Sunday 13 November 2011

सर्व आत्माओं का पिता परमात्मा एक है और निराकार है प्राय: लोग यह नारा तो लगाते है कि " hindu, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी आपस में भाई-भाई है " परन्तु वे सभी आपस में भाई-भाई कैसे है और यदि वे भाई -भाई है तो उन सभी का एक पिता कौन है - इसे वे नही जानते देह कि दृष्टी से तो वे सभी भाई-भाई हो नही सकते क्योंकि उनके माता-पिता अलग-अलग है, आत्मिक दृष्टी से ही वे सभी एक परमपिता परमात्मा कि संतान होने के नाते से भाई-भाई है यंहा सभी आत्माओं के एक परमपिता का परिचय दिया गया है इस स्मृति में स्थित होने से राष्ट्रीय एकता हो सकती है I प्राय: सभी धर्मो के लोग कहते है कि परमात्मा एक है और सभी का पिता है और सभी मनुष्य आपस में भाई-भाई है परन्तु प्रश्न उठता है कि वह एक परलौकिक परमपिता कौन है जिसे सभी मानते है ? आप देखेंगे कि भले ही हरेक धर्म के स्थापक अलग-अलग है परन्तु हरेक धर्म के अनुयायी निराकार, ज्योति-स्वरुप परमात्मा शिव कि प्रतिमा (शिवलिंग) को किसी-न-किसी प्रकार मान्यता देते है Iभारत वर्ष में तो स्थान-स्थान पर परमपिता परमात्मा शिव के मंदिर है ही और भक्त जन "ओ३म नमो शिवाय" तथा तुम्ही हो माता तुम्ही पिता हो इत्यादि शब्दों से उनका गायन व् पूजन भी करते है और शिव को श्रीकृष्ण तथा श्री राम इत्यादि देवो के भी देव अर्थात परमपूज्य मानते ही है परन्तु भारत से बाहर, दुसरे धर्मो के लोग भी इसको मान्यता देते है I यहाँ सामने दिए चित्र में दिखाया गया है कि शिव का स्मृति चिन्ह सभी धर्मो में है I अमरनाथ, विश्वनाथ,सोमनाथ और पशुपतिनाथ इत्यादि मंदिरों में परमपिता परमात्मा शिव ही के स्मरण चिन्ह है "गोपेश्वर तथा रामेश्वर के जो मंदिर है उनसे स्पष्ट है कि शिव श्री कृष्ण तथा श्री राम के भी पूज्य है रजा विक्रमादित्य भी शिव ही कि पूजा करते थे I मुसलमानों के मुख्य तीर्थ मक्का में भी एक इसी आकार का पत्थर है जिसे कि सभी मुसलमान यात्री बड़े प्यार व सम्मान से चुमते है उसे वे "संगे-असवद" कहते है और इब्राहीम तथा मुहम्मद द्वारा उनकी स्थापना हुई मानते हैI परन्तु आज वे भी इस रहस्य को नही जानते है कि उनके धर्म में बुतपरस्ती (प्रतिमा पूजा) कि मान्यता न होते हुए भी इस आकार वाले पत्थर की स्थापना क्यों की गई है I और उनके यहाँ इसे प्यार व सम्मान से चूमने की प्रथा क्यों चली आती है ? इटली में कई रोमन कैथोलिक्स ईसाई भी इसी प्रकार वाली प्रतिमा को अपने ढंग से पूजते है ईसाइयों के धर्म स्थापक ईसा ने तथा सिक्खों के धर्म स्थापक नानकजी ने भी परमात्मा को एक निराकार ज्योति ही माना है Iयहूदी लोग तो परमात्मा को "जेहोवा" नाम से पुकारते है जो नाम शिव का ही रूपांतरण मालूम होता है जापान में भी बौद्द धर्म के कई अनुयायी इसी प्रकार की एक प्रतिमा अपने सामने रखकर उस पर अपना मन एकाग्र करते है I परन्तु समयांतर में सभी धर्मो के लोग यह मूल बात भूल गए की शिवलिंग सभी मनुष्यात्माओं के परमपिता का स्मरण-चिन्ह है यदि मुसलमान यह बात जानते होते तो वे सोमनाथ को मंदिर को कभी न लुटते , बल्कि मुसलमान ,ईसाई इत्यादि सभी शर्मो के अनुयायी भारत को ही परमपिता परमात्मा की अवतार-भूमि मानकर इसे अपना सबसे मुख्य तीर्थ मानते और इसी प्रकार संसार का इतिहास ही कुछ और होता परन्तु एक पिता को भूलने के कारण संसार में लड़ाई-झगडा, दुःख तथा क्लेश हुआ और सभी अनाथ व कंगाल बन गए I

सर्व आत्माओं का पिता परमात्मा एक है और निराकार है प्राय: लोग यह नारा तो लगाते है कि " hindu, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी आपस में भाई-भाई है " परन्तु वे सभी आपस में भाई-भाई कैसे है और यदि वे भाई -भाई है तो उन सभी का एक पिता कौन है - इसे वे नही जानते देह कि दृष्टी से तो वे सभी भाई-भाई हो नही सकते क्योंकि उनके माता-पिता अलग-अलग है, आत्मिक दृष्टी से ही वे सभी एक परमपिता परमात्मा कि संतान होने के नाते से भाई-भाई है यंहा सभी आत्माओं के एक परमपिता का परिचय दिया गया है इस स्मृति में स्थित होने से राष्ट्रीय एकता हो सकती है I प्राय: सभी धर्मो के लोग कहते है कि परमात्मा एक है और सभी का पिता है और सभी मनुष्य आपस में भाई-भाई है परन्तु प्रश्न उठता है कि वह एक परलौकिक परमपिता कौन है जिसे सभी मानते है ? आप देखेंगे कि भले ही हरेक धर्म के स्थापक अलग-अलग है परन्तु हरेक धर्म के अनुयायी निराकार, ज्योति-स्वरुप परमात्मा शिव कि प्रतिमा (शिवलिंग) को किसी-न-किसी प्रकार मान्यता देते है Iभारत वर्ष में तो स्थान-स्थान पर परमपिता परमात्मा शिव के मंदिर है ही और भक्त जन "ओ३म नमो शिवाय" तथा तुम्ही हो माता तुम्ही पिता हो इत्यादि शब्दों से उनका गायन व् पूजन भी करते है और शिव को श्रीकृष्ण तथा श्री राम इत्यादि देवो के भी देव अर्थात परमपूज्य मानते ही है परन्तु भारत से बाहर, दुसरे धर्मो के लोग भी इसको मान्यता देते है I यहाँ सामने दिए चित्र में दिखाया गया है कि शिव का स्मृति चिन्ह सभी धर्मो में है I अमरनाथ, विश्वनाथ,सोमनाथ और पशुपतिनाथ इत्यादि मंदिरों में परमपिता परमात्मा शिव ही के स्मरण चिन्ह है "गोपेश्वर तथा रामेश्वर के जो मंदिर है उनसे स्पष्ट है कि शिव श्री कृष्ण तथा श्री राम के भी पूज्य है रजा विक्रमादित्य भी शिव ही कि पूजा करते थे I मुसलमानों के मुख्य तीर्थ मक्का में भी एक इसी आकार का पत्थर है जिसे कि सभी मुसलमान यात्री बड़े प्यार व सम्मान से चुमते है उसे वे "संगे-असवद" कहते है और इब्राहीम तथा मुहम्मद द्वारा उनकी स्थापना हुई मानते हैI परन्तु आज वे भी इस रहस्य को नही जानते है कि उनके धर्म में बुतपरस्ती (प्रतिमा पूजा) कि मान्यता न होते हुए भी इस आकार वाले पत्थर की स्थापना क्यों की गई है I और उनके यहाँ इसे प्यार व सम्मान से चूमने की प्रथा क्यों चली आती है ? इटली में कई रोमन कैथोलिक्स ईसाई भी इसी प्रकार वाली प्रतिमा को अपने ढंग से पूजते है ईसाइयों के धर्म स्थापक ईसा ने तथा सिक्खों के धर्म स्थापक नानकजी ने भी परमात्मा को एक निराकार ज्योति ही माना है Iयहूदी लोग तो परमात्मा को "जेहोवा" नाम से पुकारते है जो नाम शिव का ही रूपांतरण मालूम होता है जापान में भी बौद्द धर्म के कई अनुयायी इसी प्रकार की एक प्रतिमा अपने सामने रखकर उस पर अपना मन एकाग्र करते है I परन्तु समयांतर में सभी धर्मो के लोग यह मूल बात भूल गए की शिवलिंग सभी मनुष्यात्माओं के परमपिता का स्मरण-चिन्ह है यदि मुसलमान यह बात जानते होते तो वे सोमनाथ को मंदिर को कभी न लुटते , बल्कि मुसलमान ,ईसाई इत्यादि सभी शर्मो के अनुयायी भारत को ही परमपिता परमात्मा की अवतार-भूमि मानकर इसे अपना सबसे मुख्य तीर्थ मानते और इसी प्रकार संसार का इतिहास ही कुछ और होता परन्तु एक पिता को भूलने के कारण संसार में लड़ाई-झगडा, दुःख तथा क्लेश हुआ और सभी अनाथ व कंगाल बन गए I


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