Wednesday, 4 November 2020

 योग में बैठते है तो विचार बहुत आते है। मन को शांत व बुद्धि को स्थिर कैसे किया जाये ?

जब हम योग करने बैठते है तो इस प्रक्रिया में हमारे विकर्म नष्ट होते है, जो माया रावण को नही सुहाता। क्योंकि हम माया रावण के 63 जन्मो के आसामी जो है। इसलिए माया रावण मन की संकल्पो की गति को अत्यंत तीव्र कर देती है। इसे आप ऐसे भी समझ सकते है कि हमारे पाप इतना भारी है, जो हमारी मन को एकाग्र नही होने देते। पर इसे एकाग्र करने की मेहनत तो हमें।ही करनी है ना। इसलिए ही तो मीठे बाबा ने अनेको अनेक मुरलियों में स्पष्ट बताया हुआ है कि ज्ञान तो सहज है, योग में ही मेहनत है। इसलिए शुरुआत में मन को एकाग्र करने की मेहनत तो हमे ही करनी पड़ेगी ना।

धयान दे , आत्मा की तीन मुख्य सूक्ष्म शक्तियां है - मन , बुद्धि और संस्कार। मन का कार्य है सतत संकल्पो वा विचार का निर्माण करना। बुद्धि का कार्य है निगेटिव, व्यर्थ और पॉजिटिव संकल्प को अलग अलग करना। और बुद्धि के जजमेंट को एक्सेप्ट करके या aside करके जो कर्म हम दो-चार बार कर लेते है, वो हमारे संस्कार बन जाते है।

इसलिए विचार वा संकल्प का काम तो है ही आना। पर हमारा अर्थात आत्मा की शक्ति बुद्धि का काम है यथार्थ निर्णय द्वारा सही संकल्प को क्रियान्वित करना और गलत संकल्प वा विचार को समाप्त करना।

अब गलत वा अयथार्थ संकल्प वा विचार को कैसे समाप्त करे ? कहते है खाली बुद्धि शैतान का घर है। तो बस बुद्धि को खाली ना रहने दे। और इसकी सहज विधि है - ज्ञान का चिंतन, परमात्म चिंतन, ड्रिल, ट्रैफिक कंट्रोल आदि द्वारा। ... ड्रामा रिपीट हो रहा है, नथिंग न्यू, ड्रामा और संगम कल्याणकारी युग है आदि आदि, ये ज्ञान के चिंतन के पॉइंट है। परमात्मा से योग लगा रहेगा तो माया को पास आने का चांस नही मिलेगा। ड्रिल द्वारा भी विचार वा संकल्प की दिशा को परिवर्तित कर सकते है। ट्रैफिक कंट्रोल मन को 1 सेकंड में एकाग्र करने में सहायक है। जब मन बहुत भटके तो मन को कहे कि हे मन अब ठहर जा। 63 जन्म हमने तुम्हारे कहने अनुसार किया, लेकिन अब तू मेरे अनुसार कर क्योंकि तू हमारी अनुचर है और मैं तुम्हारा मालिक। इसलिए तू हम पर अपने विचार मत लाद। और फिर ज्ञान चिंतन, परमात्म चिंतन , ड्रिल आदि द्वारा मन के व्यर्थ संकल्पो को स्टॉप लगा उसे श्रेष्ठ संकल्पो की तरफ डाइवर्ट करे।

✦ राजयोग - योग की यथार्थ विधि ✦

पहले अपने को आत्मा निश्चय करना है, आत्मा की अनुभूति में स्थिर होना है (अर्थात मस्तक के बीच में ज्योति बिंदु आत्मा मौजूद हु - यह अनुभव करना है ). फिर इसी स्थिति में स्थित रहे परमात्मा (शिव बाबा) को अपने पिता (बाबा / बाप) के सम्बन्ध से याद करना है। वो भी हमारे जैसे ही ज्योति बिंदु है लेकिन वो कभी जनम और मृत्यु के चक्र में आते नहीं।

यह भी हमे स्मृति में है की वो ज्ञान, पवित्रता, शांति और प्रेम का सागर है, तो हम बच्चो को भी उनके समान बनना है। इसे ही परमात्मा से बुद्धि योग व राजयोग कहते है। इससे ही मुझ आत्मा के जनम जनम के विकर्म विनाश होते है और में आत्मा पवित्र बनती हुँ।

 

अंतिम समय की सेवा, स्थिति और नज़ारे 

अंतिम समय : सेवा, नज़ारे, और पुरुषार्थ की स्थिति

कम्बाइन्ड स्वरूप व अन्तःवाहक शरीर द्वारा डबल सेवा :

*मैं, आत्मा अपने स्वमान की स्मृति के साथ परमात्मा से कम्बाइन्ड होकर इस कम्बाइन्ड स्वरूप द्वारा आखिरी अंतिम समय की बेहद सेवा कर सकती हूँ* । यह इस कम्बाइन्ड स्वमान वाले चित्र में दर्शाया गया है ।

अंतिम समय जब *विश्वयुद्ध, गृहयुद्ध, भयंकर रोग, प्राकृतिक आपदाओं* के कारण संसार में विनाशकारी तांडव विकराल रूप धारण कर चुका होगा तब स्थूल सेवा की कोई गुंजाइश नहीं रहेगी उस समय हमारे संपूर्ण स्वरुप याने *अव्यक्त आकारी डबल लाइट फ़रिश्ता स्वरुप* की स्थिति द्वारा *शिव-शक्ति कम्बाइन्ड स्वरुप* में स्थित हो *डबल सेवा* करनी पड़ेगी ।

*डबल सेवा* याने *१) संकल्पों व चलन चेहरे दृष्टी द्वारा सेवा २) अन्तःवाहक स्वरुप द्वारा सेवा* जिसमें सूक्ष्म शरीर और निराकारी स्वरुप इमर्ज रूप में डबल लाइट स्वरुप में होते हैं । *परमपिता शिव परमात्मा* की *प्रत्यक्षता* भी इसके द्वारा होगी । सतयुग में आत्मा (निराकारी स्वरुप) और सूक्ष्म शरीर (फ़रिश्ता स्वरुप) इमर्ज रूप में होते हैं अर्थात शरीर होते हुए भी नाम मात्र रहता है याने देह भान नहीं रहता, बिलकुल लाइट, कोई विकर्म नहीं होता ।

अब *अंतिम समय परमधाम जाने से पहले* निराकारी स्वरुप व आकारी फ़रिश्ता स्वरुप गुणों के इमर्ज (emerge) रूप में और देहभान (body consciousness) मर्ज (merge) रूप में रहे, *ruling controlling power* इतनी रहे कि जब चाहो इस देह से *डिटैच* (detach) हो निराकारी, आकारी रूप से डबल सेवा कर सको । यह सेवा वही आत्मा कर सकेगी जिसने अपनी स्थिति को लम्बे काल से ज्ञान और योग के अभ्यास द्वारा *श्रेष्ठ और ऊँचा* बनाया है, जिसका संकल्प शक्ति पावरफुल है और जिसमें बेहद की दृष्टी तथा वैराग्य है । चूँकि हम मुक्तिधाम और जीवनमुक्ति धाम का मार्ग दिखाने के निमित्त आत्माएं हैं हमारी दृष्टि से *सुख शान्ति की प्यासी, दुःख पीड़ा से ग्रसित, भयभीत आत्माओं* को दोनों मार्ग दिखाई देगा अर्थात एक आँख में *मुक्तिधाम* और दूसरे आँख में *जीवनमुक्ति धाम* का रास्ता दिखाई देगा । विनाश समय *अनुभव की अथॉरिटी* होगी तो *मुक्ति जीवनमुक्ति* दे सकते हैं । सतयुग-त्रेता में धर्मसत्ता (religious authority) और राज्य सत्ता ( ruling authority) दोनों रहता है जो आत्मा के यथार्थ ज्ञान पर आधारित होता है, द्वापर में राज्य सत्ता (ruling authority) देह अभिमान पर आधारित होता है ,कलियुग में ज्ञान सत्ता (science authority) होने पर भी सभी राज्य सत्ता और धर्मसत्ता प्रभावहीन हो जाते हैं और संगमयुग पर प्राप्ति का आधार है योगसिद्धि अथवा अनुभव की अथॉरिटी ( authority of experience ) ।

*वर्तमान अंत समय* में बाबा को *निराकारी, आकारी स्वरुप में स्थित* ज्यादा परसेंटेज वाले बच्चों की मांग है जो सूक्ष्मवतन में निराकारी आकारी स्वरुप द्वारा सेवा दे सकते हैं । ऐसी आत्माएं किसी के भी सूक्ष्म शरीर, अवचेतन मन को सक्रिय तथा सूक्ष्म /सुप्त शक्तियों को जागृत कर सकते हैं

*उर्ध्वरेता योगी, शिवयोगी, राजऋषि, अव्यभिचारी याद, परकाया प्रवेश* ये सभी अन्तःवाहक शरीर से सम्बंधित हैं जिसका *राजयोग के अभ्यास* से कनेक्शन है ।

इसलिए आज *डबल सेवा की मांग* है । इससे आप किसी के मन को वा संस्कारों को change कर सकते हैं । यही *संपन्न, संपूर्ण* बनाने के लिए सेवा का *रीफाइन स्वरुप* (refine form) है जो *उंच स्थिति* वाले ही कर सकते हैं । इसके लिए आप को मन की *स्थिरता* और बुद्धि की *एकाग्रता* बढ़ानी पड़ेगी जो *अमृतवेला पावरफुल* बनाने से होगा क्योंकि यही आत्मा को शक्तिशाली बनाने के लिए वरदानी समय है, दूसरी बात जितना हो सके व्यर्थ संकल्प अथवा विकल्प से मुक्त रहने का अभ्यास करें और *समर्थ संकल्पों* में स्थित होने का प्रयास करें तो व्यर्थ से बच जायेंगे जिससे मानसिक उर्जा की बचत होगी, तीसरी बात, दिन में कई बार बीच बीच में शरीर से *डिटैच* हो *डबल लाइट फ़रिश्ता स्वरुप* का अनुभव करते रहें । चौथी बात, *दृष्टि शुद्ध आत्मिक* रहे इस पर भी सतत अटेंशन रहे क्योंकि देहभान ही संकल्प द्वारा सेवा और उड़ती कला में जाने में सबसे बड़ा बाधक है । आखिरी बात, *मौन अथवा साइलेंस* का अधिक से अधिक पालन करें क्योंकि इससे हम व्यर्थ बोल से मुक्त रहेंगे, संकल्प शक्ति की बचत होगी, अंतर्मुखी होने में मदद मिलेगी जिससे एकरस अवस्था में स्थित रहना आसान होगा ।

( *नोट : मनसा सेवा और सकाश में कौन सी बातें शामिल होती है ,वाइब्रेशन और सकाश में अंतर, लाइट और माइट / योग और याद में अंतर, योग की विभिन्न अवस्थाएं इन सभी बातों का विस्तार नीचे pdf में दिया गया है* । )

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*अंतिम नज़ारे व स्थिति :*

हलचल वाली *दर्दनाक सीन* का दृश्य अपने मानस पटल पर लायें । पुरानी कलियुगी दुनिया की *सफाई* शुरू हो चुकी है । धरती कांप रही है, भारत के कुछ उत्तरी हिस्सों को छोड़ सभी खंड समुद्र की विराट सुनामी लहरों में जल समाधि ले रहे हैं, सूर्य की भयानक तपत , ज्वालामुखी के रूद्र रूप एवं परमाणु बम की अग्नि में सभी कुछ स्वाहा (ख़ाक) हो रहा है, वायु की विकराल गति से समस्त प्राकृतिक स्त्रोत एवं मानव कृत कृत्रिम वैज्ञानिक आधार नष्ट हो रहे हैं जिससे बाह्य एवं भीतर अंधाकार छा गया है ।आकाश तत्व विनाशकारी गूंजो एवं विषारी प्रदूषणों का मूक द्रष्टा बन गया है ।

विश्व के लगभग सभी *७०० करोड़ आत्मायें, प्राणी जीव जंतु* अपना अपना चोला छोड़ परमधाम (मुक्ति धाम) की ओर प्रस्थान कर रही हैं । सभी आत्माएं देह से सम्बंधित *नाम, मान, शान, पद, व्यक्ति, वस्तु, वैभव, स्थूल संपत्ति,जमीन, जायदाद इत्यादि* सब कुछ यहीं पर छोड़ ... जहाँ का था उसी को सुपुर्द कर जन्मजन्मान्तर के *कर्मों के हिसाब किताब चुक्तू* कर अपने वास्तविक *आत्म ज्योति स्वरुप* में अनादि *रूहानी शिवपिता* के साथ उड़ने की तैयारी कर रही हैं।

सभी ब्राह्मण आत्माएं अपने *शांति स्वधर्म* में टिके हुए हैं । *नवयुग* और *नयी राजधानी* का साक्षात्कार कर रहे हैं । वो *हाय हाय* और हमारे भीतर *वाह वाह* के गीत निकल रहे हैं ! *वाह बाबा ! वाह कल्याणकारी ड्रामा ! वाह मेरा भाग्य !* सभी का पुरानी दुनिया से बेहद का वैराग्य हो चुका है, एक बाबा से सर्व रस, सर्व सम्बन्ध, बस यही एक समान संकल्प की धुन लगी है *“अब बाप अथवा साजन के साथ अपने घर ( परमधाम ) लौटना है फिर सतोप्रधान नयी सतयुगी दैवी दुनिया के देवताई चोला में आना है ”* ।

हम *पूर्वज, महादानी, वरदानी विश्वकल्याणकारी, आधारमूर्त,उद्धारमूर्त ,रहमदिल* की स्टेज पर स्थित हो सभी का उद्धार कर रहे हैं, *लाइट हाउस* बन सभी को मुक्ति- जीवन मुक्ति का रास्ता दिखा रहे हैं, *मास्टर सद्गुरु* बन सद्गति दे रहे हैं एवं *मास्टर भगवान* बन भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण कर रहे हैं ।

सभी आत्माएं भी संतुष्ट होकर महिमा के गीत गाते हुए गंतव्य स्थान की ओर बढ़ रहे हैं : *प्रभु तेरी लीला अपरम्पार, तेरी गति मति तू ही जाने* । ओम शांति

 

शांति की शक्ति (Silence Power in Life)

1. साइलेन्स की शक्ति , क्रोध-अग्नि को शीतल कर देती है।

2. साइलेन्स की शक्ति व्यर्थ संकल्पों की हलचल को समाप्त कर सकती है।

3. साइलेन्स की शक्ति ही कैसे भी पुराने संस्कार हों, ऐसे पुराने संस्कार समाप्त कर देती है।

4. साइलेन्स की शक्ति अनेक प्रकार के मानसिक रोग सहज समाप्त कर सकती है।

5. साइलेन्स की शक्ति , शान्ति के सागर बाप से अनेक आत्माओं का मिलान करा सकती है।

6. साइलेन्स की शक्ति – अनेक जन्मों से भटकती हुई आत्माओं को सहारे की और ठिकाने की अनुभूनत करा सकती है।

7. महान आत्मा, धर्मात्मा सब बना देती है।

8. साइलेन्स की शक्ति – सेकण्ड में तीनों लोकों की सैर करा सकती है।

9. साइलेन्स की शक्ति – कम मेहनत, कम खर्चा बालानशीन करा सकती है।

10. साइलेन्स की शक्ति – समय के खजाने में भी एकॉनामी करा देती है अर्थात कम समय में ज्यादा सफलता पा सकते हो।

11. साइलेन्स की शक्ति – हाहाकार से जयजयकार करा सकती है।

12. साइलेंस की शक्ति द्वारा हम आत्माए अशरीरी अवस्था सहज अनुभव कर सकते है।

Tuesday, 3 November 2020

  

                     परमात्मा का सन्देश 

(परमात्मा का हम सभी मानव आत्माओ के लिए सन्देश )

ज़रूर पढ़े। यह ईश्वरीय संदेश हैएवं ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्वविद्यालय पर पढ़ाई जानेवाली स्पिरिचुअल (आध्यात्मिकपढ़ाई का सार है। सर्व आत्माओं के कल्याणार्थ लिखे गए इस संदेश को कृपया दूसरों के  शिव बाबा का सन्देश




तुम्हारा रूहानी पिता

तुमने मुझे जनम जनम पुकारामेरे मंदिरमस्ज़िदचर्चआदि बनाये और मुझे ढूंढ़ने की हर कोशिश की।  तुमने कितने जनम तपस्य कीदान पुण्य कियेताकि तुम मुझे मिल सको।  मेरे मीठे बच्चेमें तो तुम्हारा रूहानी बाप हूँ।  में भी तुम्हारी जैसे एक आत्मा हुलेकिन मुझे परम-आत्मा कहते है। में आता ही हु जब दुनिया में दुःख अशांति बढ़ जाती हैजब धर्म को भुला तुम आत्माए दुःख को पा लेती हो।  में परमपिता परमात्मा इसी समय आता हूँऔर पुनः स्वर्णिम सतयुगी सुख की दुनिया की स्थापना करता हूँ। तुम सभी आत्माओ का कल्याण करताऔर तुम्हे दुःख से छुड़ाकर सुख में ले जाता हूँ।  इसीलिए जब भी तुम दुखी होते हो तो मुझे याद करते हो।

मेरे अतिप्रिय बच्चेतुमने मेरे बारे में बहोत कुछ सुना होगामेरे बारे में पढ़ा होगा।  लेकिन अब समय  गया है कि मैं तुमसे सीधे बात करूँतुम्हे वह सच्चाई बताऊं जिसकी तुम्हे तलाश थी।  इससे पहले कि मैं तुम्हे अपने बारे में बताऊंमैं तुम्हे तुम्हारे अपने बारे में याद दिला दूं।  मीठे बच्चेतुम वह नहीं हो जो तुम्हे लगता है कि तुम हो - नामधर्मपेशासंबंध... यहाँ तक कि तुम यह शरीर भी नहीं हो जिसे तुम अपनी भौतिक आँखों से देखते हो।  तुम एक दिव्य चेतना होऊर्जा के अतिसूक्ष्म चमकते सितारे होजो इस शरीर का उपयोग कई भूमिकाएं निभाने के लिए करता है।  तुम एक पवित्रशांतस्वरूपप्रेमस्वरूपशक्तिशाली आत्मा हो।

 तुम मेरे बच्चे

इस दुनिया में आने से पहलेआप सभी अपने घर में रहते थे... आत्माओं की दुनिया... संपूर्ण शान्ति और पवित्रता की दुनिया में।  लेकिन आपकोमेरे प्यारे बच्चों कोइस धरती पर अपनी भूमिका निभानी थीजिसके लिए आप अपना घर छोड़कर इस सृष्टि पर आए।  जब आप पहली बार इस सृष्टि पर आए तो आप सम्पूर्णसतोप्रधान और दिव्य थे।  आप में से हरेक के पास पहनने के लिए एक आदर्श शारीरिक पोशाक (शरीरथा और यह दुनिया एक आदर्श दुनिया थी... दिव्यताप्रेम और समृद्धि की दुनियाजिसे पेरेडाइज़हेवनस्वर्गजन्नतबहिश्त और अल्लाह का बगीचा कहते है... जब आपका शरीर पुराना हो जाताआप बस पुरानी ड्रेस (शरीरबदल नई पहन लेते और अपना नया रोल (भूमिकानिभाते।  घर से और भी बच्चे इस सृष्टि रंगमंच पर आपके साथ शामिल होते गए। आप सभी बच्चे इस स्वर्णिम युग का आनंद ले रहे थेजिसे सतयुग (गोल्डन ऐजऔर त्रेतायुग (सिल्वर ऐजकहा जाता है।

तुम्हारी कहानी

जब तुम बहुत लम्बे समय तक विश्व मंच पर अपनी भूमिका निभाते रहेतो तुम्हारी पवित्रता और शक्तियाँ धीरे-धीरे कम होने लगी।  तुम अपनी असली पहचान भूल गए और सोचा कि जो शरीररूपी वस्त्र तुमने पहना था वह ही तुम होफलस्वरूप कामक्रोधलोभमोह और अहंकार तुम्हारे व्यव्हार में आने लगा।  आप सब के बीच जो प्रेममधुरता और सामंजस्य था वह खो गयाआप एक दूसरे के साथ लड़ने-झगड़ने लगेधोख़ा देने लगे।  जब तुम्हे दुःख और दर्द का अनुभव हुआतब तुमने मुझे पुकारना शुरू किया।  तुम मुझे ढूंढ़ने लगेतुम भूल गए थे कि मैंतुम्हारा पिताआत्माओं की दुनिया (सोल वर्ल्डमें रहता हूँ।  तुम अपनी ही दुनिया में मूझे  ढूंढने लगे।  तुम्हे एक धुंधली सी याद थी कि मैं तुम्हे बहुत प्रेम करता हूँमैं प्रकाश (ज्योतिका पुंज हूँइसलिए तुमने मंदिरो का निर्माण करना शुरू कियाजहाँ तुमने मुझे याद करने के लिए मेरे स्वरुप का प्रतिक बनाया।

साथ हीपरमधाम (आत्माओं की दुनियासे  इस सृष्टि पर कुछ पवित्रदिव्य बच्चे आपका मार्गदर्शन करने के लिए आएजैसे कि - मोहम्मदईसा मसीह (क्राईस्ट), गौतम बुद्धमहावीरगुरु नानक। वे आपको जीवन जीने का सही तरीक़ा सिखाने आए थे। उन्होंने आपको मेरी याद दिलाई और वे आपको मुझसे जोड़ने आए।

जैसे-जैसे समय बीतता गयाआप धर्मजातिपंथ और राष्ट्र के नाम पर बँटते गए।  आपमेरे प्यारे बच्चेमेरे नाम पर युद्ध छेड़ने लगे।  आपने अपने पूर्वजों के मंदिरों का निर्माण करना शुरू कियावह दिव्यपवित्र आत्माएँ जो आपकी दुनिया में सतयुग और त्रेतायुग (स्वर्गमें हो कर गए थे - श्री लक्ष्मी नारायणश्री राम सीता... आपने उनकी महिमा के लिए मंदिर बनाए और आपने उनमें मुझे ढूँढना शुरू किया।  जैसे-जैसे आपका दुःख बढ़ामेरे लिए आपकी ख़ोज और तीव्र होती गई। फिर आपने मुझे प्रकृति में भी ढूँढना शुरू किया।  आप में से कुछ लोगों ने मुझे ख़ोजने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दियालेकिन फिर भी मुझे ढूँढ नहीं पाए।  आप में से कुछ लोग अपने विज्ञान और तकनीक की दुनिया में इस कदर उलझ गए थे कि आप यह भी मानने लगे कि मेरा अस्तित्व ही नहीं है।  यह द्वापरयुग और कलियुग का समय था।

जब भी आपके सामने कोई समस्याएँ आईआपने सोचा कि मैं आपका भाग्य लिखता हूँइसके लिए आपने मुझे दोषी ठहराया और मुझसे इसे ठीक करने की प्रार्थना की।  मीठे बच्चेमैं तुम्हारा पिता हूँक्या मैं आपको कभी बीमारीगरीबीसंघर्ष या प्राकृतिक आपदाएं दे सकता हूँआपकी दुनिया में सब कुछ कर्म के सिद्धांत के आधार पर काम करता हैजो कर्म आप करते हो उसीका रिटर्न (फलआपको मिलता है।  आप ही अपने भाग्य के निर्माता हो।  मैं आपको वह ज्ञान और शक्तियाँ दे सकता हूँ कि जिससे आप एक अद्भुत भाग्य बना सकें।  लेकिन इसके लिएआपको मुझसे जुड़ने और मेरे द्वारा दिए जा रहे इस ज्ञान का अध्ययन करने की आवश्यकता है।प्यारे बच्चेमेरे लिए तुम्हारी तलाश अब ख़त्म हुई।  मैं आपको याद दिलाने के लिए आया हूँ कि आप वास्तव में कौन है और मैं कौन हूँ - मेरा और तुम्हारा रिश्ता क्या है !

मेरे प्यारे बच्चोंतुम्हारी तरहमैं भी केवल एक ज्योतिर्मय बिंदु (प्रकाश का पुंजहूँ।  मैं पवित्रता का सागरप्रेम का सागर और ज्ञान का सागर हूँ।  तुमने मुझे कई नामों से पुकारा है।  मैं तुम्हारा पिता हूँटीचर (शिक्षकऔर गाईड (मार्गदर्शकहूँ।  तुम बच्चे शरीर धारण करते हो और जन्म-मृत्यु के चक्र में आते होमैं कभी भी शरीर नहीं लेता।  मैं परमधाम निवासी हूँशान्ति और पवित्रता की दुनियाजो वही घर है जहाँ से आप सभी इस सृष्टि पर आए।  तुम्हे फिरसे पावन बनाने के लिएमैं तुम्हे ज्ञानप्रेम और शक्ति देने आया हूँ।

मीठे बच्चेअपने वास्तविक स्वरूप को जानो और मुझसे जुड़ो।  मुझे याद करो और अपने शान्तिपवित्रताआनंदख़ुशीप्रेम और शक्तियों के वरसे को प्राप्त करो।  मैं तुम्हे गुणों और शक्तियों से भर दूँगा ताकि हम मिलकर नई दुनिया का निर्माण करेंएक ऐसी दुनिया जहाँ शान्ति ही धर्म हैप्रेम ही भाषा हैकरुणा ही संबंध हैहर कर्म में सत्यता है और ख़ुशी ही जीवन जीने का तरीका है।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत  

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌  

परित्राणाय साधूनां विनाशाय  दुष्कृताम्‌  

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे 

परमात्मा पिता का हम बच्चों से यह वायदा है कि जब धर्म की अति ग्लानि होंगीसृष्टि पर पाप  अन्याय बढ़ जायेगा... तब वे इस धरा पर अवतरित होंगे... अब हमने जाना है की वो एक साधारण मनुष्य तन का आधार लेंहमें सत्य ज्ञान सुनाकरसद्गति का रास्ता दिखादुःखों से मुक्त कर रहे हैं।  यह गायन वर्तमान समय का ही हैजबकि कलियुग के अन्त और नई सृष्टि सतयुग के संगम परस्वयं परमात्मा अपने वायदे अनुसार इस धरा पर अवतरित हो चुके हैं , तथा इस दुःखमय संसार (नर्कको सुखमय संसार (स्वर्गमें परिवर्तन करने का महान कार्य गुप्त रूप में करा रहे हैं।