनच समाजाच्या प्रत्येक क्षेत्रामध्ये व्यक्ती प्रवेश करते. आजचा विद्यार्थीच उद्याचा समाज आहे. म्हणूनच समाजाच्या विकासासाठी शिक्षणामध्ये मूल्य व अध्यात्मिकतेचा समावेश करण्याची आवश्यकता आहे. सांगली जिल्ह्यात आटपाडी तालुक्यातील तळेवाडी या छोट्याशा खेड्यात एका निरक्षर व गरीब कुटुंबात जन्मलेल्या भगवानभाईंना लिहिण्या- वाचण्यासाठी वही, पुस्तकेसुध्दा मिळत नव्हती. वयाच्या 11 वर्षी त्यांनी शाळेत जायला सुरूवात केली. ते जुन्या रद्दीमधील वह्यांची कोरी पाने व शाईने लिहिलेली पाने पाण्याने धुवून, सुकवून त्या पानांचा उपयोग लिहिण्यासाठी करीत. अशाच रद्दीमध्ये त्यांना ब्रह्माकुमारी संस्थेच्या एका पुस्तकाची काही पाने मिळाली. या रद्दीतील पानानींच त्यांचे जीवन बदलून गेले. त्या पानावर असलेल्या पत्त्यावरून ते ब्रह्माकुमारीसंस्थेमध्ये पोहचले व तेथील ईश्वरीय ज्ञान व राजयोगाचा अभ्यास करून आपले मनोबल वाढविले व त्या फलस्वरूप माऊंट अबू येथील आपले सेवाकार्य सांभाळून आजपर्यंत त्यांनी 5000 शाळा, महाविद्यालये व 800 कारागृहात जाऊन या सेवेचे एक रेकॉर्ड प्रस्थापित केले. वर्तमानसमयी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालयाच्या शांतीवन या मुख्यालयातील विशाल किचनमध्ये सेवारत असून अनेक मासिकातून तसेच वृत्तपत्रातून आतापर्यंत 2000 हून अधिक लेख लिहिले आहेत. त्यांना मिळालेल्या या सन्मानाबद्दल सातारा सेवाकेंद्राच्या संचालिका ब्रह्माकुमारी रूक्मिणी बहेनजी व शिक्षणाधिकारी (माध्य.) मकरंद गोंधळी यांनी त्यांचे अभिनंदन केले.


आटपडीजवळ एक करगणी गाव आहे. तिथे एक प्राचिन शंकराचे देवळ आहे. हल्ली लोक त्याला रामाचे देवळ म्हणतात. ह्या देवळाची स्थापणा राम व लक्ष्मण यांनी केली असे म्हणतात. लक्ष्मणाला शंकराने एक खडग व आत्मलिंग दिले ते याच ठिकाणी. लक्ष्मणाने आत्मलिंआची स्थापना केली. दुसरे आत्मलिंग मंदिर गोकर्ण महाबळेश्वर (कर्णाटक) इथे आहे. करगणीचे पुर्वी नाव खडगणी होते, नंतर ते करगणी झाले. इथे मिळालेला खडग लक्ष्मणाने इंद्रजीताला मारण्यासाठी वापरले होते. करगणी जवळ एक शुकाचारी (अपभ्रंश शुक्राचारी, शुक्राचार्य ) नावाचा डोंगर आहे. इथे शुकमुनी यानी समाधि घेतली. ( शुकमुनी चे वडील महाभारतकार व्यास हे होत). शुकमुनीच्या समाधीचाअ उल्लेख पुराणात पण आहे. ब्रम्हचारी शुक दर्शनाला आलेल्या स्त्रियाना पाहून घोड्यावर बसुन गुहेमधिल दगडात लुप्त झाला अशी कथा आहे. आटपाडी तालुक्यातिल सर्वांत प्रसिद्ध मंदिर म्हणजे खरसुंडीचे सिद्धनाथ मंदिर. खरसुंडीचे आनखी एक वैशिष्ठ , इथली जनावरांची यात्रा. जानावरंचा हा देशातील सर्वांत मोठा बाजार आहे. [संपादन] प्रवास आणि मुक्काम आटपाडी हे गाव रस्त्याने सांगली, सोलापूर, कराड या नगराबरोबर तसेच इतर प्रमुख गावांशी जोडलेले आहे. आटपाडीपासून मुंबई, पुणे, हैदराबाद या महानगरापर्यंत थेट बस सेवा उपलब्ध आहे. मुख्यता प्रवास महाराष्ट्र राज्य परिवहन मंडळाच्या बसने व खाजगी आराम बसने उपलब्ध आहे.


आटपडीजवळ एक करगणी गाव आहे. तिथे एक प्राचिन शंकराचे देवळ आहे. हल्ली लोक त्याला रामाचे देवळ म्हणतात. ह्या देवळाची स्थापणा राम व लक्ष्मण यांनी केली असे म्हणतात. लक्ष्मणाला शंकराने एक खडग व आत्मलिंग दिले ते याच ठिकाणी. लक्ष्मणाने आत्मलिंआची स्थापना केली. दुसरे आत्मलिंग मंदिर गोकर्ण महाबळेश्वर (कर्णाटक) इथे आहे. करगणीचे पुर्वी नाव खडगणी होते, नंतर ते करगणी झाले. इथे मिळालेला खडग लक्ष्मणाने इंद्रजीताला मारण्यासाठी वापरले होते. करगणी जवळ एक शुकाचारी (अपभ्रंश शुक्राचारी, शुक्राचार्य ) नावाचा डोंगर आहे. इथे शुकमुनी यानी समाधि घेतली. ( शुकमुनी चे वडील महाभारतकार व्यास हे होत). शुकमुनीच्या समाधीचाअ उल्लेख पुराणात पण आहे. ब्रम्हचारी शुक दर्शनाला आलेल्या स्त्रियाना पाहून घोड्यावर बसुन गुहेमधिल दगडात लुप्त झाला अशी कथा आहे. आटपाडी तालुक्यातिल सर्वांत प्रसिद्ध मंदिर म्हणजे खरसुंडीचे सिद्धनाथ मंदिर. खरसुंडीचे आनखी एक वैशिष्ठ , इथली जनावरांची यात्रा. जानावरंचा हा देशातील सर्वांत मोठा बाजार आहे. [संपादन] प्रवास आणि मुक्काम आटपाडी हे गाव रस्त्याने सांगली, सोलापूर, कराड या नगराबरोबर तसेच इतर प्रमुख गावांशी जोडलेले आहे. आटपाडीपासून मुंबई, पुणे, हैदराबाद या महानगरापर्यंत थेट बस सेवा उपलब्ध आहे. मुख्यता प्रवास महाराष्ट्र राज्य परिवहन मंडळाच्या बसने व खाजगी आराम बसने उपलब्ध आहे.


इतिहास १६व्या शतकात आटपाडी गाव हे आदिलशाहीचा भाग होते व नंतर पेशवाईच्या काळानंतर आटपाडी औंध संस्थानामधे महाल गाव होते. औंध संस्थानाच्या भारत गणराज्यामधिल विलीनीकरणानंतर आटपाडी खानापूर तालुक्यातील एक गाव व नंतर सांगली जिल्ह्यातील एक तालुका झाल आहे. [संपादन] भूगोल आटपाडी गाव अक्षांश =१७.२५/रेखांश= ७४.५७ वर वसलेले आहे. गावाच्या मधुन शुक्र ओढा आटपाडी गावाला दक्षिण व उत्तर भागामध्ये विभागत गेला आहे. आटपाडीच्या पश्चिमेला पाझर तलाव आहे जिथुन आटपाडीच्या पिण्याच्या व काही प्रमाणात शेतिच्या पाण्याची व्यवस्था होते. आटपाडी गाव व नविन आटपाडीची वसाहत ही शुक्र ओढयाने दक्षिण व उत्तर अशी विभगली आहे. [संपादन] हवामान आटपाडी तालुका पर्ज्यन्यछाये मध्ये येणारा प्रदेश आहे. येथील मुख्य शेती ही ज्वारी, मका, गहू, काही प्रमाणात ऊस व कापूस आणि डाळिंब यांची होते. डाळिंबामुळे आटपाडीच्या शेती ऊत्पादनात आमूलाग्र बदल झाला आहे. [संपादन] आजूबाजूचा परिसर [संपादन] शासन व्यवस्था आटपाडीची शासन व्यवस्था ग्रामपंचायत व पंचायत समिति मार्फत चालते. आटपाडी मध्ये दिवानी व फौजदारी न्यायालय, पोलिस ठाणे आहे. [संपादन] आटपाडी ग्रामपंचायत आटपाडी गावाचे प्रशाशकीय कामकाज ग्रामपंचायती मार्फत चालते. [संपादन] आटपाडी पंचायत समिती आटपाडी तालुक्याचे प्रशाशकीय कामकाज पंचायत समिती मार्फत चालते. [संपादन] शिक्षण व्यवस्था आटपाडी मधे शिक्षण महाविद्यालय स्तरापर्यन्त कला, विज्ञान, वानिज्य, अभियांत्रिकी, अध्यापन इत्यादी शाखांमध्ये शक्य आहे. शिक्षण व्यवस्था ही प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च माध्यमिक, महाविद्यालय इत्यादी पातळी पर्यन्त उपलब्ध आहे. [संपादन] प्राथमिक शाळा [संपादन] माध्यमिक शाळा श्री भवानि विद्यालय हायस्कुल श्री राजाराम बापु पाटील हायस्कुल श्री व.दे.दे. गर्ल्स् हायस्कुल [संपादन] उच्च माध्यमिक श्री भवानि विद्यालय जुनिअर सायन्स् कॉलेज आटपडी कॉलेज, आटपाडी. [संपादन] महाविद्यालय आटपडी कॉलेज, आटपाडी कला विज्ञान महाविद्यालय श्रीराम सोसायटीचे अभियन्त्रिकी पदवी आणि पदविका महाविद्यालय अध्यापक विद्यालय शेति पदविका विद्यालय [संपादन] उद्योग व्यवसाय माणगंगा सहकारी साखर कारखाना, बाबासाहेब देशमुख सहकारी सुतगिरणी, डाळिंब प्रक्रिया व पॅकेजिंग प्रकल्प हे येथील प्रमुख उद्दोग आहेत. [संपादन] कला आणि संस्कृती व मनोरंजन आटपाडीचे नाव कलेच्या क्षेत्रात वाखणण्यासारखे आहे ते आटपाडी मध्ये जन्मलेल्या ४ साहित्य संमेलानाचे अध्यक्षामुळे १) ग. दि. माडगुळकर, २)व्यंकटेश माडगुळकर, ३) शंकरराव खरात, ४) ना. सि. ईनामदार. याच बरोबर धनगरी नृत्य आटपाडीच्या संस्कृतीचा मुख्य घटक आहे. कोल्हापुरी फेटा हा मुळचा माणदेशातिल लहरी पटका/फ़ेटा आहे. [संपादन] मंदिरे आणि उत्सव आटपाडीचे ग्रामदैवत उत्तरेश्वर आहे व आटपाडीची जत्रा उत्तरेश्वराच्या नावाने होते. जत्रा तीन दिवस चालते व याप्रसंगी गावातून उत्तरेश्वराचा रथ ओढण्याची प्रथा आहे.आटपाडीतील आणखी एक जुने मंदिर म्हणजे नाथबाबाचे व कल्लेश्वराचे मंदीर. आटपाडीत एक परमेश्वराचे पण मंदीर आहे. त्या देवळातल्या देवाला परमेश्वर म्हणतात. हे मंदिर शुक्र ओढ्यात आहे. आटपडीजवळ एक करगणी गाव आहे. तिथे एक प्राचिन शंकराचे देवळ आहे. हल्ली लोक त्याला रामाचे देवळ म्हणतात. ह्या देवळाची स्थापणा राम व लक्ष्मण यांनी केली असे म्हणतात. लक्ष्मणाला शंकराने एक खडग व आत्मलिंग दिले ते याच ठिकाणी. लक्ष्मणाने आत्मलिंआची स्थापना केली. दुसरे आत्मलिंग मंदिर गोकर्ण महाबळेश्वर (कर्णाटक) इथे आहे. करगणीचे पुर्वी नाव खडगणी होते, नंतर ते करगणी झाले. इथे मिळालेला खडग लक्ष्मणाने इंद्रजीताला मारण्यासाठी वापरले होते. करगणी जवळ एक शुकाचारी (अपभ्रंश शुक्राचारी, शुक्राचार्य ) नावाचा डोंगर आहे. इथे शुकमुनी यानी समाधि घेतली. ( शुकमुनी चे वडील महाभारतकार व्यास हे होत). शुकमुनीच्या समाधीचाअ उल्लेख पुराणात पण आहे. ब्रम्हचारी शुक दर्शनाला आलेल्या स्त्रियाना पाहून घोड्यावर बसुन गुहेमधिल दगडात लुप्त झाला अशी कथा आहे. आटपाडी तालुक्यातिल सर्वांत प्रसिद्ध मंदिर म्हणजे खरसुंडीचे सिद्धनाथ मंदिर. खरसुंडीचे आनखी एक वैशिष्ठ , इथली जनावरांची यात्रा. जानावरंचा हा देशातील सर्वांत मोठा बाजार आहे. [संपादन] प्रवास आणि मुक्काम आटपाडी हे गाव रस्त्याने सांगली, सोलापूर, कराड या नगराबरोबर तसेच इतर प्रमुख गावांशी जोडलेले आहे. आटपाडीपासून मुंबई, पुणे, हैदराबाद या महानगरापर्यंत थेट बस सेवा उपलब्ध आहे. मुख्यता प्रवास महाराष्ट्र राज्य परिवहन मंडळाच्या बसने व खाजगी आराम बसने उपलब्ध आहे.


आटपाडी Atpadi - हिवथड Hivthad, नेलकरंजी Nelkaranji, काळेवाडी Kalewadi, औंटेवाडी Ountewadi, मानेवाडी Mnaewadi, गोमेवाडी Gomewadi, तळेवाडी Talewadi, पात्रेवाडी Patrewadi, धावडवाडी Dhavadwadi, कामकात्रेवाडी Kamkatrewadi, करगणी Karagani, शेटफळे Shetfale, ...


सातारा, दि. 15 : प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालयाचे मुख्यालय असलेल्या माऊंट अबू येथील ब्रह्माकुमार भगवानभाईंनी केलेल्या उल्लेखनीय कामगिरीची दखल घेवून त्यांच्या कार्याची "इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड' मध्ये नुकतीच नोंद झाली असून दिल्ली येथे एका विशेष समारंभामध्ये इंडिया बुक ऑफ रेकार्डचे मुख्य संपादक विश्वरूपराय चौधरी यांच्या हस्ते त्यांना सन्मानित करण्यात आले. भगवानभाईंनी आतापर्यंत भारतातील विविध प्रांतातील 5000 शाळा, महाविद्यालयांमध्ये जाऊन लाखो विद्यार्थ्यांना मूल्यनिष्ठ शिक्षणाद्वारे नैतिक व अध्यात्मिक विकासासाठी उद्‌बोधन केले आहे. 800 कारागृहांमध्ये जाऊन हजारो कैद्यांना गुन्हेगारी सोडून आपल्या जीवनामध्ये सद्‌भावना, मूल्य तसेच मानवतेला स्थापित करण्यासाठी प्रेरित केले आहे. या कार्याची नोंद घेवून त्यांची या पुरस्कारासाठी निवड करण्यात आली. सत्कारानंतर प्रतिक्रिया व्यक्त करताना ब्र. कु.भगवानभाई म्हणाले, समाजामधील भ्रष्टाचार, व्यसनाधिनता, गुन्हेगारी समाप्त करावयाची असेल तर त्यासाठी शिक्षणामध्ये परिवर्तनाची आवश्यकता आहे. शाळा/ महाविद्यालयांमधूनच समाजाच्या प्रत्येक क्षेत्रामध्ये व्यक्ती प्रवेश करते. आजचा विद्यार्थीच उद्याचा समाज आहे. म्हणूनच समाजाच्या विकासासाठी शिक्षणामध्ये मूल्य व अध्यात्मिकतेचा समावेश करण्याची आवश्यकता आहे. सांगली जिल्ह्यात आटपाडी तालुक्यातील तळेवाडी या छोट्याशा खेड्यात एका निरक्षर व गरीब कुटुंबात जन्मलेल्या भगवानभाईंना लिहिण्या- वाचण्यासाठी वही, पुस्तकेसुध्दा मिळत नव्हती. वयाच्या 11 वर्षी त्यांनी शाळेत जायला सुरूवात केली. ते जुन्या रद्दीमधील वह्यांची कोरी पाने व शाईने लिहिलेली पाने पाण्याने धुवून, सुकवून त्या पानांचा उपयोग लिहिण्यासाठी करीत. अशाच रद्दीमध्ये त्यांना ब्रह्माकुमारी संस्थेच्या एका पुस्तकाची काही पाने मिळाली. या रद्दीतील पानानींच त्यांचे जीवन बदलून गेले. त्या पानावर असलेल्या पत्त्यावरून ते ब्रह्माकुमारीसंस्थेमध्ये पोहचले व तेथील ईश्वरीय ज्ञान व राजयोगाचा अभ्यास करून आपले मनोबल वाढविले व त्या फलस्वरूप माऊंट अबू येथील आपले सेवाकार्य सांभाळून आजपर्यंत त्यांनी 5000 शाळा, महाविद्यालये व 800 कारागृहात जाऊन या सेवेचे एक रेकॉर्ड प्रस्थापित केले. वर्तमानसमयी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालयाच्या शांतीवन या मुख्यालयातील विशाल किचनमध्ये सेवारत असून अनेक मासिकातून तसेच वृत्तपत्रातून आतापर्यंत 2000 हून अधिक लेख लिहिले आहेत. त्यांना मिळालेल्या या सन्मानाबद्दल सातारा सेवाकेंद्राच्या संचालिका ब्रह्माकुमारी रूक्मिणी बहेनजी व शिक्षणाधिकारी (माध्य.) मकरंद गोंधळी यांनी त्यांचे अभिनंदन केले.


छोट्या जाहिराती | ई-पेपर | मागोवा | आपला अभिप्राय | Download Font | लॉग-इन Dainik Aikya - Published from Satara (Maharashtra,India) Published on, Thursday, October 27, 2011 1:28:15 AM IST मुख्यपान प्रमुख वार्ता राष्ट्रीय वार्ता विभागीय वार्ता स्थानिक वार्ता खेळ वार्ता अग्रलेख स्तंभ लेख विशेष लेख लोलक वचनामृत बोधकथा मुख्य पान >> प्रमुख वार्ता >> बातम्या ब्रह्माकुमार भगवानभाईंच्या नावाची "इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड' मध्ये नोंद ऐक्य समूह Friday, September 16, 2011 AT 12:36 AM (IST) Tags: * सातारा, दि. 15 : प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालयाचे मुख्यालय असलेल्या माऊंट अबू येथील ब्रह्माकुमार भगवानभाईंनी केलेल्या उल्लेखनीय कामगिरीची दखल घेवून त्यांच्या कार्याची "इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड' मध्ये नुकतीच नोंद झाली असून दिल्ली येथे एका विशेष समारंभामध्ये इंडिया बुक ऑफ रेकार्डचे मुख्य संपादक विश्वरूपराय चौधरी यांच्या हस्ते त्यांना सन्मानित करण्यात आले. भगवानभाईंनी आतापर्यंत भारतातील विविध प्रांतातील 5000 शाळा, महाविद्यालयांमध्ये जाऊन लाखो विद्यार्थ्यांना मूल्यनिष्ठ शिक्षणाद्वारे नैतिक व अध्यात्मिक विकासासाठी उद्‌बोधन केले आहे. 800 कारागृहांमध्ये जाऊन हजारो कैद्यांना गुन्हेगारी सोडून आपल्या जीवनामध्ये सद्‌भावना, मूल्य तसेच मानवतेला स्थापित करण्यासाठी प्रेरित केले आहे. या कार्याची नोंद घेवून त्यांची या पुरस्कारासाठी निवड करण्यात आली. सत्कारानंतर प्रतिक्रिया व्यक्त करताना ब्र. कु.भगवानभाई म्हणाले, समाजामधील भ्रष्टाचार, व्यसनाधिनता, गुन्हेगारी समाप्त करावयाची असेल तर त्यासाठी शिक्षणामध्ये परिवर्तनाची आवश्यकता आहे. शाळा/ महाविद्यालयांमधूनच समाजाच्या प्रत्येक क्षेत्रामध्ये व्यक्ती प्रवेश करते. आजचा विद्यार्थीच उद्याचा समाज आहे. म्हणूनच समाजाच्या विकासासाठी शिक्षणामध्ये मूल्य व अध्यात्मिकतेचा समावेश करण्याची आवश्यकता आहे. सांगली जिल्ह्यात आटपाडी तालुक्यातील तळेवाडी या छोट्याशा खेड्यात एका निरक्षर व गरीब कुटुंबात जन्मलेल्या भगवानभाईंना लिहिण्या- वाचण्यासाठी वही, पुस्तकेसुध्दा मिळत नव्हती. वयाच्या 11 वर्षी त्यांनी शाळेत जायला सुरूवात केली. ते जुन्या रद्दीमधील वह्यांची कोरी पाने व शाईने लिहिलेली पाने पाण्याने धुवून, सुकवून त्या पानांचा उपयोग लिहिण्यासाठी करीत. अशाच रद्दीमध्ये त्यांना ब्रह्माकुमारी संस्थेच्या एका पुस्तकाची काही पाने मिळाली. या रद्दीतील पानानींच त्यांचे जीवन बदलून गेले. त्या पानावर असलेल्या पत्त्यावरून ते ब्रह्माकुमारीसंस्थेमध्ये पोहचले व तेथील ईश्वरीय ज्ञान व राजयोगाचा अभ्यास करून आपले मनोबल वाढविले व त्या फलस्वरूप माऊंट अबू येथील आपले सेवाकार्य सांभाळून आजपर्यंत त्यांनी 5000 शाळा, महाविद्यालये व 800 कारागृहात जाऊन या सेवेचे एक रेकॉर्ड प्रस्थापित केले. वर्तमानसमयी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालयाच्या शांतीवन या मुख्यालयातील विशाल किचनमध्ये सेवारत असून अनेक मासिकातून तसेच वृत्तपत्रातून आतापर्यंत 2000 हून अधिक लेख लिहिले आहेत. त्यांना मिळालेल्या या सन्मानाबद्दल सातारा सेवाकेंद्राच्या संचालिका ब्रह्माकुमारी रूक्मिणी बहेनजी व शिक्षणाधिकारी (माध्य.) मकरंद गोंधळी यांनी त्यांचे अभिनंदन केले. फोटो गॅलरी


प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालयाचे मुख्यालय असलेल्या माऊंट अबू येथील ब्रह्माकुमार भगवानभाईंनी केलेल्या उल्लेखनीय कामगिरीची दखल घेवून त्यांच्या कार्याची "इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड' मध्ये नुकतीच नोंद झाली असून दिल्ली येथे एका विशेष समारंभामध्ये इंडिया बुक ऑफ रेकार्डचे मुख्य संपादक विश्वरूपराय चौधरी यांच्या हस्ते त्यांना सन्मानित करण्यात आले. भगवानभाईंनी आतापर्यंत भारतातील विविध प्रांतातील 5000 शाळा, महाविद्यालयांमध्ये जाऊन लाखो विद्यार्थ्यांना मूल्यनिष्ठ शिक्षणाद्वारे नैतिक व अध्यात्मिक विकासासाठी उद्‌बोधन केले आहे. 800 कारागृहांमध्ये जाऊन हजारो कैद्यांना गुन्हेगारी सोडून आपल्या जीवनामध्ये सद्‌भावना, मूल्य तसेच मानवतेला स्थापित करण्यासाठी प्रेरित केले आहे. या कार्याची नोंद घेवून त्यांची या पुरस्कारासाठी निवड करण्यात आली. सत्कारानंतर प्रतिक्रिया व्यक्त करताना ब्र. कु.भगवानभाई म्हणाले, समाजामधील भ्रष्टाचार, व्यसनाधिनता, गुन्हेगारी समाप्त करावयाची असेल तर त्यासाठी शिक्षणामध्ये परिवर्तनाची आवश्यकता आहे. शाळा/ महाविद्यालयांमधूनच समाजाच्या प्रत्येक क्षेत्रामध्ये व्यक्ती प्रवेश करते. आजचा विद्यार्थीच उद्याचा समाज आहे. म्हणूनच समाजाच्या विकासासाठी शिक्षणामध्ये मूल्य व अध्यात्मिकतेचा समावेश करण्याची आवश्यकता आहे. सांगली जिल्ह्यात आटपाडी तालुक्यातील तळेवाडी या छोट्याशा खेड्यात एका निरक्षर व गरीब कुटुंबात जन्मलेल्या भगवानभाईंना लिहिण्या- वाचण्यासाठी वही, पुस्तकेसुध्दा मिळत नव्हती. वयाच्या 11 वर्षी त्यांनी शाळेत जायला सुरूवात केली. ते जुन्या रद्दीमधील वह्यांची कोरी पाने व शाईने लिहिलेली पाने पाण्याने धुवून, सुकवून त्या पानांचा उपयोग लिहिण्यासाठी करीत. अशाच रद्दीमध्ये त्यांना ब्रह्माकुमारी संस्थेच्या एका पुस्तकाची काही पाने मिळाली. या रद्दीतील पानानींच त्यांचे जीवन बदलून गेले. त्या पानावर असलेल्या पत्त्यावरून ते ब्रह्माकुमारीसंस्थेमध्ये पोहचले व तेथील ईश्वरीय ज्ञान व राजयोगाचा अभ्यास करून आपले मनोबल वाढविले व त्या फलस्वरूप माऊंट अबू येथील आपले सेवाकार्य सांभाळून आजपर्यंत त्यांनी 5000 शाळा, महाविद्यालये व 800 कारागृहात जाऊन या सेवेचे एक रेकॉर्ड प्रस्थापित केले. वर्तमानसमयी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालयाच्या शांतीवन या मुख्यालयातील विशाल किचनमध्ये सेवारत असून अनेक मासिकातून तसेच वृत्तपत्रातून आतापर्यंत 2000 हून अधिक लेख लिहिले आहेत. त्यांना मिळालेल्या


प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालयाचे मुख्यालय असलेल्या माऊंट अबू येथील ब्रह्माकुमार भगवानभाईंनी केलेल्या उल्लेखनीय कामगिरीची दखल घेवून त्यांच्या कार्याची "इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड' मध्ये नुकतीच नोंद झाली असून दिल्ली येथे एका विशेष समारंभामध्ये इंडिया बुक ऑफ रेकार्डचे मुख्य संपादक विश्वरूपराय चौधरी यांच्या हस्ते त्यांना सन्मानित करण्यात आले. भगवानभाईंनी आतापर्यंत भारतातील विविध प्रांतातील 5000 शाळा, महाविद्यालयांमध्ये जाऊन लाखो विद्यार्थ्यांना मूल्यनिष्ठ शिक्षणाद्वारे नैतिक व अध्यात्मिक विकासासाठी उद्‌बोधन केले आहे. 800 कारागृहांमध्ये जाऊन हजारो कैद्यांना गुन्हेगारी सोडून आपल्या जीवनामध्ये सद्‌भावना, मूल्य तसेच मानवतेला स्थापित करण्यासाठी प्रेरित केले आहे. या कार्याची नोंद घेवून त्यांची या पुरस्कारासाठी निवड करण्यात आली. सत्कारानंतर प्रतिक्रिया व्यक्त करताना ब्र. कु.भगवानभाई म्हणाले, समाजामधील भ्रष्टाचार, व्यसनाधिनता, गुन्हेगारी समाप्त करावयाची असेल तर त्यासाठी शिक्षणामध्ये परिवर्तनाची आवश्यकता आहे. शाळा/ महाविद्यालयांमधूनच समाजाच्या प्रत्येक क्षेत्रामध्ये व्यक्ती प्रवेश करते. आजचा विद्यार्थीच उद्याचा समाज आहे. म्हणूनच समाजाच्या विकासासाठी शिक्षणामध्ये मूल्य व अध्यात्मिकतेचा समावेश करण्याची आवश्यकता आहे. सांगली जिल्ह्यात आटपाडी तालुक्यातील तळेवाडी या छोट्याशा खेड्यात एका निरक्षर व गरीब कुटुंबात जन्मलेल्या भगवानभाईंना लिहिण्या- वाचण्यासाठी वही, पुस्तकेसुध्दा मिळत नव्हती. वयाच्या 11 वर्षी त्यांनी शाळेत जायला सुरूवात केली. ते जुन्या रद्दीमधील वह्यांची कोरी पाने व शाईने लिहिलेली पाने पाण्याने धुवून, सुकवून त्या पानांचा उपयोग लिहिण्यासाठी करीत. अशाच रद्दीमध्ये त्यांना ब्रह्माकुमारी संस्थेच्या एका पुस्तकाची काही पाने मिळाली. या रद्दीतील पानानींच त्यांचे जीवन बदलून गेले. त्या पानावर असलेल्या पत्त्यावरून ते ब्रह्माकुमारीसंस्थेमध्ये पोहचले व तेथील ईश्वरीय ज्ञान व राजयोगाचा अभ्यास करून आपले मनोबल वाढविले व त्या फलस्वरूप माऊंट अबू येथील आपले सेवाकार्य सांभाळून आजपर्यंत त्यांनी 5000 शाळा, महाविद्यालये व 800 कारागृहात जाऊन या सेवेचे एक रेकॉर्ड प्रस्थापित केले. वर्तमानसमयी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालयाच्या शांतीवन या मुख्यालयातील विशाल किचनमध्ये सेवारत असून अनेक मासिकातून तसेच वृत्तपत्रातून आतापर्यंत 2000 हून अधिक लेख लिहिले आहेत.


सांगली जिल्ह्यात आटपाडी तालुक्यातील तळेवाडी या छोट्याशा खेड्यात एका निरक्षर व गरीब कुटुंबात जन्मलेल्या भगवानभाईंना लिहिण्या- वाचण्यासाठी वही, पुस्तकेसुध्दा मिळत नव्हती. वयाच्या 11 वर्षी त्यांनी शाळेत जायला सुरूवात केली. ते जुन्या रद्दीमधील वह्यांची कोरी पाने व शाईने लिहिलेली पाने पाण्याने धुवून, सुकवून त्या पानांचा उपयोग लिहिण्यासाठी करीत. अशाच रद्दीमध्ये त्यांना ब्रह्माकुमारी संस्थेच्या एका पुस्तकाची काही पाने मिळाली. या रद्दीतील पानानींच त्यांचे जीवन बदलून गेले. त्या पानावर असलेल्या पत्त्यावरून ते ब्रह्माकुमारीसंस्थेमध्ये पोहचले व तेथील ईश्वरीय ज्ञान व राजयोगाचा अभ्यास करून आपले मनोबल वाढविले व त्या फलस्वरूप माऊंट अबू येथील आपले सेवाकार्य सांभाळून आजपर्यंत त्यांनी 5000 शाळा, महाविद्यालये व 800 कारागृहात जाऊन या सेवेचे एक रेकॉर्ड प्रस्थापित केले. वर्तमानसमयी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालयाच्या शांतीवन या मुख्यालयातील विशाल किचनमध्ये सेवारत असून अनेक मासिकातून तसेच वृत्तपत्रातून आतापर्यंत 2000 हून अधिक लेख लिहिले आहेत


दिल्ली दि. 15 : प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालयाचे मुख्यालय असलेल्या माऊंट अबू येथील ब्रह्माकुमार भगवानभाईंनी केलेल्या उल्लेखनीय कामगिरीची दखल घेवून त्यांच्या कार्याची "इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड' मध्ये नुकतीच नोंद झाली असून दिल्ली येथे एका विशेष समारंभामध्ये इंडिया बुक ऑफ रेकार्डचे मुख्य संपादक विश्वरूपराय चौधरी यांच्या हस्ते त्यांना सन्मानित करण्यात आले. भगवानभाईंनी आतापर्यंत भारतातील विविध प्रांतातील 5000 शाळा, महाविद्यालयांमध्ये जाऊन लाखो विद्यार्थ्यांना मूल्यनिष्ठ शिक्षणाद्वारे नैतिक व अध्यात्मिक विकासासाठी उद्‌बोधन केले आहे. 800 कारागृहांमध्ये जाऊन हजारो कैद्यांना गुन्हेगारी सोडून आपल्या जीवनामध्ये सद्‌भावना, मूल्य तसेच मानवतेला स्थापित करण्यासाठी प्रेरित केले आहे. या कार्याची नोंद घेवून त्यांची या पुरस्कारासाठी निवड करण्यात आली. सत्कारानंतर प्रतिक्रिया व्यक्त करताना ब्र. कु.भगवानभाई म्हणाले, समाजामधील भ्रष्टाचार, व्यसनाधिनता, गुन्हेगारी समाप्त करावयाची असेल तर त्यासाठी शिक्षणामध्ये परिवर्तनाची आवश्यकता आहे. शाळा/ महाविद्यालयांमधूनच समाजाच्या प्रत्येक क्षेत्रामध्ये व्यक्ती प्रवेश करते. आजचा विद्यार्थीच उद्याचा समाज आहे. म्हणूनच समाजाच्या विकासासाठी शिक्षणामध्ये मूल्य व अध्यात्मिकतेचा समावेश करण्याची आवश्यकता आहे. सांगली जिल्ह्यात आटपाडी तालुक्यातील तळेवाडी या छोट्याशा खेड्यात एका निरक्षर व गरीब कुटुंबात जन्मलेल्या भगवानभाईंना लिहिण्या- वाचण्यासाठी वही, पुस्तकेसुध्दा मिळत नव्हती. वयाच्या 11 वर्षी त्यांनी शाळेत जायला सुरूवात केली. ते जुन्या रद्दीमधील वह्यांची कोरी पाने व शाईने लिहिलेली पाने पाण्याने धुवून, सुकवून त्या पानांचा उपयोग लिहिण्यासाठी करीत. अशाच रद्दीमध्ये त्यांना ब्रह्माकुमारी संस्थेच्या एका पुस्तकाची काही पाने मिळाली. या रद्दीतील पानानींच त्यांचे जीवन बदलून गेले. त्या पानावर असलेल्या पत्त्यावरून ते ब्रह्माकुमारीसंस्थेमध्ये पोहचले व तेथील ईश्वरीय ज्ञान व राजयोगाचा अभ्यास करून आपले मनोबल वाढविले व त्या फलस्वरूप माऊंट अबू येथील आपले सेवाकार्य सांभाळून आजपर्यंत त्यांनी 5000 शाळा, महाविद्यालये व 800 कारागृहात जाऊन या सेवेचे एक रेकॉर्ड प्रस्थापित केले. वर्तमानसमयी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालयाच्या शांतीवन या मुख्यालयातील विशाल किचनमध्ये सेवारत असून अनेक मासिकातून तसेच वृत्तपत्रातून आतापर्यंत 2000 हून अधिक लेख लिहिले आहेत. त्यांना मिळालेल्या या सन्मानाबद्दल सातारा सेवाकेंद्राच्या संचालिका ब्रह्माकुमारी रूक्मिणी बहेनजी व शिक्षणाधिकारी (माध्य.) मकरंद गोंधळी यांनी त्यांचे अभिनंदन केले.



ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालयाचे मुख्यालय असलेल्या माऊंट अबू येथील ब्रह्माकुमार भगवानभाईंनी केलेल्या उल्लेखनीय कामगिरीची दखल घेवून त्यांच्या कार्याची "इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड' मध्ये नुकतीच नोंद झाली असून दिल्ली येथे एका विशेष समारंभामध्ये इंडिया बुक ऑफ रेकार्डचे मुख्य संपादक विश्वरूपराय चौधरी यांच्या हस्ते त्यांना सन्मानित करण्यात आले.

दिल्ली  दि. 15 : प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालयाचे मुख्यालय असलेल्या माऊंट अबू येथील ब्रह्माकुमार भगवानभाईंनी केलेल्या उल्लेखनीय कामगिरीची दखल घेवून त्यांच्या कार्याची "इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड' मध्ये नुकतीच नोंद झाली असून दिल्ली येथे एका विशेष समारंभामध्ये इंडिया बुक ऑफ रेकार्डचे मुख्य संपादक विश्वरूपराय चौधरी यांच्या हस्ते त्यांना सन्मानित करण्यात आले.
भगवानभाईंनी आतापर्यंत भारतातील विविध प्रांतातील 5000 शाळा, महाविद्यालयांमध्ये जाऊन लाखो विद्यार्थ्यांना मूल्यनिष्ठ शिक्षणाद्वारे नैतिक व अध्यात्मिक विकासासाठी उद्‌बोधन केले आहे. 800 कारागृहांमध्ये जाऊन हजारो कैद्यांना गुन्हेगारी सोडून आपल्या जीवनामध्ये सद्‌भावना, मूल्य तसेच मानवतेला स्थापित करण्यासाठी प्रेरित केले आहे. या कार्याची नोंद घेवून त्यांची या पुरस्कारासाठी निवड करण्यात आली.
सत्कारानंतर प्रतिक्रिया व्यक्त करताना ब्र. कु.भगवानभाई म्हणाले, समाजामधील भ्रष्टाचार, व्यसनाधिनता, गुन्हेगारी समाप्त करावयाची असेल तर त्यासाठी शिक्षणामध्ये परिवर्तनाची आवश्यकता आहे. शाळा/ महाविद्यालयांमधूनच समाजाच्या प्रत्येक क्षेत्रामध्ये व्यक्ती प्रवेश करते. आजचा विद्यार्थीच उद्याचा समाज आहे. म्हणूनच समाजाच्या विकासासाठी शिक्षणामध्ये मूल्य व अध्यात्मिकतेचा समावेश करण्याची आवश्यकता आहे. 
सांगली जिल्ह्यात आटपाडी तालुक्यातील तळेवाडी या छोट्याशा खेड्यात एका निरक्षर व गरीब कुटुंबात जन्मलेल्या भगवानभाईंना लिहिण्या- वाचण्यासाठी वही, पुस्तकेसुध्दा मिळत नव्हती. वयाच्या 11 वर्षी त्यांनी शाळेत जायला सुरूवात केली. ते जुन्या रद्दीमधील वह्यांची कोरी पाने व शाईने लिहिलेली पाने पाण्याने धुवून, सुकवून त्या पानांचा उपयोग लिहिण्यासाठी करीत. अशाच रद्दीमध्ये त्यांना ब्रह्माकुमारी संस्थेच्या एका पुस्तकाची काही पाने मिळाली. या रद्दीतील पानानींच त्यांचे जीवन बदलून गेले. त्या पानावर असलेल्या पत्त्यावरून ते ब्रह्माकुमारीसंस्थेमध्ये पोहचले व तेथील ईश्वरीय ज्ञान व राजयोगाचा अभ्यास करून आपले मनोबल वाढविले व त्या फलस्वरूप माऊंट अबू येथील आपले सेवाकार्य सांभाळून आजपर्यंत त्यांनी 5000 शाळा, महाविद्यालये व 800 कारागृहात जाऊन या सेवेचे एक रेकॉर्ड प्रस्थापित केले.
वर्तमानसमयी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालयाच्या शांतीवन या मुख्यालयातील विशाल किचनमध्ये सेवारत असून अनेक मासिकातून तसेच वृत्तपत्रातून आतापर्यंत 2000 हून अधिक लेख लिहिले आहेत. त्यांना मिळालेल्या या सन्मानाबद्दल सातारा सेवाकेंद्राच्या संचालिका ब्रह्माकुमारी रूक्मिणी बहेनजी व शिक्षणाधिकारी (माध्य.) मकरंद गोंधळी यांनी त्यांचे अभिनंदन केले.

Tuesday 25 October 2011

भगवान दगडू चवरे मुकाम तलेवाडी तालुका आटपाडी जिला सांगली,

दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुराइयां उसकी दुश्मन हैं। कर्म ही शत्रु हैं और वहीं मित्र हैं। हमारे साथ जो कुछ भी होता है वह भले के लिए ही होता है, कल्याणकारी होता है। भीतरी बुराइयों को दूर करने के लिए इंद्रियों पर संयम रखना सीखें। भगवान भाई ने अपने जीवन के रहस्य खोलते हुए कहा कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, जिसके चलते 11 साल की उम्र तक वे स्कूल नहीं गए। पढऩे की ललक होने के कारण गांव के स्कूल पहुंचे तो उन्हें टीचर्स ने कक्षा 5वीं में बैठाया। उन्होंने 5वीं से ही पढऩा शुरू किया। दुकानदार से पुरानी लिखी डायरियां लाकर पानी से साफ कर वे फिर इसका इस्तेमाल करते थे, ऐसे में एक दिन ब्रह्माकुमारी संस्था की डायरी हाथ लगी, जिससे पढ़कर वे काफी प्रभावित हुए। मुसाफिरों को पानी बेचकर 10 रुपए कमाए और माउंटआबू संस्था को भेजकर राजयोग की जानकारी मंगाई। पढऩे के बाद से जीवन में बदलाव आ गया और वे पूरी तरह संस्था के लिए समर्पित हो गए। 3000 से अधिक विषयों पर वे लेख लिख चुके हैं, जो हिंदी ज्ञानामृत, अंग्रेजी-द वल्र्ड रिनिवल, मराठी-अमृत कुंभ, उडिय़ा-ज्ञानदर्पण में छपते रहते हैं। इसके साथ ही वीडियो क्लासेस, ब्लॉग्स द्वारा ईश्वरीय संदेश देते हैं।

भगवान दगडू चवरे मुकाम तलेवाडी तालुका आटपाडी जिला सांगली,

सलाखों के पीछे सात जन्मों का ज्ञान
अध्यात्म & इंडिया बुक ऑफ़ रिकार्ड होल्डर भगवान भाई कैदियों के बीच पहुंचे, जेल को तपोभूमि बनाने का किया आह्वान
सलाखों के पीछे सात जन्मों का ज्ञान
अध्यात्म & इंडिया बुक ऑफ़ रिकार्ड भगवान भाई कैदियों के बीच पहुंचे, जेल को तपोभूमि बनाने का किया आह्वान व्यक्ति नहीं कर्म ही शत्रु
दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुराइयां उसकी दुश्मन हैं। कर्म ही शत्रु हैं और वहीं मित्र हैं। हमारे साथ जो कुछ भी होता है वह भले के लिए ही होता है, कल्याणकारी होता है। भीतरी बुराइयों को दूर करने के लिए इंद्रियों पर संयम रखना सीखें। भगवान भाई ने अपने जीवन के रहस्य खोलते हुए कहा कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, जिसके चलते 11 साल की उम्र तक वे स्कूल नहीं गए। पढऩे की ललक होने के कारण गांव के स्कूल पहुंचे तो उन्हें टीचर्स ने कक्षा 5वीं में बैठाया। उन्होंने 5वीं से ही पढऩा शुरू किया। दुकानदार से पुरानी लिखी डायरियां लाकर पानी से साफ कर वे फिर इसका इस्तेमाल करते थे, ऐसे में एक दिन ब्रह्माकुमारी संस्था की डायरी हाथ लगी, जिससे पढ़कर वे काफी प्रभावित हुए। मुसाफिरों को पानी बेचकर 10 रुपए कमाए और माउंटआबू संस्था को भेजकर राजयोग की जानकारी मंगाई। पढऩे के बाद से जीवन में बदलाव आ गया और वे पूरी तरह संस्था के लिए समर्पित हो गए। 3000 से अधिक विषयों पर वे लेख लिख चुके हैं, जो हिंदी ज्ञानामृत, अंग्रेजी-द वल्र्ड रिनिवल, मराठी-अमृत कुंभ, उडिय़ा-ज्ञानदर्पण में छपते रहते हैं। इसके साथ ही वीडियो क्लासेस, ब्लॉग्स द्वारा ईश्वरीय संदेश देते हैं।

दंड से नहीं दृष्टि से परिवर्तन

केंद्रीय जेल के उप अधीक्षक आरके ध्रुव ने कार्यक्रम के दौरान कहा कि मनोबल कमजोर होने से अंदर से हम अकेले हो जाते हैं। दंड देकर गलतियां न करने का भय दिखाया जा सकता है, लेकिन सुधारा नहीं जा सकता। दृष्टि, मनोवृत्ति में परिवर्तन करके, आध्यात्मिक चिंतन करके खुद को बुराइयों से बचाया जा सकता है। कैदियों ने इस मौके पर भजनों की प्रस्तुति दी। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी संस्था ने साहित्य बांटे। केंद्रीय जेल अधीक्षक एसके मिश्रा ने इस प्रयास को कैदियों के जीवन में परिवर्तन लाने वाला बताया।

व्यक्ति नहीं कर्म ही शत्रु दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुरा


व्यक्ति नहीं कर्म ही शत्रु
दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुराइयां उसकी दुश्मन हैं। कर्म ही शत्रु हैं और वहीं मित्र हैं। हमारे साथ जो कुछ भी होता है वह भले के लिए ही होता है, कल्याणकारी होता है। भीतरी बुराइयों को दूर करने के लिए इंद्रियों पर संयम रखना सीखें। भगवान भाई ने अपने जीवन के रहस्य खोलते हुए कहा कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, जिसके चलते 11 साल की उम्र तक वे स्कूल नहीं गए। पढऩे की ललक होने के कारण गांव के स्कूल पहुंचे तो उन्हें टीचर्स ने कक्षा 5वीं में बैठाया। उन्होंने 5वीं से ही पढऩा शुरू किया। दुकानदार से पुरानी लिखी डायरियां लाकर पानी से साफ कर वे फिर इसका इस्तेमाल करते थे, ऐसे में एक दिन ब्रह्माकुमारी संस्था की डायरी हाथ लगी, जिससे पढ़कर वे काफी प्रभावित हुए। मुसाफिरों को पानी बेचकर 10 रुपए कमाए और माउंटआबू संस्था को भेजकर राजयोग की जानकारी मंगाई। पढऩे के बाद से जीवन में बदलाव आ गया और वे पूरी तरह संस्था के लिए समर्पित हो गए। 3000 से अधिक विषयों पर वे लेख लिख चुके हैं, जो हिंदी ज्ञानामृत, अंग्रेजी-द वल्र्ड रिनिवल, मराठी-अमृत कुंभ, उडिय़ा-ज्ञानदर्पण में छपते रहते हैं। इसके साथ ही वीडियो क्लासेस, ब्लॉग्स द्वारा ईश्वरीय संदेश देते हैं।

दंड से नहीं दृष्टि से परिवर्तन

केंद्रीय जेल के उप अधीक्षक आरके ध्रुव ने कार्यक्रम के दौरान कहा कि मनोबल कमजोर होने से अंदर से हम अकेले हो जाते हैं। दंड देकर गलतियां न करने का भय दिखाया जा सकता है, लेकिन सुधारा नहीं जा सकता। दृष्टि, मनोवृत्ति में परिवर्तन करके, आध्यात्मिक चिंतन करके खुद को बुराइयों से बचाया जा सकता है। कैदियों ने इस मौके पर भजनों की प्रस्तुति दी। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी संस्था ने साहित्य बांटे। केंद्रीय जेल अधीक्षक एसके मिश्रा ने इस प्रयास को कैदियों के जीवन में परिवर्तन लाने वाला बताया।

स्कूल के स्टूडेंट्स को मूल्य निष्ठा की शिक्षा देने व कैदियों के जीवन में सद्भावना, मूल्य व मानवता को बढ़ावा देने वाले ब्रह्मकुमार भगवान बुधवार से शहर


स्कूल के स्टूडेंट्स को मूल्य निष्ठा की शिक्षा देने व कैदियों के जीवन में सद्भावना, मूल्य व मानवता को बढ़ावा देने वाले ब्रह्मकुमार भगवान बुधवार से शहर में होंगे। हजारों कार्यक्रम के जरिए संदेश देने के उनके प्रयास को इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया जा चुका है। वे २० से 24 जुलाई तक विभिन्न स्कूलों व केंद्रीय जेल में अध्यात्म की गंगा बहाएंगे। साथ ही ब्रह्मकुमारी संस्था के सदस्यों को राजयोग, एकाग्रता व ज्ञान का ज्ञान देंगे।

बीके भगवान 1987 से भारत के विभिन्न प्रांतों में जाकर हजारों स्कूली बच्चों व जेलों में बंद कैदियों में मानवता का बीज बोते रहे। मिडिल व हाईस्कूलों के अलावा कॉलेज, आईटीआई सहित कई संस्थाओं में उनके आह्वान पर युवा अध्यात्म की राह पर चल पड़े हैं। अपने मिशन को सफलता दिलाने के लिए उन्होंने पदयात्रा, मोटरसाइकिल व साइकिल यात्रा सहित शिक्षा अभियान, ग्राम विकास अभियान कार्यक्रम संचालित किए। बीके भगवान भाई के अनुसार अगर समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, कुरीतियां, बुराइयां, व्यसन,नशा को समाप्त करना है तो स्कूलों में शिक्षा में परिवर्तन करने होंगे।

भगवान दगडू चवरे मुकाम तलेवाडी तालुका आटपाडी जिला सांगली

एक आदर्श समाज में नैतिक, सामाजिक व आध्यात्मिक मूल्य प्रचलित होते है। नैतिक मूल्यों का हमें सम्मान करना चाहिए। मूल्य शिक्षा द्वारा ही बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। उक्त प्रेरणास्पद उद्गार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने शारदा विद्या मंदिर एवं सरस्वती विद्या मंदिर स्कूल में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि लालच, भ्रम, बईमानी, चोरी, ठगी, नकारात्मक विचार मनुष्य को नैतिकता के विरुद्ध आचरण करने के लिए उकसाते हैं। उन्होंने विद्यार्थियों को बताया कि हमें अनैतिकता का मार्ग छोड़कर नैतिकता की ओर जाना है। आस्था निर्माण की जरूरत राज योगी भगवान भाई ने शहर के दोनों निजी विद्यालय में पहुंचकर विद्यार्थियों से कहा कि नैतिक मूल्य से युक्त जीवन ही सभी को पसंद आता है। सद्गुणों की धारणा से ही हम प्रशंसा के पात्र बन सकते है। उन्होंने बताया कि मूल्य ही जीवन की सुंदरता और वरदान है। जीवन में धारण किए गए मूल्य ही हमारे श्रेष्ठ चरित्र की निशानी है। मूल्यों को जीवन में धारण करने की हमारे मन में आस्था निर्माण करने की आवश्यकता है। भगवान भाई ने कहा कि मूल्य हमारे जीवन में अनमोल निधि है। स्थानीय सेवा केंद्र की संचालिका बीके ज्योति बहन ने सभी को ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय का परिचय देते हुए आध्यात्मिकता के बारे में विस्तृत जानकारी दी।

भगवान दगडू चवरे मुकाम तलेवाडी तालुका आटपाडी जिला सांगली

सलाखों के पीछे सात जन्मों का ज्ञान
अध्यात्म & इंडिया बुक ऑफ़ रिकार्ड होल्डर भगवान भाई कैदियों के बीच पहुंचे, जेल को तपोभूमि बनाने का किया आह्वान
सलाखों के पीछे सात जन्मों का ज्ञान
अध्यात्म & इंडिया बुक ऑफ़ रिकार्ड भगवान भाई कैदियों के बीच पहुंचे, जेल को तपोभूमि बनाने का किया आह्वान व्यक्ति नहीं कर्म ही शत्रु
दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुराइयां उसकी दुश्मन हैं। कर्म ही शत्रु हैं और वहीं मित्र हैं। हमारे साथ जो कुछ भी होता है वह भले के लिए ही होता है, कल्याणकारी होता है। भीतरी बुराइयों को दूर करने के लिए इंद्रियों पर संयम रखना सीखें। भगवान भाई ने अपने जीवन के रहस्य खोलते हुए कहा कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, जिसके चलते 11 साल की उम्र तक वे स्कूल नहीं गए। पढऩे की ललक होने के कारण गांव के स्कूल पहुंचे तो उन्हें टीचर्स ने कक्षा 5वीं में बैठाया। उन्होंने 5वीं से ही पढऩा शुरू किया। दुकानदार से पुरानी लिखी डायरियां लाकर पानी से साफ कर वे फिर इसका इस्तेमाल करते थे, ऐसे में एक दिन ब्रह्माकुमारी संस्था की डायरी हाथ लगी, जिससे पढ़कर वे काफी प्रभावित हुए। मुसाफिरों को पानी बेचकर 10 रुपए कमाए और माउंटआबू संस्था को भेजकर राजयोग की जानकारी मंगाई। पढऩे के बाद से जीवन में बदलाव आ गया और वे पूरी तरह संस्था के लिए समर्पित हो गए। 3000 से अधिक विषयों पर वे लेख लिख चुके हैं, जो हिंदी ज्ञानामृत, अंग्रेजी-द वल्र्ड रिनिवल, मराठी-अमृत कुंभ, उडिय़ा-ज्ञानदर्पण में छपते रहते हैं। इसके साथ ही वीडियो क्लासेस, ब्लॉग्स द्वारा ईश्वरीय संदेश देते हैं।

दंड से नहीं दृष्टि से परिवर्तन

केंद्रीय जेल के उप अधीक्षक आरके ध्रुव ने कार्यक्रम के दौरान कहा कि मनोबल कमजोर होने से अंदर से हम अकेले हो जाते हैं। दंड देकर गलतियां न करने का भय दिखाया जा सकता है, लेकिन सुधारा नहीं जा सकता। दृष्टि, मनोवृत्ति में परिवर्तन करके, आध्यात्मिक चिंतन करके खुद को बुराइयों से बचाया जा सकता है। कैदियों ने इस मौके पर भजनों की प्रस्तुति दी। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी संस्था ने साहित्य बांटे। केंद्रीय जेल अधीक्षक एसके मिश्रा ने इस प्रयास को कैदियों के जीवन में परिवर्तन लाने वाला बताया।

व्यक्ति नहीं कर्म ही शत्रु दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुरा


व्यक्ति नहीं कर्म ही शत्रु
दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुराइयां उसकी दुश्मन हैं। कर्म ही शत्रु हैं और वहीं मित्र हैं। हमारे साथ जो कुछ भी होता है वह भले के लिए ही होता है, कल्याणकारी होता है। भीतरी बुराइयों को दूर करने के लिए इंद्रियों पर संयम रखना सीखें। भगवान भाई ने अपने जीवन के रहस्य खोलते हुए कहा कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, जिसके चलते 11 साल की उम्र तक वे स्कूल नहीं गए। पढऩे की ललक होने के कारण गांव के स्कूल पहुंचे तो उन्हें टीचर्स ने कक्षा 5वीं में बैठाया। उन्होंने 5वीं से ही पढऩा शुरू किया। दुकानदार से पुरानी लिखी डायरियां लाकर पानी से साफ कर वे फिर इसका इस्तेमाल करते थे, ऐसे में एक दिन ब्रह्माकुमारी संस्था की डायरी हाथ लगी, जिससे पढ़कर वे काफी प्रभावित हुए। मुसाफिरों को पानी बेचकर 10 रुपए कमाए और माउंटआबू संस्था को भेजकर राजयोग की जानकारी मंगाई। पढऩे के बाद से जीवन में बदलाव आ गया और वे पूरी तरह संस्था के लिए समर्पित हो गए। 3000 से अधिक विषयों पर वे लेख लिख चुके हैं, जो हिंदी ज्ञानामृत, अंग्रेजी-द वल्र्ड रिनिवल, मराठी-अमृत कुंभ, उडिय़ा-ज्ञानदर्पण में छपते रहते हैं। इसके साथ ही वीडियो क्लासेस, ब्लॉग्स द्वारा ईश्वरीय संदेश देते हैं।

दंड से नहीं दृष्टि से परिवर्तन

केंद्रीय जेल के उप अधीक्षक आरके ध्रुव ने कार्यक्रम के दौरान कहा कि मनोबल कमजोर होने से अंदर से हम अकेले हो जाते हैं। दंड देकर गलतियां न करने का भय दिखाया जा सकता है, लेकिन सुधारा नहीं जा सकता। दृष्टि, मनोवृत्ति में परिवर्तन करके, आध्यात्मिक चिंतन करके खुद को बुराइयों से बचाया जा सकता है। कैदियों ने इस मौके पर भजनों की प्रस्तुति दी। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी संस्था ने साहित्य बांटे। केंद्रीय जेल अधीक्षक एसके मिश्रा ने इस प्रयास को कैदियों के जीवन में परिवर्तन लाने वाला बताया।

स्कूल के स्टूडेंट्स को मूल्य निष्ठा की शिक्षा देने व कैदियों के जीवन में सद्भावना, मूल्य व मानवता को बढ़ावा देने वाले ब्रह्मकुमार भगवान बुधवार से शहर


स्कूल के स्टूडेंट्स को मूल्य निष्ठा की शिक्षा देने व कैदियों के जीवन में सद्भावना, मूल्य व मानवता को बढ़ावा देने वाले ब्रह्मकुमार भगवान बुधवार से शहर में होंगे। हजारों कार्यक्रम के जरिए संदेश देने के उनके प्रयास को इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया जा चुका है। वे २० से 24 जुलाई तक विभिन्न स्कूलों व केंद्रीय जेल में अध्यात्म की गंगा बहाएंगे। साथ ही ब्रह्मकुमारी संस्था के सदस्यों को राजयोग, एकाग्रता व ज्ञान का ज्ञान देंगे।

बीके भगवान 1987 से भारत के विभिन्न प्रांतों में जाकर हजारों स्कूली बच्चों व जेलों में बंद कैदियों में मानवता का बीज बोते रहे। मिडिल व हाईस्कूलों के अलावा कॉलेज, आईटीआई सहित कई संस्थाओं में उनके आह्वान पर युवा अध्यात्म की राह पर चल पड़े हैं। अपने मिशन को सफलता दिलाने के लिए उन्होंने पदयात्रा, मोटरसाइकिल व साइकिल यात्रा सहित शिक्षा अभियान, ग्राम विकास अभियान कार्यक्रम संचालित किए। बीके भगवान भाई के अनुसार अगर समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, कुरीतियां, बुराइयां, व्यसन,नशा को समाप्त करना है तो स्कूलों में शिक्षा में परिवर्तन करने होंगे।

भगवान दगडू चवरे मुकाम तलेवाडी तालुका आटपाडी जिला सांगली

गणपतीचे अध्यात्मिक रहस्य
भारतात बहुसंख्य लोक गणपतीची पूजा, साधना करतात. शुभप्रसंगी धार्मिकविधीचा प्रारंभ तसेच व्यापारी आपल्या वह्यांची सुरवात गणपतीच्या स्तवनानेच स्वस्तिकाचे चिन्ह काढून करतात.परंतु विचार करण्यासारखी गोष्ट हि आहे कि, केवळ दर्शन, पूजन एवढच पुरेस आहे का ? यापेक्षा त्या बरोबर गणपतीचे " अध्यात्मिक रहस्य" जाणून दिव्य गुणांना अष्ट शक्तींना विवेकपूर्ण रीतीने स्वजीवनात धारण करणे (अष्टविनायक ) सर्वविघ्ने पार करणे (विघ्नहर्ता )व ज्ञानाचा उपयोग करून सफलता प्राप्त करणे (सिद्धिविनायक ) २१ जन्मांसाठी उज्वल भविष्याचे भाग्य संपादन करणे (२१ दुर्वांची जुडी )हे जास्त महत्वाचे आहे, नाही का ?
:श्री गणेशाच्या चित्रावरून त्यांच्या चरित्राचे दर्शन होते ते असे:
गजमुख :-विशाल बुद्धी व ईश्वराप्रती निश्चयाचे प्रतिक
गजकर्ण ;-सत्यज्ञान श्रवण आणि व्यर्थ वाइटासाठी कान बंद
गजचक्षु :-दुसर्यांमध्ये महानता बघण्याची वृत्ती
वक्रतुंड :-स्वतः च्या वांईट सवयी व मोठ्या अवगुणांना मुळापासून उखडून टाकणे व दुसर्यांचा आदर करणे
हातात परशु :-आयुष्यातील मोह,आसुरी स्वभाव, लोक लाज या बंधनांना तोडून मुक्ती व जीवनमुक्ती प्राप्त करणे
हातात दोरी :- ईश्वरीय नियम मर्यादांमध्ये स्वतः ला प्रेमाने बांधून घेणे
हातात मोदक (लाडू ) :-संघटनाने जीवनात गोडी निर्माण करून पूर्ण सफलता प्राप्त करणे
वरदानी हात :- सर्व प्राप्ती जनकल्याणासाठी वापरणे,सर्वाप्रती सदा सर्वदा शुभकामना व्यक्त करणे
लंबोदर :- समस्या, निंदा,चिंता आदींचे वर्णन न करता पोटात सामावून घेणे .
मूषक वाहन :-अविवेक,कुतर्क यावर विवेकाचा विजय.
स्वस्तिक चिन्ह :-चार युगांच्या सृष्टीचक्राच्या ज्ञानाच्या आधारावर सदैव शुभविचार व शुभकर्मे करण्याचे प्रतिक
गणनायक :- शिवपुत्र,गण म्हणजे प्रजा,प्रजांचा नायक( पिता )म्हणजे परमपिता परमेश्वर असा जो आदि
नाथ त्याचीच पूजा गणपतीच्या रुपात होते
आपणही आपल्या जीवनात गणपती प्रमाणे आपल्या जीवनाला श्रेष्ठ,उदात्त,उदार व आदर्श बनवू या

5 हजार स्कूल में नैतिक शिक्षा का अलख जगाकर इंडिया बुक आॅफ रिकार्ड में अपना नाम दर्ज कराने वाले राजयोगी डायमंड इंग्लिश उच्च माध्यमिक विद्यालय माधव नगर के विद्यार्थियों को जीवन में नैतिक शिक्षा का महत्व विषय पर संबोधित करते हुए राजयोगी भगवानभाई ने कहा

आज हम विकसित देशों की श्रेणी में खड़े होने का भरपूर प्रयास कर रहे है। इसके साथ सफलता भी मिल रही है। परंतु समाज में फैल रही दुर्भावना और हिंसा चिंता का सबब बनती जा रही है। इसके लिए जरूरी है कि व्यक्तिगत स्तर पर सकारात्मक आंतरिक चेतना के विकास को महत्व दिया जाए। उक्त उद्गार प्रजापति ब्रम्हाकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के पूरे भारत में 5 हजार स्कूल में नैतिक शिक्षा का अलख जगाकर इंडिया बुक आॅफ रिकार्ड में अपना नाम दर्ज कराने वाले राजयोगी डायमंड इंग्लिश उच्च माध्यमिक विद्यालय माधव नगर के विद्यार्थियों को जीवन में नैतिक शिक्षा का महत्व विषय पर संबोधित करते हुए राजयोगी भगवानभाई ने कहा कि आज समाज, देश व विश्व की क्या स्थिति है इसके बारे में हम अच्छी तरह जानते है कि केवल भौतिक विकास से ही हमारा सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता। नैतिक विकास से समाज और परिवार में मूल्य विकसित होते है। इससे ही पारिवारिक सामाजिक और वैश्विक स्तर पर संपूर्ण रूप से विकसित हो सकेंगे। उन्होंने आगे बताया कि आज जितना हम विकास पर ध्यान रखेंगे अपने आंतरिक शक्तियों को जागृत करेंगे उतना युवाओं सशक्तिकरण आएगा। युवाओं को अपने शक्तियां रचनात्मक कार्य में लगाये। उन्होंने कहा कि यदि अपराधमुक्त समाज चाहित तो मानवीय, नैतिक शिक्षा द्वारा संस्कारित युवाओं की निर्मित करे। इसके लिए युवाओं को आगे आना चाहिए। उन्होंने युवाओं को आंतरिक रूप से सशक्त होकर लोगों की सेवा करने के लिए आगे जाने का आव्हान किया।

भगवान दगडू चवरे मुकाम तलेवाडी तालुका आटपाडी जिला सांगली

सुखी जीवन के लिए भौतिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा भी जरूरी है। भौतिक शिक्षा से हम रोजगार प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन परिवार, समाज, कार्यस्थल में परेशानी या चुनौती का मुकाबला नहीं कर सकते।

उक्त उद्गार नैतिक मूल्य जागृति अभियान में आए प्रजापिता ब्रम्हाकुमारी ईश्वरीय विवि के माउंट आबू के ब्रम्हाकुमार भगवान भाई ने व्य?त किए। अखिल भारतीय शैक्षक्षिक अभियान के अंतर्गत शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला और सरस्वती शिशु मंदिर के छात्रा-छात्राओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि नैतिक मूल्यों से व्यक्तित्व में निखार, व्यवहार में सुधार आता है। नैतिक मूल्यों का ह्रास व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रीय समस्या का मूल कारण है। समाज सुधार के लिए नैतिक मूल्य जरूरी है।

उन्होंने कहा कि नैतिक शिक्षा की धारणा से, आंतरिक सशक्तीकरण से इच्छाओं को कम कर भौतिकवाद की आंधी से बचा जा सकता है। व्यक्ति का आचरण उसकी जुबान से ज्यादा तेज बोलता है। लोग जो कुछ आंख से देखते हैं। उसी की नकल करते हैं।

हमारे जीवन में श्रेष्ठ मू््ल्य है तो दूसरे उससे प्रमाणित होते हैं। जीवन में नैतिक मूल्य होंगे तो आदमी लालच, हिंसा, झूठ, कपट का विरोध करेगा और समाज में परिवर्तन आएगा। उन्होंने कहा नैतिकता से मनोबल कम होता है। मूल्यों की शिक्षा से ही हम जीवन में विपरीत परिस्थिति का सामना कर सकते हैं। जब तक हम अपने जीवन में मूल्यों और प्राथमिकता का निर्धारण नहीं करेंगे, अपने लिए आचार संहिता नहीं बनाएंगे तब तक हम चुनौतियों का मुकाबला नहीं कर सकते। चरित्र उत्थान और आंतरिक शक्तियों के विकास के लिए आचार संहिता जरूरी है। उन्होंनेे अंत में नैतिक मूल्यों का स्रोत आध्यमित्कता को बताया। जब तक आध्यात्मिकता को नहीं अपनाएंगे जीवन में मूल्यों की धारणा संभव नहीं है।

ब्रम्हाकुमारी हेमा ने कहा कि समाज में स्वयं को सुखीन सशक्त बनाने के लिए नैतिक शिक्षा बहुत जरूरी है। ब्रम्हाकुमारी पुष्पा ने कहा कि छात्राएं समाज की धरोहर है। उन्हें खुद को शक्तिशाली बनाने आध्यात्मिकता को अपनाने को कहा। भारत में एक समय नैतिक मूल्य थे इसलिए लोग उन्हें देवी की तरह पूजते थे। अंत में आभार प्रदर्शन विवेक शर्मा, जगन्नाथ साहू ने किया।

Sunday 16 October 2011

परमात्मा आ चुके हैं

परमात्मा आ चुके हैं

ब्रह्माकुमार भगवान भाई Brahma Kumaris


प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय शांतिवन के बीके भगवान भाई

की ओर से पांच हजार स्कूलों में हजारों बच्चों को
मूल्यनिष्ठ शिक्षा के जरिए नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास के लिए लगातार
पढाए जाने पर तथा आठ सौ जेलों में हजारों कैदियों को अपराधों को छोड़
अपने जीवन में सदभावना, मूल्य तथा मानवता को बढ़ावा देने के उददेश्य से
आयोजित किए गए हजारों कार्यक्रमों के जरिए संदेश देने के अथक प्रयास को
’इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड’ में दर्ज किया गया है। दिल्ली के कनाट प्लेस में
२२ अप्रैल को यह सर्टिफिकेट इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड के चीफ एडिटर विश्वरूप
राय चौधरी की ओर से एक समारोह में दिया गया। इस अवसर पर विश्वरूप राय
चौधरी ने कहा कि ऐसे प्रयास से लोगों के जीवन में एक नई उर्जा का संचार
होगा तथा लोगों में सदभावना को बढ़ावा मिलेगा। बीके भगवान भाई पिछले कई
सालों में अथक प्रयास से देश के विभिन्न हिस्सों में जाकर हजारों स्कूलों
में बच्चों तथा जेलों में कैदियों में मानवता का बीज बोने का अथक प्रयास
करते रहे है जिससे यह सफलता मिली है। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय शांतिवन
के बीके भगवान भाई की ओर से पांच हजार स्कूलों में हजारों बच्चों को
मूल्यनिष्ठ शिक्षा के जरिए नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास के लिए लगातार
पढाए जाने पर तथा आठ सौ जेलों में हजारों कैदियों को अपराधों को छोड़
अपने जीवन में सदभावना, मूल्य तथा मानवता को बढ़ावा देने के उददेश्य से
आयोजित किए गए हजारों कार्यक्रमों के जरिए संदेश देने के अथक प्रयास को
’इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड’ में दर्ज किया गया है। दिल्ली के कनाट प्लेस में
२२ अप्रैल को यह सर्टिफिकेट इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड के चीफ एडिटर विश्वरूप
राय चौधरी की ओर से एक समारोह में दिया गया। इस अवसर पर विश्वरूप राय
चौधरी ने कहा कि ऐसे प्रयास से लोगों के जीवन में एक नई उर्जा का संचार
होगा तथा लोगों में सदभावना को बढ़ावा मिलेगा। बीके भगवान भाई पिछले कई
सालों में अथक प्रयास से देश के विभिन्न हिस्सों में जाकर हजारों स्कूलों
में बच्चों तथा जेलों में कैदियों में मानवता का बीज बोने का अथक प्रयास
करते रहे है जिससे यह सफलता मिली है।

मध्यप्रदेश : राजयोग से मन की स्थिरता संभव- भगवान भाई मध्यप्रदेश : राजयोग से मन की स्थिरता संभव- भगवान भाई खरगोन, ४ जुलाई (हि.स.)। जीवन में सदा स्वस्थ, संपतिवान व खुश रहने के लिए आंतरिक शक्ति व स्थिरता की आवश्यकता है। राजयोग के नियमित अभ्यास से ही मन की स्थिरता प्राप्त होना संभव है। उक्त उद्गार प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय माउंटआबू से पधारे हुए ब्रह्मा कुमार भगवानभाई ने कहे। उन्होंने कहा कि जीवन क


दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुराइयां उसकी दुश्मन हैं। कर्म ही शत्रु हैं और वहीं मित्र हैं। हमारे साथ जो कुछ भी होता है वह भले के लिए ही होता है, कल्याणकारी होता है। भीतरी बुराइयों को दूर करने के लिए इंद्रियों पर संयम रखना सीखें। भगवान भाई ने अपने जीवन के रहस्य खोलते हुए कहा कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, जिसके चलते 11 साल की उम्र तक वे स्कूल नहीं गए। पढऩे की ललक होने के कारण गांव के स्कूल पहुंचे तो उन्हें टीचर्स ने कक्षा 5वीं में बैठाया। उन्होंने 5वीं से ही पढऩा शुरू किया। दुकानदार से पुरानी लिखी डायरियां लाकर पानी से साफ कर वे फिर इसका इस्तेमाल करते थे, ऐसे में एक दिन ब्रह्माकुमारी संस्था की डायरी हाथ लगी, जिससे पढ़कर वे काफी प्रभावित हुए। मुसाफिरों को पानी बेचकर 10 रुपए कमाए और माउंटआबू संस्था को भेजकर राजयोग की जानकारी मंगाई। पढऩे के बाद से जीवन में बदलाव आ गया और वे पूरी तरह संस्था के लिए समर्पित हो गए। 3000 से अधिक विषयों पर वे लेख लिख चुके हैं, जो हिंदी ज्ञानामृत, अंग्रेजी-द वल्र्ड रिनिवल, मराठी-अमृत कुंभ, उडिय़ा-ज्ञानदर्पण में छपते रहते हैं। इसके साथ ही वीडियो क्लासेस, ब्लॉग्स द्वारा ईश्वरीय संदेश देते हैं।


इंदौर। भौतिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा से ही बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सकता है। इसके बगैर मनुष्य का काम नहीं चल सकता। ये विचार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी विवि माउंट आबू के भगवान भाई ने व्यक्त किए। वे उमियाधाम पाटीदार कन्या छात्रावास में विद्यार्थियों को नैतिक शिक्षा का महत्व बता रहे थे। उन्होंने कहा कि नैतिक मूल्यों की कमी से ही समस्याएं बढ़ रही है। ज्ञान की व्याख्या में उन्होंने कहा कि जो शिक्षा विद्यार्थियों को अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, बंधनों से मुक्ति की ओर ले जाए वही सच्ची शिक्षा है। समाज अमूर्त है, वह प्रेम, सद्भावना, भाईचारा, नैतिकता, मानवीय मूल्यों से ही संचालित होता है। प्रगतिशील एवं श्रेष्ठ समाज इन्हीं मूल्यों से परिभाषित होता है। उन्होंने शिक्षा को ऐसा बीज बताया, जिससे जीवन फलदार वृक्ष बन जाता है। ओमशांति भवन के राजयोगी प्रकाश भाई ने कहा कि कुसंग व फैशन से युवा भटक रहा है, इससे बच्चों की दूरी आवश्यक है। प्राचार्य बबीता हार्डिया ने बताया कि मूल शिक्षा से ही व्यक्ति महान बनता है, सद्गुणों से ही व्यक्तित्व निखरता


ाजयोगी भ राजयोग से आंतरिक शक्तियों व सद्गुणों को उभार कर व्यवहार में निखार लाया जा सकता है। इंद्रियों पर संयम रखने से मनोबल बढ़ता है। माउंट आबू से आए राजयोगी भ ‘चिंता है चिता की जड़’ स्र46 भास्कर न्यूज & बिलासपुर राजयोग से आंतरिक शक्तियों व सद्गुणों को उभार कर व्यवहार में निखार लाया जा सकता है। इंद्रियों पर संयम रखने से मनोबल बढ़ता है। माउंट आबू से आए राजयोगी भगवान भाई ने ब्रह्माकुमारी संस्था के सदस्यों को राजयोग के विशेष अभ्यास से सहनशीलता, नम्रता, एकाग्रता, शांति, धैर्यता व सद्गुणों का विकास करने पर बल देते हुए कहा कि दूसरों को देखकर चिंतित होना, नकारात्मकता से घिर जाना पतन की जड़ है। ऐसा व्यक्ति जीवन में कभी भी सुखी नहीं हो सकता। उसलापुर स्थित ब्रह्माकुमारी शांति सरोवर में राजयोग साधना से संस्कार परिवर्तन कार्यक्रम के दौरान भगवान भाई ने कहा कि पर चिंतन करने वाला व दूसरों को देखने वाला हमेशा तनाव में रहता है, जबकि स्वचिंतन से आंतरिक कमजोरियों की जांच कर उसे बदला जा सकता है। उन्होंने राजयोग के अभ्यास से स्वचिंतन का महत्व समझाया। भगवान भाई ने कहा कि हमारा जीवन हंस की तरह अंदर व बाहर से स्वच्छ रखने की आवश्यकता है। गुणवान व्यक्ति ही समाज की असली संपत्ति है। राजयोग की विधि समझाते हुए उन्होंने कहा कि खुद को देह न मानकर आत्मा मानें और परमात्मा को याद करते हुए सद्गुणों को धारण करें। ऐसा करने से काम, क्रोध, माया, मोह, लोभ, अहंकार, आलस्य, ईष्या, द्वेष पर जीत हासिल की जा सकती है। आध्यात्मिकता की व्याख्या करते हुए भगवान भाई ने कहा कि जब तक हम खुद को नहीं पहचानते तब तक परमात्मा से संबंध स्थापित नहीं कर सकते। इस मौके पर मुंगेली, जांजगीर, बिल्हा, राहौद, खरौद, तखतपुर, रतनपुर सहित शहर से करीब 500 सदस्य उपस्थित थे। नैतिकता से ही सर्वांगीण विकास संभव : देवकीनंदन गल्र्स स्कूल में विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास में नैतिक शिक्षा के महत्व पर भगवान भाई ने कहा कि इससे ही वे अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, बंधन से मुक्ति की ओर जाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आज के बच्चे की कल के भविष्य हैं। अगर कल के समाज को बेहतर देखना चाहते हैं तो वर्तमान के विद्यार्थियों को नैतिक शिक्षा देकर संस्कारित किया जा सकता है।