Monday 13 February 2012

तनाव मुक्त रहने के लिए सकारात्मक सोच जरूरी राजयोग केन्द्र में तनाव मुक्तिपर गोष्ठी आयोजित भास्कर न्यूजत्न जैसलमेर वर्तमान समय समस्याओं का युग है इस युग में अपने आप को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। बिसानी पाड़ा स्थित राजयोग केन्द्र में तनाव मुक्ति पर आयोजित गोष्ठी को संबोधित करते हुए माउंट आबू से आए भगवान भाई ने कहा कि 19वीं सदी तर्क की थी, 20 सदी प्रगति की रही तथा 21वी सदी तनावपूर्ण रहेगी। तनावपूर्ण परिस्थितियों में स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि विपरित परिस्थितियों में हर समस्या में, हर बात को सकारात्मक सोचने की कला जीवन को सुखी बनाती है। नकारात्मक सोच अनेक बीमारियों एवं समस्याओं की जड़ है। वर्तमान परिवेश में सहन शक्ति की आवश्यकता है। महान पुरूषों ने सहनशक्ति के आधार पर ही महानता प्राप्त की है। गीता का उदाहरण देते हुए कहा कि जीवन में हर घटना कल्याणकारी है, जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो होगा वह भी अच्छा होगा। जो व्यक्ति दूसरो के बारे में सोचता है, दूसरो को देखता है वह कभी भी सुखी नहीं रह सकता। कोई हमारे साथ गलत व्यवहार करता है तो इसका मतलब हमने भी उसके साथ गलत व्यवहार किया होगा। आध्यात्मिक सत्संग को सकारात्मक सोच का केन्द्र बताते हुए कहा कि सत्संग के माध्यम से ही हम सकारात्मक सोच अपना सकते है। ब्रह्माकुमारी रेखा ने राजयोग का महत्व बताते हुए कहा कि राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रखकर तनाव मुक्त रह सकते है। राजयोग की विधि बताते हुए कहा कि स्वयं को आत्मा निश्चय कर चांद, सूर्

तनाव मुक्त रहने के लिए सकारात्मक सोच जरूरी
राजयोग केन्द्र में तनाव मुक्तिपर गोष्ठी आयोजित
भास्कर न्यूजत्न जैसलमेर
वर्तमान समय समस्याओं का युग है इस युग में अपने आप को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। बिसानी पाड़ा स्थित राजयोग केन्द्र में तनाव मुक्ति पर आयोजित गोष्ठी को संबोधित करते हुए माउंट आबू से आए भगवान भाई ने कहा कि 19वीं सदी तर्क की थी, 20 सदी प्रगति की रही तथा 21वी सदी तनावपूर्ण रहेगी। तनावपूर्ण परिस्थितियों में स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि विपरित परिस्थितियों में हर समस्या में, हर बात को सकारात्मक सोचने की कला जीवन को सुखी बनाती है। नकारात्मक सोच अनेक बीमारियों एवं समस्याओं की जड़ है। वर्तमान परिवेश में सहन शक्ति की आवश्यकता है। महान पुरूषों ने सहनशक्ति के आधार पर ही महानता प्राप्त की है। गीता का उदाहरण देते हुए कहा कि जीवन में हर घटना कल्याणकारी है, जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो होगा वह भी अच्छा होगा। जो व्यक्ति दूसरो के बारे में सोचता है, दूसरो को देखता है वह कभी भी सुखी नहीं रह सकता। कोई हमारे साथ गलत व्यवहार करता है तो इसका मतलब हमने भी उसके साथ गलत व्यवहार किया होगा। आध्यात्मिक सत्संग को सकारात्मक सोच का केन्द्र बताते हुए कहा कि सत्संग के माध्यम से ही हम सकारात्मक सोच अपना सकते है। ब्रह्माकुमारी रेखा ने राजयोग का महत्व बताते हुए कहा कि राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रखकर तनाव मुक्त रह सकते है। राजयोग की विधि बताते हुए कहा कि स्वयं को आत्मा निश्चय कर चांद, सूर्

राजयोग से मन को वश में करना संभव बाड़मेरत्न राजयोग के नियमित अभ्यास से ही मन की स्थिरता संभव है। यह बात प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू से आए भगवान भाई ने महावीर नगर स्थित केंद्र में 'राजयोग का जीवन में महत्व' विषय पर कहे। उन्होंने कहा कि जीवन में शांति, स्थिरता और खुशी के लिए जीवन में स्थिरता, स्वस्थ जीवन शैली, सकारात्मक चिंतन, साक्षी दृष्टा और आत्मा निर्भयता की आवश्यकता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार इन विकारों पर विजय प्राप्त करने की शक्ति राजयोग से प्राप्त होती है। राजयोग हमें सकारात्मक चिंतन करने की कला सिखाता है। उन्होंने कहा कि राजयोग से हम अपने शरीर को वश में कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि सकारात्मक सोच से ही शरीर की बीमारियों से मुक्ति पाना संभव है। स्थानीय ब्रह्मकुमारी राजयोग सेवा केंद्र की बबीता बहन ने कहा कि राजयोग के निरंतर अभ्यास से हम अपने कर्मेंद्रियों को संयमित कर सकते हैं।





Published on 13 Feb-2012
 

बाड़मेर. विश्वविद्यालय में प्रवचन देते भगवानभाई। राजयोग से मन को वश में करना संभव
बाड़मेरत्न राजयोग के नियमित अभ्यास से ही मन की स्थिरता संभव है। यह बात प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू से आए भगवान भाई ने महावीर नगर स्थित केंद्र में 'राजयोग का जीवन में महत्व' विषय पर कहे। उन्होंने कहा कि जीवन में शांति, स्थिरता और खुशी के लिए जीवन में स्थिरता, स्वस्थ जीवन शैली, सकारात्मक चिंतन, साक्षी दृष्टा और आत्मा निर्भयता की आवश्यकता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार इन विकारों पर विजय प्राप्त करने की शक्ति राजयोग से प्राप्त होती है। राजयोग हमें सकारात्मक चिंतन करने की कला सिखाता है। उन्होंने कहा कि राजयोग से हम अपने शरीर को वश में कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि सकारात्मक सोच से ही शरीर की बीमारियों से मुक्ति पाना संभव है। स्थानीय ब्रह्मकुमारी राजयोग सेवा केंद्र की बबीता बहन ने कहा कि राजयोग के निरंतर अभ्यास से हम अपने कर्मेंद्रियों को संयमित कर सकते हैं।

आंतरिक चेतना के विकास को महत्व देना जरूरी भास्कर न्यूजत्न बाड़मेर समाज में फैल रही दुर्भावना और हिंसा, चिंता का कारण बन रही है। इसके लिए जरूरी है कि व्यक्तिगत स्तर पर सकारात्मक आंतरिक चेतना के विकास को महत्व दिया जाए। ये विचार प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की भारत में संचालित हो रही स्कूलों में नैतिक शिक्षा का अलख जगाकर इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड में अपना नाम दर्ज कराने वाले ब्रह्मकुमार भगवान भाई ने व्यक्त किए। शुक्रवार को उन्होंने एक कार्यक्रम के तहत राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक स्कूल की छात्राओं को नैतिक शिक्षा का महत्व बताया । राजयोगी भगवान भाई ने कहा कि आज समाज, देश एवं विश्व की क्या स्थिति है। इस बारे में हम अच्छी तरह जानते हैं। केवल भौगोलिक विकास से ही हमारा सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता। नैतिक विकास से समाज और परिवार में मूल्य विकसित होते हैं, वरिष्ठ राजयोगी ने कहा हमारी विरासत हमारे मूल्य है। मूल्य की संस्कृति के कारण आज भारत की पहचान पूरे विश्व में की जाती है। भगवानभाई ने कहा बच्चों को सच्चा और मूल्यनिष्ठ बनाने का ध्यान रखना चाहिए। ब्रह्मकुमारी राजयोग केंद्र की बी.के दमा ने कहा कि जीवन में नैतिक मूल्य एवं चरित्र का आधार आध्यात्मिकता है। कांता चौधरी ने विचार व्यक्त करते हुए कहा वर्तमान में बच्चों को संस्कारित करने के साथ नैतिक शिक्षा जरूरी है।

आंतरिक चेतना के विकास को महत्व देना जरूरी
भास्कर न्यूजत्न बाड़मेर
समाज में फैल रही दुर्भावना और हिंसा, चिंता का कारण बन रही है। इसके लिए जरूरी है कि व्यक्तिगत स्तर पर सकारात्मक आंतरिक चेतना के विकास को महत्व दिया जाए।

ये विचार प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की भारत में संचालित हो रही स्कूलों में नैतिक शिक्षा का अलख जगाकर इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड में अपना नाम दर्ज कराने वाले ब्रह्मकुमार भगवान भाई ने व्यक्त किए। शुक्रवार को उन्होंने एक कार्यक्रम के तहत राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक स्कूल की छात्राओं को नैतिक शिक्षा का महत्व बताया । राजयोगी भगवान भाई ने कहा कि आज समाज, देश एवं विश्व की क्या स्थिति है। इस बारे में हम अच्छी तरह जानते हैं। केवल भौगोलिक विकास से ही हमारा सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता। नैतिक विकास से समाज और परिवार में मूल्य विकसित होते हैं, वरिष्ठ राजयोगी ने कहा हमारी विरासत हमारे मूल्य है। मूल्य की संस्कृति के कारण आज भारत की पहचान पूरे विश्व में की जाती है। भगवानभाई ने कहा बच्चों को सच्चा और मूल्यनिष्ठ बनाने का ध्यान रखना चाहिए। ब्रह्मकुमारी राजयोग केंद्र की बी.के दमा ने कहा कि जीवन में नैतिक मूल्य एवं चरित्र का आधार आध्यात्मिकता है। कांता चौधरी ने विचार व्यक्त करते हुए कहा वर्तमान में बच्चों को संस्कारित करने के साथ नैतिक शिक्षा जरूरी है।

नैतिक शिक्षा से सर्वांगीण विकास संभव स्कूली छात्रों को जीवन में नैतिक शिक्षा का महत्व बताया जैसलमेर .बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए भौतिक शिक्षा के साथ- साथ नैतिक शिक्षा की भी आवश्यकता है। नैतिक शिक्षा से ही सर्वांगीण विकास संभव है। यह उद्गार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंटआबू से आए राजयोगी भगवान भाई ने रामावि सुथार पाड़ा के विद्यार्थियों को जीवन में नैतिक शिक्षा का महत्व विषय पर संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि शैक्षणिक जगत में विद्यार्थियों के लिए नैतिक मूल्यों को जीवन में धारण करने की प्रेरणा देना ही आज की आवश्यकता है। वर्तमान में नैतिक मूल्यों में गिरावट आई है, जो व्यक्तिगत, सामाजिक, पारिवारिक, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय समस्याओं का मूल कारण है। ज्ञान की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि जो शिक्षा विद्यार्थियों को अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, बंधनों से मुक्ति की ओर ले जाए वही सच्ची शिक्षा है। उन्होंने बताया कि समाज अमूर्त है और वह प्रेम, सद्भावना, भाईचारा, नैतिकता एवं मानवीय मूल्यों से ही संचालित होता है। राजयोगी भगवानभाई ने कहा कि शिक्षा एक ऐसा बीज है जिससे जीवन फलदार वृक्ष बन जाता है। जब तक व्यवहारिक जीवन में सेवाभाव, परोपकार, धैर्य, त्याग, उदारता, नम्रता, सहनशीलता, सत्यता, पवित्रता आदि सद्गुण रूपी फल नहीं आते तब तक हमारी शिक्षा अधूरी है। उन्होंने कहा कि आज के बच्चे कल का भावी समाज है। अगर कल के समाज को बेहतर समाज देखना चाहते हो तो वर्तमान के छात्र- छात्राओं को नैतिक मूल्यों की शिक्षा देकर उन्हें संस्कारित करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति अच्छा या बुरा उसके अंदर के गुणों से बनता है। स्थानीय ब्रह्माकुमारी केन्द्र के बी.के. देवपुरी ने कहा कि चरित्रवान, गुणवान बच्चे देश व समाज की संपति है। प्रधानाचार्य सुरेशचंद्र पालीवाल ने कहा कि मूल्य शिक्षा से ही व्यक्ति महान बन सकता है। शारीरिक शिक्षक अमृतलाल ने कार्यक्रम का संचालन किया। इसी कड़ी में नैतिक मूल्यों पर आधारित व्याख्यान स्वामी विवेकानंद उच्च माध्यमिक विद्यालय में भी दिया गया।

नैतिक शिक्षा से सर्वांगीण विकास संभव
स्कूली छात्रों को जीवन में नैतिक शिक्षा का महत्व बताया
जैसलमेर .बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए भौतिक शिक्षा के साथ- साथ नैतिक शिक्षा की भी आवश्यकता है। नैतिक शिक्षा से ही सर्वांगीण विकास संभव है। यह उद्गार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंटआबू से आए राजयोगी भगवान भाई ने रामावि सुथार पाड़ा के विद्यार्थियों को जीवन में नैतिक शिक्षा का महत्व विषय पर संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि शैक्षणिक जगत में विद्यार्थियों के लिए नैतिक मूल्यों को जीवन में धारण करने की प्रेरणा देना ही आज की आवश्यकता है। वर्तमान में नैतिक मूल्यों में गिरावट आई है, जो व्यक्तिगत, सामाजिक, पारिवारिक, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय समस्याओं का मूल कारण है। ज्ञान की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि जो शिक्षा विद्यार्थियों को अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, बंधनों से मुक्ति की ओर ले जाए वही सच्ची शिक्षा है। उन्होंने बताया कि समाज अमूर्त है और वह प्रेम, सद्भावना, भाईचारा, नैतिकता एवं मानवीय मूल्यों से ही संचालित होता है।

राजयोगी भगवानभाई ने कहा कि शिक्षा एक ऐसा बीज है जिससे जीवन फलदार वृक्ष बन जाता है। जब तक व्यवहारिक जीवन में सेवाभाव, परोपकार, धैर्य, त्याग, उदारता, नम्रता, सहनशीलता, सत्यता, पवित्रता आदि सद्गुण रूपी फल नहीं आते तब तक हमारी शिक्षा अधूरी है। उन्होंने कहा कि आज के बच्चे कल का भावी समाज है। अगर कल के समाज को बेहतर समाज देखना चाहते हो तो वर्तमान के छात्र- छात्राओं को नैतिक मूल्यों की शिक्षा देकर उन्हें संस्कारित करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति अच्छा या बुरा उसके अंदर के गुणों से बनता है। स्थानीय ब्रह्माकुमारी केन्द्र के बी.के. देवपुरी ने कहा कि चरित्रवान, गुणवान बच्चे देश व समाज की संपति है। प्रधानाचार्य सुरेशचंद्र पालीवाल ने कहा कि मूल्य शिक्षा से ही व्यक्ति महान बन सकता है। शारीरिक शिक्षक अमृतलाल ने कार्यक्रम का संचालन किया। इसी कड़ी में नैतिक मूल्यों पर आधारित व्याख्यान स्वामी विवेकानंद उच्च माध्यमिक विद्यालय में भी दिया गया।


जैसलमेर. रामावि सुथारपाड़ा में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते प्रजापति ब्रह्माकुमारी के प्रतिनिधि।
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Thursday 2 February 2012

शिव नाम का अर्थ कल्याणकारी से ही प्रतीत होता है| शिव उसी को बताया जा सकता है जिसमें सृष्टि के संपूर्ण ज्ञान को समाया जा सकता है| १) ज्योतिबिंदू स्वरूप परमात्मा शिवः परमात्मा का वास्तविक स्वरूप ज्योति बिंदू का ही है| इस स्वरूप द्वारा परमात्मा शिव मानव के शरीर में प्रवेश करते हैं और अपने कल्याणकारी ज्ञान द्वारा सृष्टि परिवर्तन का कार्य करते हैं| समय अनुसार परमात्मा शिव ने इसी स्वरूप द्वारा पृथ्वी के मानव को ज्ञान के सागर में नहलाया है जिस ज्ञान को मानव ने धर्म के रूप में आपस में बांटा है और सतयुग से कलयुग तक पृथ्वी पर मानव ने अनेका अनेक धर्मों की स्थापना भी कर ली है|



शिव नाम का अर्थ कल्याणकारी से ही प्रतीत होता है| शिव उसी को बताया जा सकता है जिसमें सृष्टि के संपूर्ण ज्ञान को समाया जा सकता है| १) ज्योतिबिंदू स्वरूप परमात्मा शिवः परमात्मा का वास्तविक स्वरूप ज्योति बिंदू का ही है| इस स्वरूप द्वारा परमात्मा शिव मानव के शरीर में प्रवेश करते हैं और अपने कल्याणकारी ज्ञान द्वारा सृष्टि परिवर्तन का कार्य करते हैं| समय अनुसार परमात्मा शिव ने इसी स्वरूप द्वारा पृथ्वी के मानव को ज्ञान के सागर में नहलाया है जिस ज्ञान को मानव ने धर्म के रूप में आपस में बांटा है और सतयुग से कलयुग तक पृथ्वी पर मानव ने अनेका अनेक धर्मों की स्थापना भी कर ली है|

शिव नाम का अर्थ कल्याणकारी से ही प्रतीत होता है| शिव उसी को बताया जा सकता है जिसमें सृष्टि के संपूर्ण ज्ञान को समाया जा सकता है|

१) ज्योतिबिंदू स्वरूप परमात्मा शिवः
परमात्मा का वास्तविक स्वरूप ज्योति बिंदू का ही है| इस स्वरूप द्वारा परमात्मा शिव मानव के शरीर में प्रवेश करते हैं और अपने कल्याणकारी ज्ञान द्वारा सृष्टि परिवर्तन का कार्य करते हैं| समय अनुसार परमात्मा शिव ने इसी स्वरूप द्वारा पृथ्वी के मानव को ज्ञान के सागर में नहलाया है जिस ज्ञान को मानव ने धर्म के रूप में आपस में बांटा है और सतयुग से कलयुग तक पृथ्वी पर मानव ने अनेका अनेक धर्मों की स्थापना भी कर ली है|

ईश्वर की प्राप्ति के लिए परमपिता शिव परमात्मा का सही परिचय होना जरूरी है। इसके बिना लक्ष्य तक पहुंचना असंभव है। परमपिता शिव परमात्मा का परिचय देते हुए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय सत्संग में बैठने से ईश्वरीय ज्ञान नहीं हो सकता। ईश्वरीय पढ़ाई से ही भगवान शिव का वास्तविक परिचय मिलता है मनुष्य आज सुख व शांति के लिए भटक रहा है, किन्तु इनकी प्राप्ति नहीं हो रही। इसका कारण सही रास्ते की जानकारी का अभाव बताते हुए उन्होंने परमपिता शिव परमात्मा का संदेश सुनने का आह्वान किया। अच्छे संस्कारों का जिक्र करते हुए कहा कि दूसरों को परेशान करके कोई भी व्यक्ति स्वयं प्रसन्न नहीं रह सकता। इस मौके पर संजीव ने प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय का परिचय प्रस्तुत किया जबकि रामेश्वर ने परमात्मा के अवतरण पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम की शुरूआत दीप प्रज्ज्वलित करके की गई। हर्षी ने परमात्मा के ज्ञान पर आधारित गीत पर नृत्य प्रस्तुत किया। गीता पाठशाला की संचालिका खुशी ने संचालन व आभार जताया।

ईश्वर की प्राप्ति के लिए परमपिता शिव परमात्मा का सही परिचय होना जरूरी है। इसके बिना लक्ष्य तक पहुंचना असंभव है।
परमपिता शिव परमात्मा का परिचय देते हुए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय सत्संग में बैठने से ईश्वरीय ज्ञान नहीं हो सकता। ईश्वरीय पढ़ाई से ही भगवान शिव का वास्तविक परिचय मिलता है मनुष्य आज सुख व शांति के लिए भटक रहा है, किन्तु इनकी प्राप्ति नहीं हो रही। इसका कारण सही रास्ते की जानकारी का अभाव बताते हुए उन्होंने परमपिता शिव परमात्मा का संदेश सुनने का आह्वान किया।
अच्छे संस्कारों का जिक्र करते हुए कहा कि दूसरों को परेशान करके कोई भी व्यक्ति स्वयं प्रसन्न नहीं रह सकता।
इस मौके पर संजीव ने प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय का परिचय प्रस्तुत किया जबकि रामेश्वर ने परमात्मा के अवतरण पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम की शुरूआत दीप प्रज्ज्वलित करके की गई। हर्षी ने परमात्मा के ज्ञान पर आधारित गीत पर नृत्य प्रस्तुत किया। गीता पाठशाला की संचालिका खुशी ने संचालन व आभार जताया।

परमात्मा नाम से न्यारा नहीं है, उसका नाम न्यारा है। शिव परमात्मा का स्वकथित आलोकित नाम है। शिव का अर्थ है कल्याणकारी, बीज रूप, बिंदू, परमात्मा सारी सृष्टि को सद्गति दाता है इसलिए वह कल्याणकारी है। जिस प्रकार बीज किसी वृक्ष का रचयिता होता है। इसी प्रकार परमात्मा शिव भी मनुष्य सृष्टि रूपी वृक्ष का निर्मित बीज है। इसलिए उसे सदाशिव भी कहते हैं। परमात्मा शिव का कोई रचयिता नहीं है इसलिए उसे स्वयंभू अथवा शंभू भी कहते हैं। उन्होंने बताया कि परमात्मा शिव,ज्योति बिंदु स्वरूप हैं। उनका कोई शारीरिक आकार नहीं होता है इसलिए उन्हें निराकार कहा जाता है। परमात्मा और आत्माएं भिन्न-भिन्न सत्ताएं हैं। परमात्मा एक है जबकि आत्मा अनेक हैं। शिव विश्व की सर्व आत्माओं के परमपिता

परमात्मा नाम से न्यारा नहीं है, उसका नाम न्यारा है। शिव परमात्मा का स्वकथित आलोकित नाम है। शिव का अर्थ है कल्याणकारी, बीज रूप, बिंदू, परमात्मा सारी सृष्टि को सद्गति दाता है इसलिए वह कल्याणकारी है। जिस प्रकार बीज किसी वृक्ष का रचयिता होता है। इसी प्रकार परमात्मा शिव भी मनुष्य सृष्टि रूपी वृक्ष का निर्मित बीज है। इसलिए उसे सदाशिव भी कहते हैं। परमात्मा शिव का कोई रचयिता नहीं है इसलिए उसे स्वयंभू अथवा शंभू भी कहते हैं। उन्होंने बताया कि परमात्मा शिव,ज्योति बिंदु स्वरूप हैं। उनका कोई शारीरिक आकार नहीं होता है इसलिए उन्हें निराकार कहा जाता है। परमात्मा और आत्माएं भिन्न-भिन्न सत्ताएं हैं। परमात्मा एक है जबकि आत्मा अनेक हैं।

शिव विश्व की सर्व आत्माओं के परमपिता

परमात्मा नाम से न्यारा नहीं है, उसका नाम न्यारा है। शिव परमात्मा का स्वकथित आलोकित नाम है। शिव का अर्थ है कल्याणकारी, बीज रूप, बिंदू, परमात्मा सारी सृष्टि को सद्गति दाता है इसलिए वह कल्याणकारी है। जिस प्रकार बीज किसी वृक्ष का रचयिता होता है। इसी प्रकार परमात्मा शिव भी मनुष्य सृष्टि रूपी वृक्ष का निर्मित बीज है। इसलिए उसे सदाशिव भी कहते हैं। परमात्मा शिव का कोई रचयिता नहीं है इसलिए उसे स्वयंभू अथवा शंभू भी कहते हैं। उन्होंने बताया कि परमात्मा शिव,ज्योति बिंदु स्वरूप हैं। उनका कोई शारीरिक आकार नहीं होता है इसलिए उन्हें निराकार कहा जाता है। परमात्मा और आत्माएं भिन्न-भिन्न सत्ताएं हैं। परमात्मा एक है जबकि आत्मा अनेक हैं।

परमात्मा नाम से न्यारा नहीं है, उसका नाम न्यारा है। शिव परमात्मा का स्वकथित आलोकित नाम है। शिव का अर्थ है कल्याणकारी, बीज रूप, बिंदू, परमात्मा सारी सृष्टि को सद्गति दाता है इसलिए वह कल्याणकारी है। जिस प्रकार बीज किसी वृक्ष का रचयिता होता है। इसी प्रकार परमात्मा शिव भी मनुष्य सृष्टि रूपी वृक्ष का निर्मित बीज है। इसलिए उसे सदाशिव भी कहते हैं। परमात्मा शिव का कोई रचयिता नहीं है इसलिए उसे स्वयंभू अथवा शंभू भी कहते हैं। उन्होंने बताया कि परमात्मा शिव,ज्योति बिंदु स्वरूप हैं। उनका कोई शारीरिक आकार नहीं होता है इसलिए उन्हें निराकार कहा जाता है। परमात्मा और आत्माएं भिन्न-भिन्न सत्ताएं हैं। परमात्मा एक है जबकि आत्मा अनेक हैं।

शिव विश्व की सर्व आत्माओं के परमपिता