योग में बैठते है तो विचार बहुत आते है। मन को शांत व बुद्धि को स्थिर कैसे किया जाये ?
जब हम योग करने बैठते है तो इस प्रक्रिया में हमारे विकर्म नष्ट होते है, जो माया रावण को नही सुहाता। क्योंकि हम माया रावण के 63 जन्मो के आसामी जो है। इसलिए माया रावण मन की संकल्पो की गति को अत्यंत तीव्र कर देती है। इसे आप ऐसे भी समझ सकते है कि हमारे पाप इतना भारी है, जो हमारी मन को एकाग्र नही होने देते। पर इसे एकाग्र करने की मेहनत तो हमें।ही करनी है ना। इसलिए ही तो मीठे बाबा ने अनेको अनेक मुरलियों में स्पष्ट बताया हुआ है कि ज्ञान तो सहज है, योग में ही मेहनत है। इसलिए शुरुआत में मन को एकाग्र करने की मेहनत तो हमे ही करनी पड़ेगी ना।
धयान दे , आत्मा की तीन मुख्य सूक्ष्म शक्तियां है - मन , बुद्धि और संस्कार। मन का कार्य है सतत संकल्पो वा विचार का निर्माण करना। बुद्धि का कार्य है निगेटिव, व्यर्थ और पॉजिटिव संकल्प को अलग अलग करना। और बुद्धि के जजमेंट को एक्सेप्ट करके या aside करके जो कर्म हम दो-चार बार कर लेते है, वो हमारे संस्कार बन जाते है।
इसलिए विचार वा संकल्प का काम तो है ही आना। पर हमारा अर्थात आत्मा की शक्ति बुद्धि का काम है यथार्थ निर्णय द्वारा सही संकल्प को क्रियान्वित करना और गलत संकल्प वा विचार को समाप्त करना।
अब गलत वा अयथार्थ संकल्प वा विचार को कैसे समाप्त करे ? कहते है खाली बुद्धि शैतान का घर है। तो बस बुद्धि को खाली ना रहने दे। और इसकी सहज विधि है - ज्ञान का चिंतन, परमात्म चिंतन, ड्रिल, ट्रैफिक कंट्रोल आदि द्वारा। ... ड्रामा रिपीट हो रहा है, नथिंग न्यू, ड्रामा और संगम कल्याणकारी युग है आदि आदि, ये ज्ञान के चिंतन के पॉइंट है। परमात्मा से योग लगा रहेगा तो माया को पास आने का चांस नही मिलेगा। ड्रिल द्वारा भी विचार वा संकल्प की दिशा को परिवर्तित कर सकते है। ट्रैफिक कंट्रोल मन को 1 सेकंड में एकाग्र करने में सहायक है।
जब मन बहुत भटके तो मन को कहे कि हे मन अब ठहर जा। 63 जन्म हमने तुम्हारे कहने अनुसार किया, लेकिन अब तू मेरे अनुसार कर क्योंकि तू हमारी अनुचर है और मैं तुम्हारा मालिक। इसलिए तू हम पर अपने विचार मत लाद। और फिर ज्ञान चिंतन, परमात्म चिंतन , ड्रिल आदि द्वारा मन के व्यर्थ संकल्पो को स्टॉप लगा उसे श्रेष्ठ संकल्पो की तरफ डाइवर्ट करे।
✦ राजयोग - योग की यथार्थ विधि ✦
पहले अपने को आत्मा निश्चय करना है, आत्मा की अनुभूति में स्थिर होना है (अर्थात मस्तक के बीच में ज्योति बिंदु आत्मा मौजूद हु - यह अनुभव करना है ). फिर इसी स्थिति में स्थित रहे परमात्मा (शिव बाबा) को अपने पिता (बाबा / बाप) के सम्बन्ध से याद करना है। वो भी हमारे जैसे ही ज्योति बिंदु है लेकिन वो कभी जनम और मृत्यु के चक्र में आते नहीं।
यह भी हमे स्मृति में है की वो ज्ञान, पवित्रता, शांति और प्रेम का सागर है, तो हम बच्चो को भी उनके समान बनना है। इसे ही परमात्मा से बुद्धि योग व राजयोग कहते है। इससे ही मुझ आत्मा के जनम जनम के विकर्म विनाश होते है और में आत्मा पवित्र बनती हुँ।
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