Monday, 2 September 2019

नैतिक शिक्षा का जीवन में महत्व ---ब्रह्माकुमार भगवान भाई माउंट आबू

      " विदर्भ रत्त्न " अवार्ड से ब्रह्माकुमार भगवान भाई सम्मानित         

आबू रोड --प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय शान्तिवन के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवान भाई को सनारईज पीस मिशन की ओर से " विदर्भ रत्त्न " 2012 से सम्मानित किया i यह अवार्ड उनको भारत के विभिन्न राज्यों के 5000 से अधिक स्कूल में हजारो बच्चो को मुल्यनिष्ट शिक्षा के जरिये नैतिक और आध्यात्मिक विकास के लिय लगातार पढाये जाने पर तथा जेलों में हजारो कैदियो को अपराध को छोड़ अपने जीवन में सदभावना ,मूल्य तथा मानवता को बढ़ावा देने के जरिये सन्देश देने के अथक प्रयास हेतु दिया गया i
                   नागपुर के गुलमोहर हॉल में सनारईज पीस मिशन के संस्थापक व अध्यक्ष  डॉ हरगोविंद मुरारक यह अवार्ड ने दिया i इस अवसर पर उन्ह्नोने कहा की ऐसे प्रयास से लोगो के जीवन में एक उर्जा का संचार होगा तथा लोगो में सदभावना को बढ़ावा मिलेगा i उह्नोने बताया की बीके भगवान भाई पिछले कई सालों में अथक प्रयास से देश के विभिन्न हिस्सों में जाकर हजारों स्कूलों में बच्चों तथा जेलों में कैदियों में मानवता का बीज बोने का अथक प्रयास करते रहे है जिससे यह सफलता मिली है।
                 ब्रह्माकुमार भगवान् भाई ने अपना अनुभव बताते हुए खा की 30 वर्ष पहले नागपुर के स्थानीय ब्रह्मकुमारिज सेवाकेन्द्र द्वारा पत्राचार पाठ्यक्रम से राजयोग सिखा था i जिससे मनोबल व आत्मबल बढ़ा जिसका परिणाम आज भारत के विभिन्न राज्यों में युवावो और कैदी बंधुओ में सकारत्मक परिवर्तन लाने का प्रयास क्र रहे है i आज का युवा कल का समाज है कल के समाज को परिवर्तन करना चाहते हो तो वर्तमान के युवाओ को नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा से सशक्त बनाने की आवश्यता है i स्कूल से समाज के हर एक जगह व्यकित जाता है i
                 अंत में  बी के नीलिमा ने धन्यवाद व्यक्त किया i

     " विदर्भ रत्त्न " अवार्ड से ब्रह्माकुमार भगवान भाई सम्मानित
वर्तमान समय समस्याओं का युग है इस युग में अपने आप को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। बिसानी पाड़ा स्थित राजयोग केन्द्र में तनाव मुक्ति पर आयोजित गोष्ठी को संबोधित करते हुए माउंट आबू से आए भगवान भाई ने कहा कि 19वीं सदी तर्क की थी, 20 सदी प्रगति की रही तथा 21वी सदी तनावपूर्ण रहेगी। तनावपूर्ण परिस्थितियों में स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि विपरित परिस्थितियों में हर समस्या में, हर बात को सकारात्मक सोचने की कला जीवन को सुखी बनाती है। नकारात्मक सोच अनेक बीमारियों एवं समस्याओं की जड़ है। वर्तमान परिवेश में सहन शक्ति की आवश्यकता है। महान पुरूषों ने सहनशक्ति के आधार पर ही महानता प्राप्त की है। गीता का उदाहरण देते हुए कहा कि जीवन में हर घटना कल्याणकारी है, जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो होगा वह भी अच्छा होगा। जो व्यक्ति दूसरो के बारे में सोचता है, दूसरो को देखता है वह कभी भी सुखी नहीं रह सकता। कोई हमारे साथ गलत व्यवहार करता है तो इसका मतलब हमने भी उसके साथ गलत व्यवहार किया होगा। आध्यात्मिक सत्संग को सकारात्मक सोच का केन्द्र बताते हुए कहा कि सत्संग के माध्यम से ही हम सकारात्मक सोच अपना सकते है। ब्रह्माकुमारी रेखा ने राजयोग का महत्व बताते हुए कहा कि राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रखकर तनाव मुक्त रह सकते है। राजयोग की विधि बताते हुए कहा कि स्वयं को आत्मा निश्चय कर चांद, सूर्

वर्तमान समय समस्याओं का युग है इस युग में अपने आप को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। बिसानी पाड़ा स्थित राजयोग केन्द्र में तनाव मुक्ति पर आयोजित गोष्ठी को संबोधित करते हुए माउंट आबू से आए भगवान भाई ने कहा कि 19वीं सदी तर्क की थी, 20 सदी प्रगति की रही तथा 21वी सदी तनावपूर्ण रहेगी। तनावपूर्ण परिस्थितियों में स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि विपरित परिस्थितियों में हर समस्या में, हर बात को सकारात्मक सोचने की कला जीवन को सुखी बनाती है। नकारात्मक सोच अनेक बीमारियों एवं समस्याओं की जड़ है। वर्तमान परिवेश में सहन शक्ति की आवश्यकता है। महान पुरूषों ने सहनशक्ति के आधार पर ही महानता प्राप्त की है। गीता का उदाहरण देते हुए कहा कि जीवन में हर घटना कल्याणकारी है, जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो होगा वह भी अच्छा होगा। जो व्यक्ति दूसरो के बारे में सोचता है, दूसरो को देखता है वह कभी भी सुखी नहीं रह सकता। कोई हमारे साथ गलत व्यवहार करता है तो इसका मतलब हमने भी उसके साथ गलत व्यवहार किया होगा। आध्यात्मिक सत्संग को सकारात्मक सोच का केन्द्र बताते हुए कहा कि सत्संग के माध्यम से ही हम सकारात्मक सोच अपना सकते है। ब्रह्माकुमारी रेखा ने राजयोग का महत्व बताते हुए कहा कि राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रखकर तनाव मुक्त रह सकते है। राजयोग की विधि बताते हुए कहा कि स्वयं को आत्मा निश्चय कर चांद, सूर्

राजयोग के नियमित अभ्यास से ही मन की स्थिरता संभव है। यह बात प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू से आए भगवान भाई ने महावीर नगर स्थित केंद्र में 'राजयोग का जीवन में महत्व' विषय पर कहे। उन्होंने कहा कि जीवन में शांति, स्थिरता और खुशी के लिए जीवन में स्थिरता, स्वस्थ जीवन शैली, सकारात्मक चिंतन, साक्षी दृष्टा और आत्मा निर्भयता की आवश्यकता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार इन विकारों पर विजय प्राप्त करने की शक्ति राजयोग से प्राप्त होती है। राजयोग हमें सकारात्मक चिंतन करने की कला सिखाता है। उन्होंने कहा कि राजयोग से हम अपने शरीर को वश में कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि सकारात्मक सोच से ही शरीर की बीमारियों से मुक्ति पाना संभव है। स्थानीय ब्रह्मकुमारी राजयोग सेवा केंद्र की बबीता बहन ने कहा कि राजयोग के निरंतर अभ्यास से हम अपने कर्मेंद्रियों को संयमित कर सकते हैं। -- क्रोधमुक्त जीवन विषय पर मुख्य वक्ता तौर बोल रहे थे। प्रजापिता ब्रह्मïकुमारी ईश्वरीय विवि द्वारा 7 दिवसीय योग शिविर जारी है। उन्होंने कहा कि राजयोग शिविर राजयोग स्वयं का परमात्मा से संबंध का नाम है। मन और बुद्धि का आध्यात्मिक अनुशासन राजयोग है। यह विचारों के आवेग व संवेग का मार्गान्तरीकरण कर उनके शुद्धिकरण की प्रक्रिया है। राजयोग व्यक्ति के संस्कार शुुद्ध बनाने और चरित्रिक उत्थान द्वारा शारीरिक एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य लाभ का नाम है। इसके साथ ही यह जीवन की विपरीत एवं व्यस्त परिस्थितियों में संयम बनाए रखने की कला है। आध्यात्मिकता का अर्थ स्वयं को जानना है। प्र्रेम छोटा सा शब्द है, पर जीवन में इसका बड़ा महत्व है। साधन बढ़ रहे हैं, लेकिन जीवन का मूल्य कम होता जा रहा है। उन्होंंने कहा कि सभी को भगवान से प्रेम है। परमात्मा सूर्य के समान है। उनसे निकलने वाली प्रेम रूपी किरणें सभी पर समान रूप से पड़ती है। उन्होंने कहा कि शांति हमारे अंदर है, इसे जानने के साथ ही महसूस करने की भी जरूरत है। भगवान कभी किसी को दुख नहीं देता बल्कि रास्ता दिखता हैे। काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार के त्याग से ही भगवान के दर्शन होते हैं। राजयोग के अभ्यास से उनके जीवन में हुए सकारात्मक परिवर्तन को साझा किए। उन्होंने कहा कि सहज राजयोग ही आत्मा-परमात्मा के मंगल मिलन का एक सरल उपाय है। इसी राजयोग ज्ञान एवं ध्यान के नियमित अभ्यास से मनुष्य अपने आंतरिक ज्ञान, आनंद एवं सुख शांति को उजागर कर सकता है। इससे वह संसारी जीवन में दुख, कष्ट व समस्याओं के समय अपने आत्मबल एवं आत्मविश्वास के आधार पर संतुलन कायम रख सकता है और जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है।
उन्होंने कहा कि मानव जीवन की सार्थकता व सफलता के लिए सत्संग आवश्यक है। सत्संग को पाकर जीवन मंगलमय बन जाता है, जबकि कुसंगति से जीवन नरकमय हो जाता है। मनुष्य को सदासत्संग अच्छे संस्कारों से मिलता है। संस्कार भी वही सार्थक होते हैं, जो महापुरुषों के दर्शन कराएं। संतों की संगति से ही जन्म-मरण के कष्टों से मुक्ति मिलती है। परोपकारी भावना से कार्य करना चाहिए, इसका फल स्वयं भगवान देते हैं।
उन्होंने कहा कि क्रोध से तनाव और तनाव से अनेक बीमारियां पैदा होती हैं। क्रोध के कारण ही मन की एकाग्रता खत्म होती है। इस कारण मन अशांत बन जाता है। उन्होंने क्रोध को अग्नि बताते हुए कहा कि इस अग्नि में स्वयं भी जलते हैं और दूसरों को भी जला क्रोध विवेक को नष्ट करता है। क्रोध का प्रारंभ मूर्खता से आरंभ होकर पश्चाताप में जाकर समाप्त होता है। क्या हो उपाय
उन्होंने क्रोध पर काबू पाने का उपाय बताते हुए कहा कि राजयोग के अभ्यास से क्रोध पर काबू पाया जा सकता है। इसके लिए निश्चय कर परमपिता परमात्मा को मन बुद्धि के द्वारा याद करना, उनके गुणगान करना ही राजयोग है। -- स्वर्णिम प्रभात का आगाज़ हैं, 'शिवरात्रि का पर्व' भारत तथा पूरे विश्व में मनाये जाने वाले पर्व, अतीत में हुई ईश्वरीय और दैवीय महान घटनाओं के यादगार हैं |
  भारत तथा पूरे विश्व में मनाये जाने वाले पर्व, अतीत में हुई ईश्वरीय
और दैवीय महान घटनाओं के यादगार हैं | सभी पर्वो के अपने-अपने महत्त्व हैं, परन्तु कुछ इसे महापर्व होते हैं जो सृष्टि तथा मानव जीवन को नयी सुबह और स्वर्णिम अवसर प्रदान करते हैं | इन पर्वो में में महाशिवरात्रि का पर्व सर्वश्रेष्ठ हैं | यह महापर्व आत्मा और परमात्मा के मिलन का सुखद संयोग, रात्रि से निकल प्रकाश में जाने तथा अज्ञानता से परिवर्तन होकर सुजानता की नयी सुबह की दुनिया का आगमन होता हैं | सर्वआत्माओं के परमपिता परमात्मा शिव की महिमा अपरम्पार हैं | परन्तु मानव जगत में इनके नामे में रात्रि शब्द जुदा होता हैं | सर्व मनुष्यात्माओं को अज्ञानता की रात्रि से निकाल सोझ्रे की दुनिया मीन ले जाने वाले पापकटेश्वर, मुक्तेश्वर, भगवान् शिव के नामे में लग रात्रि का गहरा अर्थ है | वैसे भी रात्रि का अर्थ केवल २४ घंटे में आने वाली रात्रि ही नहीं बल्कि पूरे सृष्टि चक्र में आधा कल्प तक आयी अज्ञानता की रात्रि का भी द्योतक हैं | प्रतिदिन आने वाली रात तो मनुष्य के तन और मन को शांति प्रदान करती हैं, जिसमे मनुष्य अपनी थकान और भौतिक शारीर को आराम देता हैं | परन्तु मनुष्य के मन और विचारों में आई अज्ञानता की रात्रि से आत्मा को तभी आराम और सुख चैन प्राप्त होता हैं, जब मुक्ति दाता परमात्मा की शक्ति से अज्ञान अन्धकार दूर होता हैं | देवो के देव महादेव परमात्मा शिव की महिमा कशी से काबा तक विभिन्न रूपों में गाई और पूजी जाती हैं शिवलिंग के रूप में परात्मा की यादगार पूरे विश्व में पूजी जाती हैं | अनेक धर्मो और पंथो में भी निराकार परमात्मा शिव विविध रूपों में स्वीकार्य हैं अज्ञानता की रात्रि ने मनुष्य को परमात्मा के वास्तविक सच्चाई से दूर कर दिया हैं, इसलिए तो मुक्तिदाता को अज्ञानता की रात्रि में आने की आवश्यकता होती हैं | वास्तव में अज्ञानता की रात्रि ऐसी रात्रि होती हैं जिसमे मनुष्य रिश्ते, नाते, अलौकिकता को भूल जाता हैं, और मानवीय मूल्यों को तिलांजलि दे देता हैं | पूरी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ समझे जाने वाले मनुष्य रूप में मानव नहीं बल्कि दानवी रूप धारण कर लिया हैं | अज्ञानता की रात्रि की वजह से सर्व मनुष्यों के अन्दर आसुरीयता घर कर जाती हैं | फिर पूरी दुनिया में अत्याचार, भ्रष्टाचार, पापाचार, बलात्कार, हिंसा आदि का राज्य हो जाता हैं | दैवी गुणों की जगह मनुष्य आसुरी वृत्तियों से भरा काम, क्रोध, लोभ, मोह,अंहकार की सीढियों पर चढ़ भौतिक सत्ता के बल संसार में तबाही मचाना अपना कर्त्तव्य समझता हैं | यह घोर अज्ञानता की रात्रि का द्योतक नहीं तो और क्या हैं? यह एसा वक्त हैं जब मनुष्यों की आस्था और विश्वास के सर्वोच्च स्थान मंदिर, मस्जिद और अन्य पवित्र स्थानों ज्पर अन्याय, हिंसा, अत्याचार और लूटपाट करने से भी लोग नहीं हिचकते हैं | इस घोर अज्ञानता की रात्रि में दानवी प्रवृत्तिया मानवता को कुचल देती हैं | ऐसा चिन्ह पूरी सृष्टि के बदलने का संकेत होता हैं समयानुसार इस सृष्टि का परिवर्तन होना ईश्वरीय संविधान का अटल सत्य नियम हैं | चारो युगों से बनी इस सृष्टि का कलियुग, सृष्टि चक्र की अंतिम अवस्था होती हैं | इस घोर अज्ञानता की रात्रि वाले समय कलियुग के आदि और सतयुग के प्रारंभ में सृष्टि के जगत नियंता, सर आत्माओं के पिता विश्व कल्याणकारी परमपिता परमात्मा शिव का अवतरण होता हैं | बूढे नंदी बैल अर्थात मनुष्य के साधारण तन का आधार लेकर इस पूरी दुनिया का महान परिवर्तन करने का महान कार्य करते हैं | अज्ञानता की रात्रि को मिटाकर आध्यात्मिक ज्ञान और आध्यात्मिक शक्ति से स्वर्णिम दुनिया की स्थापना का महान कार्य करते हैं | इसी का यादगार शिवरात्रि का पर्व मनाया जाता हैं | फाल्गुन मास के अंत में मनाये जाने वाला शिवरात्रि का पर्व नयी सुबह लेकर आता है | इस पर्व का समय के हिसाब से विशलेषण करें तो भारतीय महीने के अनुसार यह वर्ष का अंतिम महिना होता है इसके बाद प्रकति के तत्व भी अपना कलेवर बदल कर सुखदायी हो जाते है | जिसे बसंत ऋतू कहते है | यह सभी ऋतुओं में सबसे सुन्दर और सुखदायी ऋतू होती है | पेड़ पोधे भी अपनी पुरानी पत्त्तियों को छोड़ नयी पत्तियां धारण कर लेते है | धरती भी अपने गर्भ से सुगन्धित पुष्पों को जन्म देकर चारो तरफ खुशहाली और सदभावना का संसेश देती है | भगवान शिव जब अज्ञानता की रात्रि अर्थात कलियुग को बदलकर सतयुग की महिमा का द्योतक है बसंत ऋतू | परमात्मा का स्वरुप और उनकी यादगार : प्रसिद्ध धर्म ग्रंथो , मंदिरों , शिवालयों में शिवलिंग की प्रतिमा का ही अधिकाधिक वर्णन है | शिवलिंग की प्रतिमा प्रायः कालिमा लिए होती है | शिव का अर्थं कल्याणकारी तथा लिंग का अर्थ चिन्ह होता है | अर्थात कल्याणकारी परमात्मा शिव अज्ञानता की रात्रि में अवतरित होकर सभी मनुष्यात्माओ का कल्याण करते है | शिवलिंग पर बनी तीन लाइन तथा बीच में लाल बिंदु का चिन्ह परमात्मा के दिव्य रूप का प्रतीक है तीन लाइन अर्थात ब्रह द्वारा स्थापना , विष्णु द्वारा स्रष्टि की पालना तथा शंकर द्वरा महाविनाश को रेखांकित करती है | इसके बीच में बने रूप अर्थात इन देवो के भी देव परमात्मा शिव का रूप निराकार ज्योतिबिंदु स्वरुप हैं | इसकी महिमा आदि काल से लेकर अब तक सर्वाधिक मान्य और पूज्यनीय हैं | स्वर्णिम प्रभात की आगाज़ की बेला : प्रत्येक मनुष्य को यह समझ लेना चाहिय की यह वक्त बदलाव का हिन् | पुराणी दुनिया की अंत तथा स्वर्णिम प्रभात की आगाज़ का शुभ संकेत हैं | अत्याचार के समाप्त होने तथा सदाचार की स्थापना की पहल का हैं | यह सर्व विदित हैं कि जब किसी भी चीज की अति हो जाती हैं तो उसका ईश्वरीय अंत ईश्वरीय नियम हैं | आज समाज की और पूरी दुनिया की स्थिति भी इसे ही संकेत का प्रबल उदाहरण हैं | पोरी मानवता इस दुनिय्क से मिट चुकी हैं | आणविक हथियारों के ढेर पर सोयी इस दुनिया की अंतिम श्वांस हैं | प्रकृति के पांचो तत्वों ने भी मनुष्य को सुख देने की असमर्थता जाहिर कर दी हैं | जिससे ग्लोबल वार्मिंग, बाढ़,सुखा आदि परिवर्तन का प्रबल संकेत हैं इस परिवर्तन की अंतिम बेला में स्वयं परमपिता परमात्मा शिव इस सृष्टि पर अवतरित होकर प्रजापिता ब्रिम्हा के तन का आधार लेकर नयी दुनिया के पुनर्निमाण का महान कार्य कर रहे हैं | पूरे भारत तथा विश्व भर में मनाये जाने वाले महाशिवरात्रि के इस महान पर्व पर गुप्तरूप में महापरिवर्तन का कार्य करा रहे परमपिता परमात्मा शिव को पहचान 'शिवरात्रि पर्व' अपने बुराइयों को स्वाहा कर दैवी गुणधारी बन नयी दुनिया की स्थापना के महान कार्य सहयोगी बने | यही परमात्मा का सर्व आत्माओं के प्रति शुभ संकेत हैं | जैसलमेर .बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए भौतिक शिक्षा के साथ- साथ नैतिक शिक्षा की भी आवश्यकता है। नैतिक शिक्षा से ही सर्वांगीण विकास संभव है। यह उद्गार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंटआबू से आए राजयोगी भगवान भाई ने रामावि सुथार पाड़ा के विद्यार्थियों को जीवन में नैतिक शिक्षा का महत्व विषय पर संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि शैक्षणिक जगत में विद्यार्थियों के लिए नैतिक मूल्यों को जीवन में धारण करने की प्रेरणा देना ही आज की आवश्यकता है। वर्तमान में नैतिक मूल्यों में गिरावट आई है, जो व्यक्तिगत, सामाजिक, पारिवारिक, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय समस्याओं का मूल कारण है। ज्ञान की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि जो शिक्षा विद्यार्थियों को अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, बंधनों से मुक्ति की ओर ले जाए वही सच्ची शिक्षा है। उन्होंने बताया कि समाज अमूर्त है और वह प्रेम, सद्भावना, भाईचारा, नैतिकता एवं मानवीय मूल्यों से ही संचालित होता है। राजयोगी भगवानभाई ने कहा कि शिक्षा एक ऐसा बीज है जिससे जीवन फलदार वृक्ष बन जाता है। जब तक व्यवहारिक जीवन में सेवाभाव, परोपकार, धैर्य, त्याग, उदारता, नम्रता, सहनशीलता, सत्यता, पवित्रता आदि सद्गुण रूपी फल नहीं आते तब तक हमारी शिक्षा अधूरी है। उन्होंने कहा कि आज के बच्चे कल का भावी समाज है। अगर कल के समाज को बेहतर समाज देखना चाहते हो तो वर्तमान के छात्र- छात्राओं को नैतिक मूल्यों की शिक्षा देकर उन्हें संस्कारित करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति अच्छा या बुरा उसके अंदर के गुणों से बनता है। स्थानीय ब्रह्माकुमारी केन्द्र के बी.के. देवपुरी ने कहा कि चरित्रवान, गुणवान बच्चे देश व समाज की संपति है। प्रधानाचार्य सुरेशचंद्र पालीवाल ने कहा कि मूल्य शिक्षा से ही व्यक्ति महान बन सकता है। शारीरिक शिक्षक अमृतलाल ने कार्यक्रम का संचालन किया। इसी कड़ी में नैतिक मूल्यों पर आधारित व्याख्यान स्वामी विवेकानंद उच्च माध्यमिक विद्यालय में भी दिया गया। न्यूज बाड़मेर परमपिता परमात्मा शिव धरती पर आ चुके हैं। यह बात ब्रह्मकुमार भगवान भाई ने कही। वे ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के रविवार को आयोजित एक धार्मिक कार्यक्रम में सेवा केंद्र में कही उन्होंने कहा मानो या न मानो, यह सत्य हे भगवान 'शिव' विश्व परिवर्तन हेतु धरती पर अवतरित हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि यदि आप भगवान से मिलना चाहते हैं उससे प्राप्तियां करना चाहते हैं तो आपकी यह इच्छा पूरी हो सकती है, परंतु अभी समय बहुत कम बचा है। ऐसा न हो भगवान चले जाएं और आप उनसे मिलने से वंचित रह जाएं। इसलिए समय को पहचान कर परमात्मा से मिलने का सुख आप ले सकते हैं। अभी नहीं तो कभी नहीं।
    उन्होंने बताया कि जब-जब धरती पर पाप, अधर्म, भ्रष्टाचार बढ़ता है परमात्मा धरती पर आकर पाप का नाश करते हैं। सच्ची सुख-शांति की दुनिया ब्रह्मा द्वारा रचते हैं। जब नई सृष्टि की रचना पूरी हो जाती है पुरानी सृष्टि का विनाश करते हैं। अब विनाश का समय अति निकट है। उन्होंने कलयुग की समाप्ति की छह निशानियां बता कर सिद्ध किया कि विनाश का समय शीघ्र आने वाला है। उन्होंने कहा कि अभी बचे हुए समय में प्रभु से मुक्ति जीवन मुक्ति व सुख शांति का वरसा ले लो। अभी नहीं तो कभी नहीं। उन्होंने कहा जब हम अपने मूल स्वरूप को भूल जाते हैं
मनुष्य के ८४ जन्मो की अदभुत कहानी मनुष्यात्मा सारे कल्प में अधिक से अधि कुल ८४ जन्म लेती है, वह ८४ लाख योनियों में पुनर्जन्म नहीं लेती है मनुष्यात्माओ के ८४ जन्मो के चक्र को ही यहाँ ८४ सीडियों के रूप में चित्रित किया गया है I चूँकि प्रजापिता ब्रह्मा और जगदम्बा सरस्वती मनुष्य समाज के अदि-पिता और अदि-माता है, इसलिए उनके ८४ जन्मो का सन्क्शिओत उल्लेख करने से अन्य म्नुश्यात्माओ का भी उनके अंतर्गत आ जायेगा हम यह तो बता आये है कि ब्रह्मा और सरस्वती संगम युग में परमपिता शिव के ज्ञान और योग द्वारा आरंभ में श्री नारायण और श्री लक्ष्मी पद पाते है सतयुग और त्रेतायुग में २१ जन्म पूज्य देव पद : अब चित्र में दिखलाया गया है कि सतयुग के १२५० वेर्शो में श्रीलक्ष्मी, श्रीनारायण १०० प्रतिशत सुख शांति संपन्न ८ जन्म लेते है इसलिए भारत में ८ की संख्या शुभ मानी गयी है और कई लोग केवल ८ मनको की माला सिमरते है तथा अष्ट देवताओ का पूजन भी करते है पूज्य स्थिति वाले इन ८ नारायणी जन्मो को यहाँ ८ सीडियो के रूप में चित्रित किया गया है फिर त्रेतायुग के १२५० वर्षो में १४ कला सम्पूर्ण सीता और रामचंद्र के वंश में पूज्य रजा-रानी अथवा उच्च प्रजा के रूप में कुल १२ या १३ जन्म लेते है इस प्रकार सतयुग और त्रेतायुग के २५०० वर्षो में सम्पूर्ण पवित्रता, सुख, शांति और स्वास्थ्य संपन्न २१ दैवी जन्म लेते है इसलिए ही प्रसिद्द है की ज्ञान द्वारा मनुष्य २१ जन्म अथवा २१ पीडिया सुधर जाती है अथवा मनुष्य २१ पीड़ियो के लिए तर जाता है I द्वापर और कलियुग में कुल ६३ जन्म जीवन-बद्ध : फिर सुख की प्रारब्ध समाप्त होने के बाद, वे द्वापर के आरम्भ में पुजारी स्थिति को प्राप्त होते है सबसे पहले तो निराकार परमपिता परमातम शिव को हीरे की प्रतिमा बनाकर अनन्य भावना से उसकी पूजा करते है यहाँ चित्र में उन्हें एक पुजारी राजा के रूप में शिव-पूजा करते दिखाया गया है I धीरे-धीरे वे सूक्ष्म देवताओ, अर्थात विष्णु तथा शंकर की भी पूजा शुरू करते है बाद में अज्यनता तथा आत्म-विस्मृति के कारण वे अपने ही पहले वाले श्री नारायण तथा श्री लक्ष्मी रूप की भी पूजा शुरू कर देते है I इसलिए, कहावत प्रसिद्द है कि "जो स्वयं कभी पूज्य थे, बाद में वे अपने- आप ही के पुजारी बन गए श्री लक्ष्मी और श्री नारायण कि आत्माओं ने स्वपर्युग के १२५० वर्षो में इसी पुजारी स्थिति में भिन्न-भिन्न नाम-रूप से, वैश्य-वंशी भक्त-शिरोमणि राजा,रानी अथवा सुखी प्रजा के रूप में कुल २१ जन्म लिए I इसके बाद कलियुग का आरम्भ हुआ अब तो सूक्ष्म लोक तथा साकार लोक के देवी-देवताओ कि पूजा इत्यादि के अतिरिक्त तत्व पूजा भी शुरू हो गई इस प्रकार, भक्ति भी व्यभिचारी हो गई यह अवस्था सृष्टि की तमोप्रधन अथवा शुद्र अवस्था थी इस काल में काम, क्रोध,मोह,लोभ और अहंकार उग्र - रूप धारण करते चले गए कलियुग के अंत में उन्होंने तथा उनके वंश के दुसरे लोगो ने कुल ४२ जन्म लिए I उपर्युक्त से स्पष्ट है की कुल ५००० वर्षो में उनकी आत्मा पूज्य और पुजारी अवस्था में कुल ८४ जन्म लेती है अब वह पुराणी, पतित दुनिया में ८३ जन्म ले चुकी है I अब उनके अंतिम अर्थात ८४वे जन्म की वानप्रस्थ अवस्था में, परमपिता परमपिता शिव ने उनका नाम "प्रजापिता ब्रह्मा" तथा उनकी मुख -वंशी कन्या का नाम "जगदम्बा सरस्वती" रखा है इस प्रकार, देवता-वंश की अन्य आत्माए भी ५००० वर्ष में अधिकाधिक ८४ जन्म लेती है I इसलिए भारत में जन्म-मरण के चक्र को " चौरासी का चक्कर" भी कहते है और कई देवियों के मन्दिरों में ८४ घंटे भी लगे होते है तथा उन्हें " ८४ घंटे वाली देवी" नाम से लोग याद करते है


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